हेलो दोस्तों, आज हम बात करेंगे एक ऐसे मामले की, जो भारतीय विमानन कंपनी एयर इंडिया की साख पर सवाल उठाता है। यह कहानी है दिल्ली से वैंकूवर जा रही एक फ्लाइट की, जहां एक 84 साल के बुजुर्ग यात्री और उनके परिवार के साथ ऐसा व्यवहार हुआ, जिसे सुनकर आपका खून खौल जाएगा। तो चलिए, इस घटना को डिटेल में समझते हैं और जानते हैं कि आखिर क्या गलत हुआ।
क्या हुआ दिल्ली एयरपोर्ट पर?
13 अप्रैल 2025 को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (DEL) पर एक परिवार अपनी कन्फर्म बिजनेस क्लास टिकट लेकर वैंकूवर (YVR) के लिए फ्लाइट पकड़ने पहुंचा। इस परिवार में एक 84 साल के बुजुर्ग थे, जिन्हें व्हीलचेयर की जरूरत थी। इन्होंने खास तौर पर डायरेक्ट फ्लाइट और ब Estad क्लास इसलिए बुक किया था, ताकि लंबी यात्रा में आराम मिले। लेकिन एयरपोर्ट पर पहुंचते ही उन्हें बताया गया कि उनकी बिजनेस क्लास सीटें “खराब” हैं।
एयर इंडिया के स्टाफ ने बिना किसी पछतावे के दो ऑप्शन दिए:
- इकोनॉमी क्लास में बैठ जाओ।
- फ्लाइट से उतर जाओ।
सोचिए, आपने हजारों रुपये अतिरिक्त खर्च करके बिजनेस क्लास बुक किया, और अब आपको इकोनॉमी में धकेल दिया जाए या फिर फ्लाइट ही छोड़ने को कहा जाए! बुजुर्ग यात्री के लिए ये कितना असुविधाजनक रहा होगा, ये हम सब समझ सकते हैं।
परिवार का विरोध और लंबा रास्ता
परिवार ने इसका विरोध किया। आखिरकार, एयर इंडिया ने उन्हें लंदन के रास्ते वैंकूवर भेजने का फैसला किया। लेकिन ये कोई समाधान नहीं था। डायरेक्ट फ्लाइट से वैंकूवर सुबह 7 बजे पहुंचना था, लेकिन अब लंदन के रास्ते उनकी यात्रा 3:30 बजे दोपहर तक खिंच गई। एक बुजुर्ग, व्हीलचेयर-डिपेंडेंट यात्री के लिए ये अतिरिक्त घंटे और एयरपोर्ट बदलना कितना मुश्किल रहा होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।

क्या है असली समस्या?
यात्री के मुताबिक, ऐसा लगता है कि एयर इंडिया ने फ्लाइट को ओवरबुक कर लिया था, यानी जरूरत से ज्यादा टिकट बेच दिए। साथ ही, पुराने विमानों में मेंटेनेंस की समस्या भी सामने आई। यात्री ने बताया कि स्टाफ ने कोई सहानुभूति नहीं दिखाई और न ही जिम्मेदारी ली। ये बात तब और खराब लगती है, जब हम याद करते हैं कि एयर इंडिया को टाटा ग्रुप ने 2022 में खरीदा था, और वादा किया था कि वो इसे विश्वस्तरीय बनाएंगे। लेकिन ये घटना तो उस वादे के बिल्कुल उलट है।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
ये कोई इकलौता मामला नहीं है। हाल ही में दिल्ली से शिकागो की 12,080 किलोमीटर लंबी फ्लाइट में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। वहां यात्रियों को बोर्डिंग गेट पर एक फॉर्म साइन करने को कहा गया, जिसमें लिखा था कि उनकी बिजनेस क्लास सीट “खराब” है और उन्हें इकोनॉमी में शिफ्ट किया जा रहा है। एक यात्री ने इसका विरोध किया और अपनी सीट चेक की, तो पाया कि सिर्फ ट्रे टेबल में छोटी-सी दिक्कत थी। और चौंकाने वाली बात? उसी फ्लाइट में क्रू मेंबर्स को बिजनेस क्लास की खाली सीटों पर आराम करते देखा गया।
एयर इंडिया के प्रवक्ता ने सफाई दी कि पुराने बोइंग 777 विमानों में क्रू के लिए अलग रेस्ट एरिया नहीं है, इसलिए कुछ बिजनेस क्लास सीटें उनके लिए रिजर्व की जाती हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सही है कि पैसे देकर प्रीमियम सीट बुक करने वाले यात्रियों को नीचे धकेल दिया जाए, ताकि क्रू आराम कर सके?
टाटा की प्रतिष्ठा दांव पर
टाटा ग्रुप का नाम सुनते ही हमें क्वालिटी और भरोसे की याद आती है। लेकिन एयर इंडिया की ऐसी हरकतें उस इमेज को धक्का पहुंचा रही हैं। इस मामले में यात्री ने बताया कि लंदन में ग्राउंड स्टाफ और एयर कनाडा (जो लंदन से वैंकूवर का हिस्सा ऑपरेट कर रहा था) ने बेहतर सर्विस दी। लेकिन दिल्ली में जो हुआ, वो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
क्या है समाधान?
दोस्तों, ये सिर्फ एक यात्री की कहानी नहीं है। ये उन तमाम लोगों की आवाज है, जो एयर इंडिया पर भरोसा करते हैं। एयरलाइन को चाहिए कि:
- पारदर्शिता लाए: अगर सीटें खराब हैं या ओवरबुकिंग हुई है, तो पहले ही यात्रियों को बताएं।
- बुजुर्गों और स्पेशल नीड्स वाले यात्रियों का ध्यान रखे: उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी।
- कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे: सहानुभूति और जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करना सिखाएं।
- पुराने विमानों को अपग्रेड करे: मेंटेनेंस और क्रू रेस्ट की समस्याओं का स्थायी समाधान निकाले।
आप क्या सोचते हैं?
एयर इंडिया को भारत का गौरव माना जाता है, लेकिन ऐसी घटनाएं उसकी छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं। क्या आपको लगता है कि टाटा ग्रुप इसे बदल पाएगा? या फिर ये सिर्फ वादों का ढोल है? नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं। और हां, ऐसी खबरों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, ताकि कंपनियां जवाबदेही समझें।