मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित हितकारिणी डेंटल कॉलेज ने देश में पहली बार हिंदी माध्यम में मेडिकल की कक्षा शुरू करके एक बड़ा बदलाव किया है। यह कदम विशेष रूप से हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले ग्रामीण और आदिवासी छात्रों के लिए एक बड़ी राहत है, जिन्हें अब तक अंग्रेजी में मेडिकल की पढ़ाई करने में कठिनाई होती थी।
क्या हुआ?
- पहली क्लास का आयोजन मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलगुरु डॉ. अशोक खंडेलवाल ने किया।
- उन्होंने दंत चिकित्सा (Dentistry) के विषय को पूरी तरह हिंदी में पढ़ाया और छात्रों के सवालों के जवाब भी हिंदी में दिए।
- छात्रों ने इस पहल का खुले दिल से स्वागत किया, खासकर डिंडोरी, उमरिया, मंडला जैसे आदिवासी बहुल इलाकों से आए विद्यार्थियों ने।
क्यों जरूरी थी यह पहल?
- अब तक मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में होने के कारण, हिंदी माध्यम के छात्रों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती थी।
- कई छात्रों को अंग्रेजी टर्म्स समझने में दिक्कत होती थी, जिससे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता था।
- हिंदी में पाठ्यक्रम उपलब्ध होने से अब वे बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और अपनी पढ़ाई पर फोकस कर सकेंगे।

भविष्य में क्या होगा?
- यह कक्षा अब नियमित रूप से चलेगी और अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी इसी तरह की पहल की जा सकती है।
- हिंदी में मेडिकल बुक्स भी तैयार की जा रही हैं, ताकि छात्रों को पूरा सपोर्ट मिल सके।
यह फैसला सिर्फ एक भाषाई बदलाव नहीं, बल्कि शिक्षा को समावेशी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। जो छात्र पहले अंग्रेजी के डर से मेडिकल लाइन में आने से हिचकिचाते थे, अब वे आत्मविश्वास के साथ इस क्षेत्र में आ सकेंगे। हालांकि, इसके साथ ही अंग्रेजी की महत्ता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि मेडिकल रिसर्च और ग्लोबल कम्युनिकेशन के लिए अंग्रेजी जरूरी है। इसलिए, द्विभाषी शिक्षा (Bilingual Education) का मॉडल सबसे बेहतर होगा, जहाँ छात्र हिंदी में बेसिक्स समझें और अंग्रेजी में भी खुद को अपग्रेड करते रहें।
निष्कर्ष:
यह पहल मेडिकल एजुकेशन को सभी के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। अगर इसे सही ढंग से लागू किया जाए, तो भविष्य में ग्रामीण और हिंदी माध्यम के छात्र भी डॉक्टर बनने के सपने आसानी से पूरे कर पाएंगे।