त्रिवेणी तट पर आज से ‘आस्था के महासागर’ में लगने लगी डुबकी
by: Vijay Nandan
Mahakumbh 2025 Shahi snan live: Prayagraj में ‘महाकुंभ के महासंगम’ तट पर स्नान ध्यान के लिए इंतजार कर रहे करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आखिरकार वो पल आ ही गया। जब उन्होंने मकर संक्रांति के पावन सुअवसर पर त्रिवेणी के तट पर आस्था की डुबकी लगाई। आज सुबह 4 बजे से ही महाकुंभ स्थल की तरफ जनसैलाब उमड़ने लगा था। सुबह होते-होते इस सैलाब ने श्रद्धालुओं के महासागार जैसा रूप ले लिया। आखिर महाकुंभ की क्या महिमा है, क्या धार्मिक और आध्यमिक महत्व है, क्या ज्योतिषीय महत्व है, क्या खगोलीय महत्व है, क्या आर्थिक, और काय वैज्ञानिक महत्व है? जो दुनिया में रह रहे सनातन धर्म को मानने वालों को महाकुंभ अपनी और खींच लाता है। जितने भी आपके मन में सवाल उठ रहे हैं, वो सब इस लेख में जानिए..

महाकुंभ: इतिहास, महत्व और घटनाक्रम
महाकुंभ की शुरुआत
भारत में महाकुंभ मेला एक प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसकी शुरुआत का वर्णन पुराणों में मिलता है। महाकुंभ का आरंभ समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। यह कथा बताती है कि जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत कलश प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत कलश से अमृत छीना-झपटी में कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिर गईं। ये बूँदें चार स्थानों पर गिरीं: हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक। इन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन होता है।

महाकुंभ के प्रारंभ की पौराणिक कहानी
समुद्र मंथन के दौरान, देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने के लिए बारह दिनों तक घोर संघर्ष हुआ। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं के बारह दिन मानवों के बारह वर्षों के बराबर होते हैं। इसलिए, प्रत्येक बारहवें वर्ष पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि अमृत कलश को ले जाते समय गरुड़ ने इन चार स्थानों पर विश्राम किया था, जिससे अमृत की बूँदें वहाँ गिर गईं। इन स्थानों को पवित्र मानकर यहाँ कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा।

महाकुंभ का 7 ईसवी सन में प्रारंभ
ऐतिहासिक दृष्टि से महाकुंभ की शुरुआत का पहला लिखित प्रमाण 7वीं शताब्दी ईस्वी में मिलता है, जब हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने प्रयागराज के कुंभ मेले का उल्लेख किया। हालांकि, इस परंपरा की जड़ें इससे भी पहले की मानी जाती हैं।
महाकुंभ का आयोजन कितने वर्षों में होता है?
महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में होता है। इसके अलावा, हर 6 साल में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले का आयोजन उस स्थान पर होता है जहाँ ग्रहों की विशेष स्थिति बनती है। महाकुंभ के आयोजन की तिथियाँ ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होती हैं।
महाकुंभ की अवधि और श्रद्धालुओं की संख्या
महाकुंभ मेले का आयोजन लगभग 48 दिनों तक चलता है। यह मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जिसमें भारत सहित पूरी दुनिया से करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। आंकड़ों के अनुसार, महाकुंभ मेले में 10 से 15 करोड़ श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। यह मेला श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र होता है।
महाकुंभ के आयोजन स्थल
महाकुंभ का आयोजन चार स्थानों पर होता है:
हरिद्वार: यहाँ गंगा नदी के तट पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
प्रयागराज: गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर यह मेला लगता है।
उज्जैन: क्षिप्रा नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है।
नासिक: गोदावरी नदी के तट पर यह मेला आयोजित किया जाता है।

अर्थकुंभ का महत्व
अर्थकुंभ महाकुंभ मेले का एक आधुनिक पहलू है, जो आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा के लिए आयोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य समाज और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सतत विकास के लिए नीतियों पर विचार करना है।
अर्थकुंभ का आयोजन
अर्थकुंभ का आयोजन मुख्य रूप से प्रयागराज कुंभ मेले के दौरान होता है। हालांकि, अर्थकुंभ के विचार को अन्य कुंभ आयोजनों में भी शामिल किया जा सकता है। प्रयागराज में आयोजित अर्थकुंभ में पर्यावरण संरक्षण, जल प्रबंधन, स्वच्छता और सतत विकास जैसे विषयों पर चर्चा होती है। इसका महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह धार्मिक आयोजन को आधुनिक विचारों और विकास से जोड़ता है।

अखाड़ों के शाही स्नान की परंपरा
महाकुंभ मेले की सबसे प्रमुख परंपराओं में से एक है अखाड़ों का शाही स्नान। यह परंपरा शक्ति, वैभव और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। शाही स्नान का आयोजन विशेष तिथियों पर होता है, और इसमें विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत शाही जुलूस के साथ पवित्र नदी में स्नान करते हैं।

साधु-संतों के प्रमुख अखाड़े
महाकुंभ मेले में 13 मुख्य अखाड़े भाग लेते हैं, जो तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित हैं:
शैव अखाड़े: जूना अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा।
वैष्णव अखाड़े: निर्मोही अखाड़ा, निर्वाणी अखाड़ा, दिगंबर अखाड़ा।
उदासीन और अन्य अखाड़े: उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन निर्मल अखाड़ा आदि।
शाही स्नान की प्रक्रिया में कौनसे अखाड़े सबसे पहले स्नान करते हैं?
शाही स्नान की प्रक्रिया में सबसे पहले जूना अखाड़ा स्नान करता है, जो शैव अखाड़ों में सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद अन्य अखाड़े क्रमवार स्नान करते हैं। नागा साधुओं का दल, जो कि अपने निर्भीक और तपस्वी जीवन के लिए प्रसिद्ध है, इस परंपरा का मुख्य आकर्षण होता है।

श्रद्धालु के स्नान का पुण्य
महाकुंभ में श्रद्धालुओं का स्नान मोक्ष और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, कुंभ के दौरान संगम या पवित्र नदी में स्नान करने से:
पापों का क्षय: यह माना जाता है कि पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
मोक्ष की प्राप्ति: कुंभ स्नान को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है, जिससे आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सकती है।
शारीरिक और मानसिक शुद्धि: स्नान से व्यक्ति को शारीरिक शुद्धि के साथ-साथ मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त होती है।
देवताओं की कृपा: ऐसा विश्वास है कि कुंभ स्नान करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
कुंभ शुरू होने के बाद की घटनाएँ
महाकुंभ मेला भारत के इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।
संतों और महापुरुषों का संगम: महाकुंभ मेले में विभिन्न अखाड़ों और संत समाज के महापुरुषों का संगम होता है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र रहा है।
धार्मिक एकता: महाकुंभ ने भारत में धार्मिक एकता को मजबूत किया है। लाखों श्रद्धालु बिना किसी जाति, धर्म या भाषा के भेदभाव के संगम स्थल पर स्नान करते हैं।
आध्यात्मिक जागृति: कुंभ ने अनेक संतों और भक्तों को आध्यात्मिक जागृति प्रदान की है। यहाँ होने वाले प्रवचनों और साधना से लोग धर्म और आध्यात्म के महत्व को समझते हैं।

सनातन धर्म में कुंभ का महत्व
सनातन धर्म में कुंभ का विशेष महत्व है।
पुण्य लाभ: कुंभ मेले में संगम या पवित्र नदी में स्नान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है।
अमृत का प्रतीक: कुंभ मेले को अमृत की प्राप्ति से जोड़कर देखा जाता है। यह जीवन में शुद्धता और आत्मिक उन्नति का प्रतीक है।
धार्मिक अनुष्ठान: कुंभ मेले के दौरान लाखों लोग धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञ और हवन में भाग लेते हैं।
ज्ञान और साधना: यह मेला धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार का केंद्र है, जहाँ भक्त और संत जीवन के गूढ़ रहस्यों पर चर्चा करते हैं।
महाकुंभ का आर्थिक महत्व
महाकुंभ मेले का आर्थिक महत्व विशाल और बहुआयामी है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन: महाकुंभ के दौरान लाखों पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं, जिससे स्थानीय व्यवसाय जैसे होटल, परिवहन, खाने-पीने की दुकानों, और हस्त
महाकुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। यह मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि मानवता, एकता और शांति का संदेश भी देता है। कुंभ का महत्व समय के साथ और भी बढ़ता गया है, और यह आयोजन पूरे विश्व के लोगों को भारतीय संस्कृति और परंपरा से जोड़ता है।
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