कसरावद (मध्य प्रदेश): सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने के लाखों प्रयासों के बावजूद, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। कसरावद के शासकीय अस्पताल में मरीजों की जान के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है। यहां महीनों से यूरीन सैंपल कागज़ के डिस्पोजेबल कप (चाय के कप) में भरवाए जा रहे हैं, जिससे सैंपल गिरने या बदलने का खतरा बना रहता है।
डिस्पोजेबल चाय कप में यूरीन सैंपल लेना गंभीर लापरवाही
मेडिकल मानकों के अनुसार यूरीन सैंपल संग्रह के लिए सील बंद, स्टरलाइज्ड कंटेनरों का उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन अस्पताल में आम चाय कप जैसे कागज़ी डिस्पोजेबल कप में सैंपल लिए जा रहे हैं। इससे न केवल जांच की शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ होता है।
डॉक्टरों की ड्यूटी में लापरवाही, मरीज कर रहे भटकाव
अस्पताल में डॉक्टरों की उपस्थिति भी गंभीर चिंता का विषय है। मरीजों का कहना है कि डॉक्टर समय पर ड्यूटी पर नहीं पहुंचते, अपनी मर्जी से आते-जाते हैं और अधिकांश समय कैबिनों से गायब रहते हैं। इसके कारण मरीजों को इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है या फिर उन्हें निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है।
सुविधाओं का अभाव: जनरेटर, लाइट, पंखे सब खराब
- अस्पताल में जनरेटर मौजूद है, लेकिन डीजल नहीं होने की वजह से वह बेकार पड़ा है।
- सोलर पैनलों की बैटरियां भी खराब हो चुकी हैं, जिससे बिजली जाने पर मरीज परेशान होते हैं।
- अस्पताल में कुछ ही पंखे चालू हालत में हैं, कई जगहों पर पंखे लगे ही नहीं हैं।
रोगी कल्याण समिति पर भी उठे सवाल
रोगी कल्याण समिति के संचालक दीपक नरिया पर मनमानी के आरोप लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि समिति द्वारा अस्पताल में ऐसी चीजें लगाई जा रही हैं जिनकी जरूरत ही नहीं है, जबकि जरूरी चीजों को नजरअंदाज किया जा रहा है। इसके चलते सरकारी पैसों का दुरुपयोग हो रहा है।

प्रशासन बना मूकदर्शक
इतनी अनियमितताओं और मरीजों की शिकायतों के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। अस्पताल के बाहर चिट्ठी बनाने के लिए एक ऑफिस पहले से मौजूद है, बावजूद इसके एक अतिरिक्त ऑफिस भी बना दिया गया, जो अब तक किसी उपयोग में नहीं आया।
आम जनता का सवाल: क्या सुधरेंगी स्वास्थ्य सेवाएं?
ग्रामीणों की मांग है कि:
- लापरवाह कर्मचारियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए।
- रोगी कल्याण समिति की जिम्मेदारी जिम्मेदार हाथों में सौंपी जाए।
- जो अधिकारी काम नहीं कर रहे, उन्हें पद मुक्त किया जाए।
जब तक व्यवस्थाएं नहीं सुधरतीं, मरीजों की परेशानियां बनी रहेंगी। इस संबंध में प्रशासन को अब जागने की जरूरत है, ताकि सरकारी अस्पताल अपने उद्देश्य – जनता को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना – को सही मायनों में पूरा कर सकें।