BY: VIJAY NANDAN
हिंदू धर्म के उपनिषदों में एक ऐसा संवाद है जो केवल एक बालक की जिज्ञासा नहीं, बल्कि आत्मा, जीवन और मृत्यु के रहस्य को उजागर करता है। यह संवाद है — नचिकेता और यमराज के बीच का, जो कठोपनिषद में वर्णित है। यह संवाद आज भी वैसा ही प्रासंगिक है, जितना सहस्त्रों वर्ष पहले था।
कौन थे नचिकेता?
नचिकेता एक ब्राह्मण बालक थे, जिनके पिता वाजश्रवस एक यज्ञ कर रहे थे और दिखावे के लिए निर्बल गायों का दान दे रहे थे। सत्यप्रिय नचिकेता ने यह देखा और बार-बार अपने पिता से पूछा,
“पिताजी, आप मुझे किसे दान करेंगे?”
पिता ने क्रोध में उत्तर दिया —
“मैं तुझे मृत्यु को दान करता हूँ।”

यमराज के द्वार पर नचिकेता
नचिकेता पिता की बात को सत्य मान कर यमराज के लोक पहुंच गए। यमराज घर पर नहीं थे, और नचिकेता तीन दिन तक भूखे-प्यासे द्वार पर बैठे रहे। लौटने पर यमराज ने अतिथि सत्कार स्वरूप नचिकेता को तीन वरदान देने का वचन दिया।
यमराज के तीन वरदान और नचिकेता की मांग
पहला वरदान:
“मेरे पिता का क्रोध शांत हो, वे मुझे स्वीकार करें और मुझसे स्नेह करें।”
यमराज ने यह वर तुरंत दे दिया।
दूसरा वरदान:
“मुझे अग्निविद्या का ज्ञान दीजिए, जिससे स्वर्ग प्राप्त किया जा सके।”
यमराज ने अग्निविद्या सिखाई, जो आगे चलकर ‘नचिकेता अग्नि’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण वरदान:
“मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? क्या आत्मा रहती है या नष्ट हो जाती है?”
नचिकेता ने मृत्यु के रहस्य को जानने की जिज्ञासा जताई।
यमराज के उत्तर और आत्मा का ज्ञान
यमराज ने पहले नचिकेता को सांसारिक सुखों का लोभ दिया, लेकिन नचिकेता अडिग रहे। अंततः, यमराज ने गूढ़ आध्यात्मिक ज्ञान देते हुए बताया:
- आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है।
“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
“आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।”
- मृत्यु केवल शरीर की है, आत्मा शाश्वत है।
- जो आत्मा को जान लेता है, वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
- सच्चा सुख आत्मा की पहचान में है, न कि भौतिक वस्तुओं में।
संवाद का गूढ़ संदेश
यह संवाद केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि एक गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक सीख है। यह हमें सिखाता है:
- सत्य के लिए हर परिस्थिति का सामना करना चाहिए
- आत्मज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है
- सांसारिक सुख क्षणिक हैं, स्थायी सुख आत्म-साक्षात्कार में है
- मृत्यु अंत नहीं, एक परिवर्तन है
नचिकेता और यमराज का संवाद न केवल उपनिषदों की बौद्धिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि हर मानव के जीवन में उठते गहरे प्रश्नों का उत्तर भी है। यह संवाद हमें मृत्यु से डरने की नहीं, उसे समझने की प्रेरणा देता है — और यही इसे कालातीत बनाता है।
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