भूमिका: एक जनरल, एक एजेंडा, और पाकिस्तान की राजनीति में उथल-पुथल
पाकिस्तान की राजनीति और सेना में इन दिनों एक ही नाम छाया हुआ है — जनरल असीम मुनीर। उन्हें हाल ही में “फील्ड मार्शल” की उपाधि से नवाजा गया है, लेकिन क्या यह सम्मान उनकी सैन्य उपलब्धियों का नतीजा है, या फिर एक राजनीतिक रणनीति?
इस लेख में हम समझेंगे:
- फील्ड मार्शल पद के पीछे का असली मकसद
- इमरान खान और असीम मुनीर के बीच की तनातनी
- सैन्य पदोन्नतियों से कैसे बदला शक्ति का संतुलन
- पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर इसका प्रभाव
फील्ड मार्शल बनना: सैन्य सम्मान या राजनीतिक रणनीति?
जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना एक प्रतीकात्मक कदम माना जा रहा है। सैन्य तौर पर यह एक “हार के समय जीत” जैसा निर्णय था, जिसे पाकिस्तान सरकार और PPP ने मिलकर लिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह कदम असल में सैन्य पराजय पर एक राजनीतिक पर्दा डालने का प्रयास था।
इमरान खान ने क्यों किया इसका विरोध?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस फैसले की खुलकर आलोचना की। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “अब जनरल मुनीर खुद को ‘राजा’ भी कह सकते हैं क्योंकि पाकिस्तान में अब सिर्फ ‘जंगल का कानून’ ही बचा है।”
यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि:
- अब असली लड़ाई इमरान बनाम मुनीर है।
- बाकी राजनीतिक दल पीछे छूट चुके हैं या अप्रासंगिक हो चुके हैं।
सेना में अंदरूनी हलचल: क्या PMA बनाम OTS की लड़ाई शुरू हो गई है?
असीम मुनीर का सैन्य करियर Officer Training School (OTS) मंगला से शुरू हुआ था, न कि प्रतिष्ठित Pakistan Military Academy (PMA) काकुल से। बावजूद इसके, वह अब पाकिस्तान सेना में सबसे ऊंचे पद पर काबिज हैं।
क्या बदला सेना की पावर स्ट्रक्चर?
- CJCSC जनरल साहिर शमशाद मिर्जा की तुलना में मुनीर अब रैंक और प्रभाव में ऊपर हैं।
- उन्होंने DG ISI लेफ्टिनेंट जनरल असीम मलिक को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया है, जो उनके अधीनस्थ हैं।
- इस तरह सेना और सरकार दोनों में उनके अधीनस्थ ही शीर्ष पदों पर हैं।
दो नियुक्तियां जो सत्ता के समीकरण बदलती हैं
असीम मुनीर ने अपने भरोसेमंद OTS बैचमेट्स को दो सबसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है:
- लेफ्टिनेंट जनरल सैयद आमिर रज़ा – चीफ ऑफ जनरल स्टाफ (CGS)
- लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद इम्तियाज़ – रावलपिंडी स्थित 10 कॉर्प्स के कमांडर
ये नियुक्तियां क्यों हैं महत्वपूर्ण?
- CGS: पाकिस्तान सेना में यह सबसे ताकतवर पद है, जो इंटेलिजेंस और सैन्य ऑपरेशनों का प्रमुख होता है।
- 10 कॉर्प्स कमांडर: राजधानी इस्लामाबाद के सबसे नज़दीक तैनात, जिनके पास 111 इन्फेंट्री ब्रिगेड होती है — वही जो अक्सर तख्तापलट में सबसे पहले हरकत में आती है।
ऐतिहासिक उदाहरण:
1999 में जनरल परवेज़ मुशर्रफ के समर्थन में इन्हीं दोनों पदों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सरकार गिरा दी थी।
क्या ये तख्तापलट की तैयारी है?
अब तीन सबसे महत्वपूर्ण पद — COAS (Army Chief), CGS और 10 कॉर्प्स कमांडर — तीनों PMA नहीं बल्कि OTS के अधिकारियों के पास हैं। इतिहास बताता है कि ऐसे समय में:
- तख्तापलट की संभावना बढ़ जाती है
- लोकतांत्रिक सरकारें कमजोर होती हैं
निष्कर्ष: सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाते असीम मुनीर
जनरल असीम मुनीर ने राजनीतिक सहयोग, सैन्य पदोन्नतियों, और प्रमुख नियुक्तियों के जरिये एक ऐसी व्यवस्था बना दी है, जिसमें वे न सिर्फ सेना बल्कि सरकार पर भी नियंत्रण बनाए हुए हैं।
उनका यह कदम पाकिस्तान की राजनीति और सैन्य संतुलन में एक बड़े बदलाव का संकेत है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि:
- क्या इमरान खान इसका जवाब देंगे?
- क्या PMA लॉबी इससे खुश है?
- क्या पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था और कमजोर होगी?