मुख्य बिंदु:
- जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने इस्लामिक कलमा पढ़कर अपनी जान बचाई।
- हमलावर ने उनके पड़ोसी को गोली मार दी, लेकिन प्रोफेसर को कलमा पढ़ते देख छोड़ दिया।
- घटना के बाद प्रोफेसर और उनका परिवार सदमे में है, लेकिन सुरक्षित है।
क्या हुआ था पहलगाम में?
22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन मैदान में आतंकियों ने अचानक गोलियां चलाकर 26 लोगों की हत्या कर दी, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। इसी भीड़ में असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य भी मौजूद थे, जो अपने परिवार के साथ घूमने आए थे।
“कलमा पढ़कर बच गई मेरी जान”
प्रोफेसर भट्टाचार्य ने बताया कि जब गोलियां चलनी शुरू हुईं, तो आसपास के लोग जमीन पर गिरकर कलमा (इस्लामिक धार्मिक वाक्य) पढ़ने लगे। उन्होंने भी ऐसा ही किया। तभी एक आतंकी उनके पास आया और उनके बगल में बैठे व्यक्ति को गोली मार दी।
जब आतंकी ने प्रोफेसर की ओर देखा, तो उसने पूछा: “तुम क्या कर रहे हो?”
भट्टाचार्य ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जोर-जोर से कलमा पढ़ना शुरू कर दिया। यह देखकर आतंकी वहां से चला गया।
“भागकर बचाई जान”
हमले के बाद जैसे ही स्थिति थोड़ी शांत हुई, प्रोफेसर अपनी पत्नी और बेटे के साथ वहां से भाग निकले। करीब दो घंटे पैदल चलने के बाद एक स्थानीय व्यक्ति ने उन्हें पहलगाम शहर तक पहुंचाया। वे अभी भी इस घटना के सदमे से उबर नहीं पाए हैं।
सरकार की प्रतिक्रिया
- असम सरकार ने प्रोफेसर और उनके परिवार को वापस लाने की व्यवस्था शुरू कर दी है।
- केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए सिंधु जल समझौता रोक दिया है।
- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा: “हमें डरा नहीं सकते, जिम्मेदारों को मिलेगा करारा जवाब।”

क्यों महत्वपूर्ण है ये घटना?
- आतंकवाद की बर्बरता: यह हमला दिखाता है कि आतंकी किसी भी निर्दोष पर्यटक को नहीं छोड़ते।
- धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण: प्रोफेसर ने कलमा पढ़कर अपनी जान बचाई, जो धर्म के नाम पर फैलाए जा रहे हिंसक विचारों के खिलाफ एक मजबूत संदेश है।
- सरकार की कार्रवाई: इस हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ ठोस कदम उठाए हैं।
आगे क्या?
- पीड़ित परिवारों को मुआवजा और सुरक्षा दी जाएगी।
- सुरक्षा बलों ने कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया है।
- पर्यटकों को अभी कश्मीर में अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।
निष्कर्ष: यह घटना न सिर्फ आतंकवाद की क्रूरता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि समझदारी और साहस से कैसे खतरों का सामना किया जा सकता है।