यह कहानी उस असली हीरो की है जिसे शायद बहुत कम लोग जानते हैं—सैयद आदिल हुसैन। एक आम कश्मीरी युवक, जो पर्यटकों को पहलगाम की वादियों में टट्टू की सवारी करवाता था। लेकिन किस्मत ने उसके सामने एक ऐसा मोड़ लाया, जहाँ उसने अपनी जान की बाज़ी लगाकर दूसरों की जान बचाई।
📍 क्या हुआ था पहलगाम में?
23 अप्रैल 2025 को, कश्मीर के प्रसिद्ध बायसारन मैदान में अचानक आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई—यह कश्मीर के हालिया इतिहास का सबसे भयानक आतंकी हमला था।
आतंकवादी सेना जैसी वर्दी और कुर्ता-पायजामा पहनकर पास के जंगलों से मैदान में पहुंचे थे और AK-47 से हमला कर दिया। इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF) ने, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है।
🕊️ सैयद आदिल हुसैन: एक सच्चा हीरो
जब गोलियां चल रही थीं और हर कोई जान बचाने की कोशिश में था, सैयद आदिल हुसैन—जो पेशे से टट्टू चालक था—ने भागने की बजाय पर्यटकों को बचाने की कोशिश की। चश्मदीदों के अनुसार, उसने एक आतंकी से बंदूक छीनने की भी कोशिश की, तभी उसे गोली मार दी गई।
वो इस हमले में मारे गए इकलौते स्थानीय व्यक्ति थे, और सबसे बड़ी बात—इकलौते मुस्लिम।

🏛️ सरकार का रुख और राजनीति
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला खुद उनके जनाज़े में शामिल हुए। उन्होंने कहा:
“मैं इस कायराना हमले की कड़ी निंदा करता हूँ। एक गरीब मज़दूर ने पर्यटकों की जान बचाते हुए अपनी जान दे दी। वह सच्चा बहादुर था।”
उन्होंने आदिल के परिवार को हर संभव सरकारी मदद का आश्वासन भी दिया।
🎙️ Swadesh News विश्लेषण
अगर इस घटना को सिस्टम और राजनीति के नज़रिये से देखें, तो दो बातें निकलकर आती हैं:
- स्थानीय मुस्लिम समुदाय और आतंकवाद के बीच की दूरी – सैयद आदिल की कुर्बानी ये दिखाती है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता, और आम कश्मीरी नागरिक आतंकियों के खिलाफ खड़ा है।
- सरकारी जिम्मेदारी और संवेदनशीलता – मुख्यमंत्री का सामने आना, शोक जताना और मदद का वादा करना, एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन सवाल ये है कि क्या भविष्य में ऐसे हमलों को रोका जा सकता है?
🔚 निष्कर्ष
सैयद आदिल हुसैन आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहादुरी हमें सिखाती है कि असली हीरो वही होते हैं जो संकट की घड़ी में दूसरों के लिए खड़े होते हैं। हमें ज़रूरत है ऐसे लोगों की कहानियाँ सामने लाने की, ताकि नफ़रत नहीं, इंसानियत और बहादुरी का संदेश फैले।