सुप्रीम कोर्ट ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर (द्वितीय) के परपोते की पत्नी सुल्ताना बेगम द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में सुल्ताना बेगम ने दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर अपना मालिकाना हक जताया था। उनका दावा था कि लाल किला उनके पूर्वजों द्वारा बनवाया गया था, इसलिए यह उनकी विरासत है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने इस याचिका को “बेतुका” बताते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने सवाल किया कि अगर वे विरासत की बात कर रही हैं, तो सिर्फ लाल किले पर ही दावा क्यों? फतेहपुर सीकरी और अन्य ऐतिहासिक स्थलों पर उन्होंने दावा क्यों नहीं किया? इससे पहले भी दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
कौन हैं सुल्ताना बेगम?
सुल्ताना बेगम कोलकाता के एक गरीब इलाके में रहती हैं और कागज के लिफाफे व गोटे वाले कपड़े सिलकर अपना गुजारा करती हैं। वह खुद को मुगल साम्राज्य के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर (द्वितीय) का वंशज बताती हैं, हालांकि इतिहासकारों के अनुसार, बहादुर शाह जफर (प्रथम) के बाद मुगल साम्राज्य का अंत हो गया था और उनके उत्तराधिकारियों का कोई आधिकारिक दर्जा नहीं रहा।

हाई कोर्ट ने भी किया था खारिज
दिसंबर 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह मामला ढाई साल की देरी से दायर किया गया था, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। इसके बाद सुल्ताना बेगम ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसे अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी खारिज कर दिया है।
लाल किला किसके अधीन है?
लाल किला भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के अधीन एक संरक्षित स्मारक है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है और देश की ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक माना जाता है। किसी निजी व्यक्ति या परिवार का इस पर कोई कानूनी दावा नहीं हो सकता।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला साफ करता है कि ऐतिहासिक स्मारकों पर निजी दावेदारी नहीं की जा सकती। लाल किला भारत की साझा विरासत है और यह पूरे देश के लिए गौरव का प्रतीक है।