पुणे | 29 जून 2025: महाराष्ट्र में भाषा को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। डिप्टी सीएम और एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने साफ कहा है कि वह पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मातृभाषा मराठी है, और वही पहली कक्षा से अनिवार्य होनी चाहिए।
ठाकरे और राज ठाकरे की संयुक्त रैली से पहले बयान
राज्य सरकार द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ 5 जुलाई को शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) संयुक्त प्रदर्शन करने जा रहे हैं। इसी बीच अजित पवार का बयान सामने आया है। दिलचस्प बात यह है कि MNS द्वारा जारी एक पोस्टर में अजित पवार की तस्वीर भी लगाई गई है, जिससे उनके समर्थन का संकेत दिया जा रहा है।
अजित पवार ने क्या कहा?
बारामती में मीडिया से बातचीत करते हुए अजित पवार ने कहा,
“मैं पहले ही मुंबई में साफ कर चुका हूं कि मराठी हमारी मातृभाषा है और पहली कक्षा से अनिवार्य होनी चाहिए। आजकल अंग्रेजी का चलन बढ़ रहा है, कई माता-पिता बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में भेज रहे हैं। कक्षा 5 के बाद माता-पिता तीसरी भाषा चुन सकते हैं। महाराष्ट्र में मराठी और अंग्रेजी के साथ आमतौर पर बच्चे तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ते हैं। कुछ लोग अन्य भाषाएं भी चुनते हैं।”
कैबिनेट बैठक में होगी चर्चा
अजित पवार ने आगे बताया कि यह मुद्दा अगले सप्ताह होने वाली कैबिनेट बैठक में उठाया जाएगा। यह बैठक विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले होगी।
क्या है विवाद की जड़?
दरअसल, महायुति सरकार ने 16 अप्रैल को निर्णय लिया था कि राज्य के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य होगी। इस फैसले का विपक्षी पार्टियों और शिक्षाविदों ने विरोध किया। इसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सफाई दी कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, तीसरी भाषा का चयन छात्रों पर छोड़ा जाएगा। हालांकि, संशोधित आदेश में सरकार ने कहा कि सामान्य रूप से हिंदी तीसरी भाषा होगी। यदि कोई अन्य भाषा चुननी है तो कम से कम 20 छात्रों को उसे चुनना होगा, तभी शिक्षक उस भाषा को कक्षा में पढ़ाएंगे। यदि छात्रों की संख्या 20 से कम है तो उस भाषा की पढ़ाई ऑनलाइन कराई जाएगी।
मुख्य बातें संक्षेप में:
- अजित पवार ने हिंदी अनिवार्यता का विरोध किया।
- मराठी को पहली कक्षा से अनिवार्य बनाए जाने की वकालत।
- 5 जुलाई को ठाकरे और MNS की संयुक्त रैली।
- सरकार के तीसरी भाषा संबंधी फैसले पर उठे सवाल।
- 20 से कम छात्रों पर भाषा पढ़ाई ऑनलाइन करने की व्यवस्था।
निष्कर्ष:
महाराष्ट्र में भाषा को लेकर सियासत गरमा गई है। जहां सरकार त्रिभाषा नीति को आगे बढ़ाना चाहती है, वहीं विपक्ष और कई स्थानीय नेता इसे मराठी अस्मिता का मुद्दा बता रहे हैं। आने वाले दिनों में कैबिनेट बैठक और 5 जुलाई की प्रस्तावित रैली इस मुद्दे की दिशा तय कर सकती है।