BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली, – देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर स्पष्ट संदेश दिया है कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जेल में बंद आफताब नामक व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने के बावजूद रिहा नहीं किया गया था, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश सुनाया है।
जमानत मिली, लेकिन जेल से रिहाई नहीं हुई
यह मामला तब सामने आया जब 2024 में अवैध धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार आफताब को 29 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई थी। लेकिन इसके बावजूद आफताब को तकनीकी कारणों का हवाला देकर जेल में ही रखा गया। अदालत ने इस पर गंभीर चिंता जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एनके सिंह की पीठ ने इस मामले को न्यायिक आदेशों की अवमानना करार देते हुए यूपी सरकार को स्पष्ट रूप से फटकार लगाई। अदालत ने कहा:
“आपने उसे केवल तकनीकी आधार पर सलाखों के पीछे रखा। क्या यही संदेश देना चाहते हैं कि अदालतों के आदेशों की कोई कीमत नहीं?”
जांच गाजियाबाद जिला जज को सौंपी गई
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि गाज़ियाबाद के जिला न्यायाधीश इस मामले की जांच करें और यह पता लगाएं कि आफताब की रिहाई में देरी क्यों हुई। इसके अलावा डीजी जेल से यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि जेल अधिकारियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के आदेशों के पालन की प्रक्रिया सिखाई जाए।
व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय होगी
पीठ ने चेतावनी दी कि अगर जांच में किसी अधिकारी की लापरवाही सामने आती है, तो उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाएगी और जरूरी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अदालत ने यह भी कहा कि:
“यह केवल एक व्यक्ति की रिहाई का मामला नहीं है, यह भारत के संविधान में प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।”
यूपी सरकार से 27 जून तक मांगी अनुपालन रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि 27 जून तक अनुपालन रिपोर्ट जमा की जाए और अगली सुनवाई की तारीख 18 अगस्त तय की गई है। इस दौरान अदालत तय करेगी कि मुआवजा राशि की वसूली किसी जिम्मेदार अधिकारी से की जाए या नहीं।
पृष्ठभूमि: कौन है आफताब?
आफताब को 2024 में अवैध धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। लेकिन जेल प्रशासन की लापरवाही या जानबूझकर की गई देरी के चलते कई हफ्तों तक उसे हिरासत में रखा गया, जो अब न्यायपालिका की नज़र में गंभीर लापरवाही मानी गई है।
न्यायपालिका का संदेश – अदालत का आदेश सर्वोपरि
इस मामले ने एक बार फिर अदालत के उस रुख को स्पष्ट कर दिया है कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के ज़रिए न सिर्फ आफताब को न्याय दिलाया है, बल्कि एक सख्त संदेश भी दिया है कि यदि किसी अधिकारी की गलती से किसी की आज़ादी छीनी जाती है, तो उसकी कीमत उसे चुकानी पड़ेगी।