BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक ऐसे अंतरराज्यीय रैकेट का पर्दाफाश किया है, जो फर्जी डिग्री और मार्कशीट बनाकर मोटी रकम वसूल रहा था। यह गिरोह पिछले दो वर्षों से सक्रिय था और अब तक 5000 से ज्यादा फर्जी डिग्रियां लोगों को बेच चुका है। इस नेटवर्क से जुड़े 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
गिरफ्तारी और बरामदगी:
क्राइम ब्रांच ने इस छापेमारी में भारी मात्रा में फर्जी दस्तावेज जब्त किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- 228 नकली मार्कशीट
- 27 फर्जी सर्टिफिकेट
- कई लैपटॉप और मोबाइल फोन, जिनमें डिग्री तैयार करने का डेटा मौजूद है।
पुलिस के अनुसार, इन आरोपियों ने मिलकर एक व्यवस्थित तरीके से सिंडिकेट तैयार किया था जो दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, राजस्थान और हरियाणा तक फैला हुआ था।
कौन हैं इस रैकेट के प्रमुख चेहरे?
- विक्की: गिरोह का सरगना, जो दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र से कॉल सेंटर के माध्यम से इस नेटवर्क को संचालित कर रहा था। महज 10वीं पास होने के बावजूद वह खुद को शिक्षण संस्थान का प्रतिनिधि बताकर डील करता था।
- विवेक गुप्ता: यह आरोपी नोएडा से ऑपरेशन संभालता था।
- सतबीर सिंह: फरीदाबाद में कार्यरत था और क्षेत्र में छात्रों से संपर्क साधता था।
- नारायण: दिल्ली से बाहर स्थित इलाकों में रैकेट फैलाने का जिम्मेदार था।
- इनका एक और साथी राजस्थान की एक जेल में बंद है, जो वहीं से कुछ तकनीकी सहायता दे रहा था।
कैसे चलता था यह फर्जीवाड़ा?
यह गिरोह छात्रों को नकली डिग्री देने का झांसा देकर उनसे मोटी रकम ऐंठता था। प्रक्रिया कुछ इस तरह होती थी:
- आरोपी पहले उन इलाकों की पहचान करते जहां कोचिंग सेंटर और कॉलेज छात्र अधिक संख्या में होते।
- ऐसे क्षेत्रों में कमरे किराए पर लेकर फर्जी संस्थानों के पोस्टर, पैम्पलेट छपवाए जाते और बांटे जाते।
- कई बार आरोपी फर्जी आईडी के जरिए सीधे कोचिंग सेंटर में पहुंचकर छात्रों को अपनी स्कीम का हिस्सा बनाते।
- छात्रों को यह कहा जाता कि महज 1 से 1.5 लाख रुपये देकर वो कोई भी डिग्री पा सकते हैं — B.Tech, B.Pharm, BBA, B.Com जैसी किसी भी कोर्स की।
- एक बार रकम जमा हो जाने के बाद, 40 से 45 दिनों के भीतर उन्हें “असली जैसे दिखने वाले” डिग्री सर्टिफिकेट सौंप दिए जाते।
पुलिस की कार्रवाई और आगे की जांच:
क्राइम ब्रांच के संयुक्त पुलिस आयुक्त ने जानकारी दी कि अब तक की जांच में कई अहम सुराग हाथ लगे हैं:
- गिरफ्तार आरोपियों के पास से मिले लैपटॉप और मोबाइल में करीब 5000 से अधिक फर्जी डिग्री के रिकॉर्ड मिले हैं।
- आरोपी विभिन्न विश्वविद्यालयों के नाम पर फर्जी दस्तावेज बना रहे थे।
- कुछ छात्र इन डिग्रियों के माध्यम से सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी भर्ती हो चुके हैं।
अब पुलिस की अगली कार्यवाही इस बात पर केंद्रित है कि:
- इन फर्जी डिग्रियों के आधार पर किस-किस को नौकरी मिली?
- ऐसे लोग कौन-कौन सी संस्थाओं में तैनात हैं?
- और कितने छात्रों ने इस रैकेट से नकली दस्तावेज खरीदे हैं?
क्या बोले अधिकारी?
संयुक्त आयुक्त ने बताया:
“यह गिरोह न केवल शिक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और योग्यता प्रणाली पर भी हमला था। हमारी जांच का अगला चरण नौकरी हासिल करने वाले लोगों की पहचान और उनकी तैनाती का खुलासा करना है।”
यह मामला शिक्षा क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के एक बड़े नेटवर्क को उजागर करता है। सवाल यह भी उठता है कि इन नकली डिग्रियों के माध्यम से जब छात्र नौकरी पा रहे हैं, तो इससे असली मेहनती छात्रों का हक कैसे मारा जा रहा है? अब उम्मीद है कि इस मामले में आगे और खुलासे होंगे और दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।