BY: Yoganand Shrivastva
राष्ट्रीय राजधानी में कृत्रिम वर्षा की तैयारी पूरी
दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब एक नई पहल की जा रही है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने राजधानी में पहली बार क्लाउड सीडिंग (Artificial Rain) की अनुमति दे दी है। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने जानकारी दी कि यह योजना पूरी तरह तैयार है और जल्द ही इसे लागू किया जाएगा।
IIT कानपुर करेगा पूरे प्रोजेक्ट का संचालन
इस परियोजना का तकनीकी नेतृत्व IIT कानपुर को सौंपा गया है। यह संस्थान क्लाउड सीडिंग के वैज्ञानिक, तकनीकी और संचालन संबंधी पक्षों की निगरानी करेगा। जैसे ही मौसम में नमी वाले बादलों की मौजूदगी पाई जाएगी, क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
मंत्री सिरसा ने बताया कि सभी जरूरी परमिशन मिल चुकी हैं, बस अंतिम उड़ान संचालन से जुड़ी कुछ प्रक्रियाएं बाकी हैं।
किन इलाकों में होगी कृत्रिम बारिश?
- क्लाउड सीडिंग के लिए उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली को चुना गया है।
- इस दौरान पांच विमान उड़ानें संचालित होंगी।
- हर उड़ान लगभग 90 मिनट की होगी और करीब 100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कवर किया जाएगा।
कब होगी कृत्रिम बारिश?
हालांकि अभी कृत्रिम बारिश की तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि जैसे ही मौसम अनुकूल होगा – विशेष रूप से निंबोस्ट्रेटस बादल जिनमें कम से कम 50% नमी हो – यह प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
IMD, उड़ानों के लिए बादलों की ऊंचाई, हवा की दिशा, ओस बिंदु और अन्य रीयल-टाइम मौसम डेटा उपलब्ध कराएगा।
कितना आएगा खर्च?
- इस पायलट परियोजना पर 3.21 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
- यह राशि दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा वहन की जाएगी।
क्लाउड सीडिंग से प्रदूषण में कितना फर्क पड़ेगा?
प्रोजेक्ट की प्रभावशीलता मापने के लिए क्लाउड सीडिंग वाले क्षेत्रों और उनके आस-पास PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषकों के स्तर को रीयल-टाइम में मॉनिटर किया जाएगा। इसके लिए वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन लगाए गए हैं।
IIT कानपुर इससे पहले सात बार सफल क्लाउड सीडिंग परीक्षण कर चुका है, लेकिन शहरी प्रदूषण नियंत्रण के लिए यह पहली बार प्रयोग किया जा रहा है।
प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली की नई रणनीति
कृत्रिम बारिश की यह पहल दिल्ली की गंभीर वायु गुणवत्ता की समस्या से निपटने की दिशा में एक बड़ा प्रयोग है। अगर यह प्रयास सफल होता है, तो भविष्य में इसे अन्य मेट्रो शहरों में भी अपनाया जा सकता है।