पहलगाम आतंकियों ने पहले धर्म पूछा, कलमा पढ़ने को कहा फिर मार डाला
BY: VIJAY NANDAN (Editor, Swadesh Digital )
आज बात उस नफ़रत की, जो एक बार फिर सरहद पार से आई है। वो ज़हर जो 1947 में बंटवारे के नाम पर फैलाया गया था, जो बार-बार ज़ुबानों पर लौट आता है। इस बार आवाज़ उठी है पाकिस्तान के सबसे ताकतवर ओहदे से—वहाँ के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर की तरफ से। उन्होंने कहा, “मुसलमान, हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते थे… इसलिए पाकिस्तान बना।” और ठीक कुछ दिनों बाद, 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक भीषण आतंकी हमले ने 28 हिंदू पर्यटकों की जान ले ली। इस हमले की ज़िम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है। सवाल यह है कि क्या जनरल मुनीर का यह नफरत भरा बयान पहलगाम हमले को भड़काने का कारण बना? क्या यह भारत के मुसलमानों को उकसाने की चाल है, या फिर पाकिस्तान की अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की एक पुरानी साजिश? आज हम बात करेंगे उस सोच की, जो नफरत से पैदा हुई थी, और उस समाज की, जो अब खुद उसी नफरत में घुट रहा है।
कश्मीर गर्दन की नस, हिंदू और मुसलमान, आर्मी चीफ मुनीर का जहरीला बयान, 6 दिन बाद ही धर्म पूछकर कत्लेआम
जनरल साहब अपने मुल्क के बच्चों को नफरत का पाठ पढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। इस पर तालियाँ भी खूब बजीं। लेकिन उनके इस बयान के ठीक छह दिन बाद, पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने भारत को दहला दिया। इस हमले में 28 पर्यटक मारे गए, जिनमें ज़्यादातर हिंदू थे, और कई घायल हुए। भारतीय खुफिया सूत्रों का मानना है कि जनरल मुनीर के इस भड़काऊ बयान ने आतंकवादियों को उकसाने का काम किया। हमले में आतंकियों ने पीड़ितों से उनकी धार्मिक पहचान पूछी..कहा तो ये भी जा रहा है कि उनके कपड़े भी उतरवाए गए. बेरहमी से कत्ल का ये तरीका.. मुनीर के हिंदू-मुस्लिम विभाजन वाले बयान से मेल खाता है।
Admire the clarity of Pakistanis and its awaam.
— N.P. Ranjan 🇮🇳 (@Ranjan_Narayan) April 17, 2025
The Chief of Army Staff, General Asif Munir is following the motto of his army – “Iman, Taqwa, Jihad-fi-sabilillah”.
No chull of “Aman Ki Aasha” type of lunatic nonsense like Indians. pic.twitter.com/3f1gOXxe3b
सवाल यह है कि भारत के संदर्भ में यह बयान और उसके बाद हुआ हमला कितना खतरनाक है? भारत में लगभग 25 करोड़ मुसलमान रहते हैं, जो किसी भी गैर-मुस्लिम देश में मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा समूह है। ये मुसलमान भारत के संविधान के अंतर्गत सभी अधिकारों के साथ जीवन जीते हैं। जनरल मुनीर का यह कहना कि “हिंदू और मुसलमान साथ नहीं रह सकते,” न केवल ऐतिहासिक रूप से ग़लत है, बल्कि यह भारत में समुदायों के बीच नफरत फैलाने का एक प्रयास भी है। भारत में वो मुसलमान बसता है, जिसने जिन्ना साहब की टू-नेशन थ्योरी को ठुकरा दिया था। आज़ादी के 78 साल बाद भी उसे भारत के लोकतंत्र और संविधान में पूरा भरोसा है। जनरल मुनीर के बयान और उसके बाद हुए पहलगाम हमले को देखकर सवाल उठता है कि क्या यह भारतीय मुसलमानों के मन में भ्रम और असंतोष पैदा करने की एक सोची-समझी उनकी एक रणनीति है?
पर वो कहते हैं.. “जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है”—मतलब जहाँ नफरत बाँटी जाती है, वहाँ नफरत की पैदावार ही होगी। 1947 में पाकिस्तान को इस्लाम के नाम पर एक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन आज वहाँ बलूच, सिंधी, पश्तून, मोहाजिर, और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे समुदायों के साथ किस तरह का भेदभाव होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। GFX IN
• बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएँ आम हैं।
• मोहाजिर समुदाय को राजनीतिक और सामाजिक हाशिए पर रखा जाता है। ( आपको बता दें पाकिस्तान में मोहाजिर वो लोग हैं जिन्होंने बंटवारे के समय पाकिस्तान को चुना था.)
• पाकिस्तान में हिंदू, ईसाई और अहमदिया समुदाय के साथ भेदभाव और अत्याचार की घटनाएँ अक्सर सामने आती हैं।
जो देश अपने अल्पसंख्यकों को न्याय नहीं दे सकता, वह भारत के मुसलमानों के भविष्य पर बयान कैसे दे सकता है? और जब वह नफरत भरे बयान देता है, तो उसके परिणामस्वरूप पहलगाम जैसे हमले होते हैं, जहाँ निर्दोष पर्यटकों को अपनी जान गँवानी पड़ती है। इस उकसावे को भी हमारे देश के मुस्लिम भाइयों को समझने की जरूरत है।
सवाल यह भी है कि क्या एक सेना प्रमुख को इस तरह का बयान देना शोभा देता है? एक चुनी हुई सरकार के प्रधानमंत्री की बजाय एक सेना प्रमुख—जो लोकतंत्र का हिस्सा नहीं होता—जब किसी धर्म विशेष को “दूसरे धर्म से श्रेष्ठ” बताता है, तो यह केवल राजनीतिक बयान नहीं होता, बल्कि उसकी नीयत और रणनीति को दर्शाता है। सेना प्रमुख की ज़िम्मेदारी देश की सीमाओं की रक्षा करना होती है, न कि सामाजिक या धार्मिक नफरत को हवा देना। जनरल असीम मुनीर साहब का यह बयान उनकी राजनीतिक भूमिका निभाने की मंशा को भी उजागर करता है। भारतीय खुफिया सूत्रों का कहना है कि मुनीर ने अपने बयान में कश्मीर को पाकिस्तान की “जुगुलर वेन” (जान की रग) बताते हुए कश्मीरी आतंकियों का समर्थन करने का संकेत दिया, जिसके बाद TRF ने पहलगाम में हमला कर 28 हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया।
भारत ही नहीं, खुद पाकिस्तान में भी जनरल साहब के बयान की बखिया उधेड़ी गई.
पाकिस्तान: डॉ. मारिया मलिक
डॉ. मारिया मलिक, जो लेखिका और बलूचिस्तान थिंक टैंक की डायरेक्टर रिसर्च हैं, ने जनरल मुनीर के वीडियो क्लिप को X पर रीपोस्ट करते हुए लिखा, “11 अगस्त 1947 के अपने संबोधन में जिन्ना ने टू-नेशन थ्योरी को नकार दिया था। यह शर्मनाक है कि आपको इसका तनिक भी अंदाज़ा नहीं है कि पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। लेकिन शर्म की अवधारणा से शायद आप अनजान हैं।”
To his disappointment, Jinnah – the founder dismantled the 2 nation theory in his 11th August 1947 address. Shame that you forgot that Hindus are Pakistan’s biggest religious minorities. But the shame is a concept unknown to him, perhaps. https://t.co/aqxoXJcdLU
— Maria Malik (@maria_malikawan) April 17, 2025
पाकिस्तानी लेखक और रिसर्चर अमार राशिद
एक और पाकिस्तानी लेखक और रिसर्चर अमार राशिद ने जनरल मुनीर के हिंदू और मुसलमान में फ़र्क़ वाले बयान पर लिखा था, “50 लाख से ज़्यादा पाकिस्तानी नागरिक हिंदू हैं। सैकड़ों सेना में हैं और हज़ारों सरकार में हैं। ऐसे में यह कितना सही है कि एक पेशेवर सेना का प्रमुख सार्वजनिक रूप से हिंदू और मुसलमानों के बीच फ़र्क़ बताए?”
Over 5m Pakistani citizens are Hindu, 100s serve in the army he commands, 1000s in the govt. How is it appropriate or lawful for the head of a supposedly professional military to be publicly raging about irreconciliable differences b/w Hindus & Muslims like a TLP rabble rouser? https://t.co/Ylb9l8HFBH
— Ammar Rashid (@AmmarRashidT) April 17, 2025
इसी तरह, पाकिस्तान की सूफ़ी स्कॉलर और पत्रकार सबाहत ज़कारिया ने भी जनरल साहब के वीडियो क्लिप को रीट्वीट किया। उन्होंने क्या कहा, देखिए…
पाकिस्तान: सबाहत ज़कारिया, पत्रकार
इसका हिंदी तर्जुमा यह है: “अगर हिंदुओं और मुसलमानों की बात हो रही है, तो भारत में 20 करोड़ मुसलमान रहते हैं। अगर आपकी सोच के हिसाब से चला जाए, तो ये 20 करोड़ मुसलमान भी बाक़ी भारतीयों से अलग हैं। तो क्या पाकिस्तान अपने 24 करोड़ मुसलमानों में 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों को शामिल करने के लिए तैयार है? क्या भारत के मुसलमान भी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते हैं? और जिन 10 लाख अफ़ग़ान मुसलमानों को वापस भेजा जा रहा है, उनके बारे में क्या ख़्याल है? ये तो दशकों से पाकिस्तान में रह रहे हैं। क्या इन पर टू-नेशन थ्योरी लागू नहीं होती?”
General Asif Munir is Pro Max version of General Zia & General Musharaf combined!!
— Brigadier Bhupesh Singh (@Bhupesh) April 20, 2025
🤡🤡#PakArmy #Pakistan
VC: To the creator pic.twitter.com/3rRueXSbdt
अब ज़रा यह भी जान लेते हैं कि मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान की क्या इज़्ज़त है। पिछले एक दशक में पाकिस्तान की मुस्लिम देशों में साख लगातार गिरती जा रही है।
मुस्लिम देशों में पाकिस्तान की साख
• सऊदी अरब: अब पाकिस्तान को पहले की तरह बेलआउट नहीं देता; उसके लिए अब “कर्ज पर कर्ज” की नीति नहीं है।
• यूएई और क़तर जैसे देशों ने भी अब पाकिस्तान को एक अस्थिर, कट्टर और राजनीतिक रूप से असफल देश के रूप में देखना शुरू कर दिया है।
• तुर्की और ईरान जैसे देश भी पाकिस्तान के साथ संबंधों में सतर्कता बरतते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम समुदाय पाकिस्तान को अब केवल आर्थिक सहायता की माँग करने वाला देश समझता है, जिसका कोई स्थायी विज़न नहीं है। ऐसे में, जब पाकिस्तान का आर्मी चीफ नफरत भरे बयान देता है और उसके बाद पहलगाम जैसे हमले होते हैं, तो यह साफ़ हो जाता है कि यह नफरत की राजनीति अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग कर रही है।
अब सवाल यह भी है कि भारत का रुख क्या होना चाहिए? भारत को इस मुद्दे पर भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक तरीके से प्रतिक्रिया देनी चाहिए। भारत को यह दिखाना होगा कि उसका संविधान सभी धर्मों को समान अधिकार देता है और भारत में कोई भी “थ्योरी” नहीं, बल्कि व्यवहारिक सह-अस्तित्व काम करता है। पहलगाम हमले के बाद भारत ने साफ़ कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न हिस्सा है और पाकिस्तान का इससे एकमात्र संबंध यह है कि उसे 1948 में अवैध रूप से कब्जाए गए क्षेत्रों को खाली करना होगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान का इससे कोई लेना-देना नहीं है, सिवाय इसके कि उसे कब्जाए गए क्षेत्रों से हटना होगा।” साथ ही, भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की इस रणनीति को उजागर करना चाहिए कि वह कैसे अपने घरेलू असंतोष और विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए भारत और उसके मुसलमानों को गुमराह करता है, और ऐसी नफरत भरी बयानबाजी के बाद आतंकी हमलों को बढ़ावा देता है।
क्या असीम मुनीर का बयान और उसके बाद हुआ पहलगाम हमला एक विफल विचारधारा की अंतिम चीख जैसा है? “टू-नेशन थ्योरी” न तो 1971 में टिक पाई थी, जब बांग्लादेश अलग हो गया, और न ही 2025 में टिक सकती है। भारतीय मुसलमानों ने बार-बार यह दिखाया है कि वे भारत के संविधान, लोकतंत्र और सह-अस्तित्व में विश्वास रखते हैं। लेकिन पहलगाम हमला हमें यह भी याद दिलाता है कि नफरत की यह सोच अब भी कितनी खतरनाक हो सकती है। पाकिस्तानी हुक्मरानों और जनरलों को अपने गिरेबान में झाँकने की ज़रूरत है। अगले हफ्ते देखिए… क्या भारत में नफरत का यह बीज पनप पाएगा? क्या भारतीय समाज नफरत की खेती में वोट की पैदावार होने देगा?
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