मैनपुरी: 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार केस में आखिरकार न्याय का फैसला आ गया है। मैनपुरी की विशेष डकैती कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है। इसके साथ ही उन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। यह मामला 1982 के दिहुली हत्याकांड से जुड़ा है, जिसमें 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी।
क्या हुआ था दिहुली नरसंहार में?
18 नवंबर 1981 को मैनपुरी जिले के दिहुली गांव में डकैतों के एक गिरोह ने हमला बोल दिया। डकैत पुलिस की वर्दी में आए थे और उनके पास हथियार भी थे। उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 24 दलितों की हत्या कर दी। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। यह घटना इतनी भीषण थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को दिहुली पहुंचकर पीड़ित परिवारों से मुलाकात करनी पड़ी थी।

44 साल बाद आया फैसला
इस मामले में कुल 17 आरोपी थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है। एक आरोपी ज्ञानचंद अभी भी फरार है। कोर्ट ने जिंदा बचे तीन आरोपियों कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई है। सजा सुनते ही दोषी रोने लगे और खुद को निर्दोष बताने लगे।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने इस नरसंहार को बेहद जघन्य और नृशंस करार दिया। एडीजी (क्राइम) रोहित शुक्ला ने बताया कि दोषियों पर 2-2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला समाज में दलितों के प्रति होने वाले अत्याचार का एक कड़वा उदाहरण है।
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
दिहुली गांव के पीड़ित परिवारों ने कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की। उन्होंने गांव में स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा पर माला चढ़ाई और कहा कि “देर से ही सही, न्याय मिला है।”
- मालती देवी (पीड़ित परिवार) ने कहा, “44 साल बाद न्याय मिला है। अब हत्यारों को जल्द से जल्द फांसी दी जाए।”
- भूप सिंह (चश्मदीद गवाह) ने कहा, “अदालत ने पीड़ितों के साथ न्याय किया है। यह फैसला हमारे लिए सुकून देने वाला है।”
क्या होगा आगे?
दोषी अब 30 दिन के अंदर हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। हाई कोर्ट सजा को बरकरार रख सकता है या उसमें संशोधन कर सकता है।
दिहुली गांव का माहौल
फैसले के बाद गांव में सन्नाटा छाया हुआ है। कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने कहा कि उन्हें अब भी डर लगता है कि कहीं डकैत वापस न आ जाएं। हालांकि, पीड़ित परिवारों को उम्मीद है कि इस फैसले के बाद उन्हें शांति और सुरक्षा का एहसास होगा।
न्यायिक प्रक्रिया की लंबाई
यह मामला पिछले 44 साल से चल रहा था। 1984 में इसे प्रयागराज कोर्ट भेजा गया था। 2024 में हाई कोर्ट के आदेश पर इसे वापस मैनपुरी कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। अब आखिरकार न्याय मिल गया है।
निष्कर्ष
दिहुली नरसंहार का यह मामला न केवल न्यायिक प्रक्रिया की लंबाई को दर्शाता है, बल्कि यह समाज में दलितों के प्रति होने वाले अत्याचार की एक कड़वी सच्चाई भी है। 44 साल बाद मिला यह फैसला पीड़ित परिवारों के लिए एक राहत भरा कदम है।