मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश डुप्पला वेंकटा रमण, जो जून 2025 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ने हाल ही में अपने करियर और व्यक्तिगत संघर्षों के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि 2023 में उनका स्थानांतरण उनके परिवार के लिए कितनी मुश्किलें लेकर आया, और इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करते हुए उनकी पीड़ा कैसी रही।
न्यायाधीश रमण का स्थानांतरण: एक परेशान करने वाला अनुभव
न्यायाधीश रमण ने इंदौर स्थित मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में कहा कि उनका स्थानांतरण “दोषपूर्ण नीयत से” किया गया था। उनका मानना है कि यह स्थानांतरण उनके खिलाफ एक प्रकार की परेशानी पैदा करने की कोशिश थी, जिससे उनके परिवार को भी काफी कष्ट झेलना पड़ा।
- उनका मूल प्रदेश आंध्र प्रदेश था, जहां से उन्हें मध्य प्रदेश में स्थानांतरित किया गया।
- उन्होंने अपनी पत्नी के गंभीर स्वास्थ्य कारणों से कर्नाटक में स्थानांतरण का अनुरोध किया था, क्योंकि वहां उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी।
पत्नी के स्वास्थ्य कारणों से स्थानांतरण का अनुरोध
न्यायाधीश रमण की पत्नी कोविड के बाद एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी से जूझ रही थीं, जिसे PNES (पैरोक्सिज्मल नॉन-एपिलेप्टिक सिंड्रोम) कहा जाता है।
- उन्होंने 2024 में सुप्रीम कोर्ट को दो बार स्थानांतरण के लिए आवेदन किया, ताकि वह कर्नाटक के NIMHANS अस्पताल में पत्नी का इलाज करवा सकें।
- लेकिन उनकी यह याचिका न तो स्वीकार की गई और न ही खारिज, जिससे उन्हें गहरा आघात पहुंचा।
न्यायाधीश का दर्द और उम्मीद
न्यायाधीश रमण ने कहा कि इस तरह के स्थानांतरण से उन्हें और उनके परिवार को बहुत तकलीफ हुई। उन्होंने यह भी कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवैया इस मामले पर मानवीय दृष्टिकोण से विचार करेंगे, हालांकि अब वह सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
“भगवान न तो भूलता है, न ही माफ करता है… जो लोग मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं, वे भी किसी न किसी रूप में इसका फल भोगेंगे,” न्यायाधीश रमण ने भावुक होकर कहा।
मध्य प्रदेश में मिली सहयोग और समर्थन
हालांकि निजी जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, न्यायाधीश रमण ने मध्य प्रदेश के न्यायालय में अपने साथियों और वकीलों से मिले समर्थन की सराहना की।
- उन्होंने बताया कि उनका स्थानांतरण उनकी उम्मीद के विपरीत, उनके करियर के लिए एक वरदान साबित हुआ।
- उन्होंने अमरावती, कृष्णा, गोदावरी, और नर्मदा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में न्याय सेवा करने का गर्व व्यक्त किया।
न्याय सेवा का लंबा सफर: संघर्ष से सफलता तक
न्यायाधीश रमण ने अपने बचपन की आर्थिक कठिनाइयों और न्यायिक सेवा में आने के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि उनका यह सफर 1994 में दूसरे श्रेणी के मजिस्ट्रेट के रूप में शुरू हुआ।
- उन्होंने कड़ी मेहनत से न्यायपालिका में अपनी जगह बनाई।
- अपने जीवन के इस सफर पर वे गर्व महसूस करते हैं और न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर आत्मसंतुष्ट हैं।
निष्कर्ष
न्यायाधीश डुप्पला वेंकटा रमण की कहानी न्यायपालिका के अंदरूनी संघर्षों और मानवीय पहलुओं को उजागर करती है। उनके अनुभव से पता चलता है कि स्थानांतरण जैसी प्रशासनिक प्रक्रियाएं कितनी संवेदनशील हो सकती हैं, खासकर तब जब परिवार के स्वास्थ्य का सवाल हो।
उनकी कहानी से यह भी सीख मिलती है कि हर कठिनाई में भी कुछ अच्छा निकल सकता है, बशर्ते हम हिम्मत न हारें।