24 साल के रवि राज, बिहार के नवादा जिले से, जिनकी आँखों की रोशनी 10वीं कक्षा में ही चली गई, ने UPSC 2024 में ऑल इंडिया 182वीं रैंक हासिल की। ये सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि एक माँ (विभा) और बेटे के अटूट संघर्ष की मिसाल है।
जब आँखों की रोशनी चली गई, लेकिन हौसला नहीं
16 साल की उम्र में एक बीमारी ने रवि की आँखों की रोशनी छीन ली। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पढ़ाई के प्रति उनका प्यार ही उनका हथियार बना। नवादा में पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने UPSC का लक्ष्य रखा।
चार कोशिशों के बाद मिली जीत
रवि ने BPSC (बिहार लोक सेवा आयोग) की परीक्षा भी पास की और रेवेन्यू ऑफिसर चुने गए, लेकिन उनका सपना IAS बनने का था। तीन बार असफलता मिली, लेकिन चौथी बार में उन्होंने ये मुकाम हासिल किया।
माँ विभा – रवि की ताकत
रवि की माँ ने हर कदम पर उनका साथ दिया। वो उनकी आँखें बनीं, उनके नोट्स पढ़कर सुनातीं, और हर मुश्किल घड़ी में उनका हौसला बढ़ाया।
“माँ का साथ और खुद पर विश्वास – यही रवि की सफलता का राज है!”

क्या सीख मिलती है?
- हार नहीं माननी चाहिए – रवि ने चार बार कोशिश की, आखिरी बार जीत हासिल की।
- समर्थन का महत्व – एक माँ के सहारे ने उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया।
- लक्ष्य से भटकना नहीं – BPSC की नौकरी मिलने के बाद भी उन्होंने IAS का सपना नहीं छोड़ा।
“जब इरादे मजबूत हों, तो रुकावटें रास्ते नहीं, सीढ़ियाँ बन जाती हैं!”
ये कहानी साबित करती है कि शारीरिक अक्षमताएं हमारे सपनों की उड़ान को रोक नहीं सकतीं, बशर्ते हमारे पास जुनून और सहयोग का साथ हो।