भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के चलते जंग का दौर महज चार दिन चला, लेकिन इसकी मार झेल रहे मासूमों के लिए यह जिंदगीभर का दर्द बनकर रह गया। जम्मू-कश्मीर के पुंछ में रहने वाले 12 साल के जुड़वा भाई-बहन अयान और जोया की मासूम सांसें इसी जंग की भेंट चढ़ गईं। उनकी कहानी उस कड़वी सच्चाई को बयां करती है, जहां राजनीतिक टकराव की सबसे बड़ी कीमत आम लोग चुकाते हैं।
एक सामान्य दिन जो बन गया काल
7 मई 2025 की सुबह जब पूरी दुनिया ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा कर रही थी, पुंछ का एक परिवार अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त था:
- अयान और जोया स्कूल गए, बेखबर कि सरहद पर गोलाबारी हो रही है।
- घर लौटकर मां के हाथ का बना पसंदीदा खाना खाया, खेले और होमवर्क किया।
- रात को सोने चले गए—लेकिन अचानक धमाकों ने उनकी दुनिया हिला दी।
पिता रमीज खान (एक शिक्षक) और मां उरूसा धमाकों की आवाज से चौंककर जागे। बच्चों को लेकर सुबह का इंतजार करने लगे, ताकि किसी सुरक्षित जगह निकल सकें।
भागने की कोशिश में हुआ सबकुछ खत्म
सुबह 6 बजे परिवार ने घर छोड़ा:
- रमीज ने अयान का हाथ थामा, उरूसा ने जोया का।
- कुछ कदम चले ही थे कि एक मिसाइल ने सबकुछ तबाह कर दिया।
- जोया की मौत तत्काल हो गई, अयान को बचाने की कोशिश भी नाकाम रही।
- रमीज गंभीर रूप से घायल हो गए, उरूसा ने खुद अपने बच्चों को दफनाया।
जख्म जो कभी नहीं भरेंगे
- रमीज अस्पताल में हैं, अब तक नहीं जानते कि उनके बच्चे नहीं रहे।
- उरूसा शारीरिक और मानसिक रूप से टूट चुकी हैं।
- बच्चों की मौसी का कहना— “सीजफायर हो गया, लेकिन हमारे खोए हुए लौटकर नहीं आएंगे।”
क्या था इन मासूमों का कसूर?
परिवार ने महज दो महीने पहले पुंछ में बच्चों की पढ़ाई के लिए नया घर लिया था। वह घर जो उनके भविष्य की उम्मीद था, वही उनकी मौत का कारण बन गया।

कितने और मासूम मारे गए?
अयान-जोया अकेले शिकार नहीं थे:
- 2 साल की आइशा नूर भी पाकिस्तानी गोलाबारी में मारी गई।
- 20 से ज्यादा निर्दोष नागरिकों की जान गई।
- सैकड़ों परिवार बेघर हो गए।
पाकिस्तान का विवादास्पद ‘जश्न’
मासूमों की लाशें ठंडी भी नहीं हुई थीं कि पाकिस्तान में जीत का जश्न शुरू हो गया:
- पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने भारत के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए।
- सवाल उठा— यह जश्न किस बात का? क्या मासूमों की हत्या का?
किसकी गलती है?
- पाकिस्तान ने सीमावर्ती गांवों को निशाना बनाया, जहां सिर्फ आम लोग रहते हैं।
- भारत का ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले (26 मौतें) का जवाब था। लेकिन जंग में सबसे ज्यादा तबाही बेगुनाहों की ही होती है।
समापन: एक सवाल जो मायने रखता है
जंग खत्म हो जाती है, लेकिन दर्द कभी नहीं जाता। अयान और जोया के परिवार के लिए कोई मुआवजा उनकी जिंदगी वापस नहीं ला सकता। सवाल यह है— क्या इंसानियत कभी सियासत से ऊपर उठ पाएगी?
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