इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक भारत में हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट की सेवा शुरू करने जा रही है। टेलीकॉम विभाग ने कंपनी को ट्रायल के लिए 6 महीने का प्राविजनल स्पेक्ट्रम देने की मंजूरी दी है। इस ट्रायल के दौरान स्टारलिंक भारत में 10 स्थानों पर बेस स्टेशन स्थापित करेगी, जिसमें मुंबई मुख्य केंद्र होगा।
ट्रायल के लिए आवश्यक लाइसेंस और हार्डवेयर
स्टारलिंक ने भारत में अपने इक्विपमेंट इंपोर्ट लाइसेंस के लिए आवेदन किया है। इसमें लैंडिंग स्टेशन हार्डवेयर शामिल है, जो सैटेलाइट सिग्नल को जमीन के नेटवर्क से जोड़ेगा। ट्रायल के दौरान सिक्योरिटी और टेक्निकल स्टैंडर्ड्स की पूरी जांच की जाएगी, जिसके बाद हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट को आधिकारिक रूप से लॉन्च किया जा सकेगा।
डेटा सुरक्षा और सरकार की शर्तें
भारत सरकार ने स्टारलिंक के लिए कड़ी सिक्योरिटी शर्तें रखी हैं:
- सभी डेटा भारत में स्टोर करना होगा।
- इंटेलिजेंस एजेंसियों को डेटा साझा करने की सुविधा देनी होगी।
- यूजर टर्मिनल की जानकारी जैसे नाम, पता और लोकेशन टेलीकॉम विभाग को रिपोर्ट करनी होगी।
- ट्रायल समाप्त होने के बाद पूरी रिपोर्ट जमा करनी होगी।
सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है?
स्टारलिंक का सैटेलाइट नेटवर्क सीधे यूजर तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाता है। इसके लाभ हैं:
- लो-लेटेंसी इंटरनेट – डेटा तेजी से एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक पहुंचता है।
- कवरिंग दूरदराज इलाकों – गांव और पहाड़ी क्षेत्रों में भी इंटरनेट उपलब्ध।
- उपयोग में आसान स्टारलिंक किट – इसमें डिश, वाई-फाई राउटर, पॉवर सप्लाई केबल्स और माउंटिंग ट्राइपॉड शामिल हैं।
- iOS और एंड्रॉइड ऐप के माध्यम से सेटअप और मॉनिटरिंग संभव।
भारत में स्टारलिंक क्यों खास है?
- स्टारलिंक के सैटेलाइट्स पृथ्वी के नज़दीकी ऑर्बिट में रहते हैं, जिससे इंटरनेट तेज और स्थिर होता है।
- यह सेवा मुख्य रूप से ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में इंटरनेट पहुँचाने में मदद करेगी।
- शिक्षा, टेलीमेडिसिन और बिजनेस क्षेत्रों में ऑनलाइन सुविधा बढ़ेगी।
- टेलीकॉम मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से सस्ते और बेहतर इंटरनेट प्लान्स मिल सकते हैं।
लाइसेंस मिलने में हुई देरी
स्टारलिंक को भारत में लाइसेंस मिलने में समय लगा क्योंकि सरकार ने डेटा सुरक्षा और कॉल इंटरसेप्शन जैसी शर्तें रखी थीं। 2025 में लेटर ऑफ इंटेंट मिलने के बाद अब ट्रायल और ऑपरेशन की मंजूरी मिल गई है।