BY: Yoganand Shrivastva
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत को अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की अनुशंसा भेज दी है। परंपरा के अनुसार, सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। 24 नवंबर 2025 को जस्टिस सूर्यकांत देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। मौजूदा सीजेआई गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
कार्यकाल कितना लंबा होगा?
जस्टिस सूर्यकांत को मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। सीजेआई बनने के बाद उनका कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा। वे 9 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।
कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था। वे एक सामान्य ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं — उनके परिवार का कानून से कोई सीधा संबंध नहीं था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव पेटवार में पूरी की और 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (MDU) से एलएलबी की डिग्री हासिल की।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिसार जिला अदालत से की, बाद में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। 38 वर्ष की उम्र में वे हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता (Advocate General) बने। वर्ष 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
जस्टिस सूर्यकांत के 4 चर्चित केस
रणवीर अल्लाहबादिया केस
फेमस यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था — “इस व्यक्ति की सोच समाज में गंदगी फैला रही है, लोकप्रियता किसी को मर्यादा तोड़ने की छूट नहीं देती।”
नूपुर शर्मा केस
बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान पर मचे बवाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था — “देश में जो माहौल बना है, उसकी जिम्मेदारी उन्हीं की है। सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को अपने शब्दों का असर समझना चाहिए।”
स्वाति मालीवाल हमला केस
आप सांसद स्वाति मालीवाल पर हमले के मामले में उन्होंने तीखी टिप्पणी की — “क्या यह मुख्यमंत्री का आवास है या किसी गुंडे का अड्डा? एक महिला पर हमला करने में किसी को शर्म नहीं आई?”
मोहम्मद जुबैर केस
फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर सुनवाई करते हुए उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में कहा — “किसी नागरिक को अपनी राय रखने से रोकना असंवैधानिक है। सोशल मीडिया पर विचार प्रकट करना मौलिक अधिकार है।”
अन्य अहम फैसले और टिप्पणियां
- औपनिवेशिक दौर के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने वाली बेंच का हिस्सा रहे।
- चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए निर्वाचन आयोग से मतदाता सूची की समीक्षा संबंधी रिपोर्ट मांगी।
- बार एसोसिएशनों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की सिफारिश की।
- वन रैंक, वन पेंशन (OROP) योजना को संवैधानिक रूप से सही ठहराया।
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का मार्ग प्रशस्त करने वाली सात-सदस्यीय बेंच में शामिल रहे।
- पेगासस स्पाइवेयर निगरानी प्रकरण की जांच के लिए समिति गठित करने वाली बेंच का हिस्सा रहे।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा में सुरक्षा चूक की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की जज इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में समिति गठित करने का निर्देश दिया।





