बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन की स्मृति है जिसने पूरी मानवता को करुणा, अहिंसा और आत्मबोध का रास्ता दिखाया। आज जब विश्व रूस-यूक्रेन संघर्ष, इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और परमाणु हथियारों की होड़ जैसे संकटों से जूझ रहा है, तो यह सवाल बेहद प्रासंगिक हो जाता है — क्या गौतम बुद्ध की शिक्षाएं केवल आध्यात्मिक मोक्ष तक सीमित हैं या वे आधुनिक कूटनीति और वैश्विक शांति का मार्ग भी सुझा सकती हैं?
बुद्ध की करुणा: एक गहरी रणनीति, न कि केवल भावना
गौतम बुद्ध की करुणा (Karuna) सिर्फ भावनात्मक सहानुभूति नहीं थी। यह एक सक्रिय नैतिक रणनीति थी जो किसी की पीड़ा को केवल देखने भर तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उसे दूर करने की प्रेरणा देती है।
आज की वैश्विक राजनीति में करुणा की भूमिका
- जब राष्ट्र अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं…
- जब सैन्य ताकत को ही समाधान माना जाता है…
- तब करुणा एक अप्रासंगिक शब्द लगती है।
लेकिन यहीं पर बुद्ध की करुणा हमें यह सिखाती है कि संपर्क और संवेदना के बिना स्थायी समाधान संभव नहीं।
अहिंसा और कूटनीति: गांधी से लेकर थिच न्यात हान तक
गांधी जी की अहिंसात्मक क्रांति
महात्मा गांधी ने बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर अहिंसा को एक राजनीतिक हथियार बनाया। उन्होंने बिना खून बहाए ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।
‘Engaged Buddhism’ और थिच न्यात हान
वियतनामी बौद्ध भिक्षु थिच न्यात हान ने युद्धकाल में “Engaged Buddhism” की संकल्पना दी। उनका मानना था कि बौद्ध विचार सिर्फ ध्यान तक सीमित न रहें, बल्कि समाज की समस्याओं में भागीदारी निभाएं।
वैश्विक मंचों पर प्रासंगिकता
- संयुक्त राष्ट्र (UN)
- G20 सम्मेलन
- COP जलवायु वार्ता
इन सभी मंचों पर यदि सैन्य और आर्थिक दंड की जगह बौद्ध करुणा और सम्यक दृष्टि को अपनाया जाए, तो समाधान अधिक टिकाऊ हो सकते हैं।

बौद्ध दर्शन से प्रेरित वैश्विक कूटनीति का मॉडल
1. संपत्ति नहीं, संप्रेषणीयता की सोच
बुद्ध का “अप्प दीपो भव” (स्वयं दीपक बनो) संदेश कहता है:
- आत्मनिर्भर बनो
- दूसरों को भी प्रेरित करो
- यही है ‘Win-Win Diplomacy’
2. मूल कारण पर वार
बुद्ध ने दुःख का कारण बताया था — “तृष्णा” (लालच)।
- वैश्विक कूटनीति अक्सर लक्षणों से जूझती है
- जबकि मूल समस्या है – वर्चस्व की इच्छा, असुरक्षा और लालच
3. सम्यक दृष्टि अपनाओ
हर राष्ट्र अपनी कहानी गढ़ता है — “हम सही, बाकी गलत।”
बुद्ध की सम्यक दृष्टि सिखाती है:
- निष्पक्ष सोचो
- सबका दृष्टिकोण समझो
- तभी वास्तविक शांति संभव है
बौद्ध राष्ट्रों की शांति नीति: क्या हमें उनसे सीखना चाहिए?
भूटान
- बौद्ध धर्म पर आधारित नीतियाँ
- Global Peace Index में लगातार ऊंचा स्थान
जापान
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सैन्य आक्रामकता को त्यागा
- तकनीक और शांति दोनों में अग्रणी
थाईलैंड और श्रीलंका
- जब नेतृत्व ने करुणा आधारित निर्णय लिए, गृहयुद्ध जैसे संकट भी शांति से सुलझे
क्या बौद्ध करुणा आज के समय में व्यावहारिक है?
कुछ आलोचक कहते हैं कि बुद्ध की शिक्षाएं आदर्शवादी हैं, व्यवहार में नहीं उतर सकतीं। लेकिन आज की ‘रीयलपॉलिटिक’ (Realpolitik) सोच ने ही:
- युद्ध बढ़ाए हैं
- तनाव को जन्म दिया है
- लाखों लोगों को विस्थापित किया है
इसलिए ज़रूरत है एक “बुद्धिजीवी ब्रेक” की — यानी बुद्ध के दृष्टिकोण को अपनाने की। करुणा अब केवल आध्यात्मिक नहीं, कूटनीतिक ताकत बन सकती है।
निष्कर्ष: बुद्ध पूर्णिमा 2025 को नया अर्थ दें
बुद्ध पूर्णिमा को सिर्फ पूजा और प्रवचन तक सीमित रखना आज की जरूरतों के साथ न्याय नहीं करता। हमें चाहिए कि:
- बुद्ध के ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ सिद्धांत को
- वैश्विक कूटनीति और नीति-निर्माण का केंद्र बनाएं
क्यों जरूरी है यह बदलाव?
- क्योंकि दुनिया एक बार फिर युद्ध की दहलीज़ पर है
- क्योंकि पुराने समाधान अब कारगर नहीं रहे
- और क्योंकि बुद्ध की शिक्षाएं हमें आंतरिक शांति के साथ वैश्विक समाधान भी दे सकती हैं
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