मुहम्मद यूनुस — नोबेल पुरस्कार विजेता और ग्रामीण बैंक के संस्थापक — जो कभी बांग्लादेश के गरीबों के रक्षक के रूप में जाने जाते थे, आज एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक चाल का केंद्र बने हुए हैं। अगस्त 2024 में शेख हसीना के अचानक इस्तीफे के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार बने यूनुस ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।
परिचय: सत्ता का खेल और अंतरराष्ट्रीय दांव-पेंच
मुहम्मद यूनुस के पास बांग्लादेश की सरकार में प्रधानमंत्री के बराबर अधिकार हैं। संविधान के अनुसार, उनका मुख्य काम है संसद चुनाव करवाना ताकि चुनी हुई सरकार फिर से सत्ता में आ सके। लेकिन अब तक उन्होंने चुनाव टालने की बात कही है और 2026 तक चुनाव कराने की संभावना जताई है। इस बीच, वे पाकिस्तान और चीन की ओर महत्वपूर्ण दौरे कर रहे हैं — दोनों देश बांग्लादेश में अपनी रणनीतिक रुचि बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं।
चीन की रणनीति: बेल्ट एंड रोड का महत्व
- बांग्लादेश चीन की दक्षिण एशिया नीति में महत्वपूर्ण कड़ी है।
- चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत बांग्लादेश में बड़े-बड़े बुनियादी ढांचे में निवेश हो रहा है।
- लोकतांत्रिक सरकार इस निवेश की पुनः समीक्षा कर सकती है, जबकि तकनीशियन यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार चीन के लिए स्थिरता का संकेत है।
- चुनाव टालने की बहाने के पीछे चीन का उद्देश्य अपने दीर्घकालीन निवेश की सुरक्षा है।
चीन के लिए चुनावों में देरी, ‘राष्ट्रीय सहमति’ और ‘चुनावी सुधार’ के नाम पर, उनके अपने एकदलीय, नियंत्रित शासन मॉडल की नकल है।
पाकिस्तान की रणनीति: रणनीतिक लाभ और धार्मिक छवि
- पाकिस्तान का मकसद बुनियादी तौर पर अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाना और बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत करना है।
- शेख हसीना के शासनकाल में भारत से मजबूत संबंध थे और आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई होती थी। हसीना के जाने के बाद पाकिस्तान के लिए मौका बन गया है।
- पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI कथित रूप से इस राजनीतिक बदलाव में सक्रिय रही है।
- पाकिस्तान चाहता है कि बांग्लादेश जम्मू-कश्मीर जैसे विवादों में उनके पक्ष में रहे और भारत के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को कम आंकें।
यूनुस ने हाल ही में विजय दिवस पर भारत और शेख मुजीबुर रहमान का कोई उल्लेख नहीं किया, जो पाकिस्तान की आलोचनात्मक सोच को दर्शाता है।
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव
- यूनुस की सरकार में कट्टरपंथी समूह जैसे जमात-ए-इस्लामी (JeI) फिर से उभर रहे हैं।
- JeI पहले हसीना सरकार द्वारा प्रतिबंधित था, लेकिन अब इसे राजनीतिक गतिविधियों में खुली छूट मिल रही है।
- यह समूह सरकार के अंदर तक अपनी पकड़ बना रहा है, जिससे बांग्लादेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है।
- Hizb ut-Tahrir जैसे प्रतिबंधित समूह फिर से सक्रिय हुए हैं और कट्टरपंथी धार्मिक नेता रिहा किए गए हैं।
इससे यह संकेत मिलता है कि यूनुस सरकार इन कट्टरपंथी ताकतों को रोकने में नाकाम या अनिच्छुक है।
बांग्लादेश के लोकतंत्र पर असर और राजनीतिक असंतोष
- बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) सहित कई राजनीतिक दल चुनावों में देरी से चिंतित हैं और लोकतंत्र की वापसी के लिए दबाव बना रहे हैं।
- सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमां के साथ यूनुस के बीच भी सत्ता को लेकर विवाद बताया जा रहा है।
भारत के लिए रणनीतिक चुनौती
- भारत हमेशा से बांग्लादेश का करीबी मित्र रहा है। लेकिन अब भारत-प्रिय सरकार के हटने के बाद संबंधों में अनिश्चितता बढ़ी है।
- यूनुस सरकार की नीतियां भारत के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं, खासकर अगर बांग्लादेश चीन और पाकिस्तान के करीब आता है।
- भारत ने अभी तक चुनाव कराने की अपील की है और यूनुस के कार्यकाल को स्थायी मान्यता नहीं दी है।
निष्कर्ष: बांग्लादेश की राजनीति में बाहरी शक्तियों का दखल
चीन और पाकिस्तान दोनों ही चाहते हैं कि यूनुस सत्ता में बना रहे ताकि लोकतांत्रिक ताकतों को कमजोर किया जा सके और अपनी अपनी रणनीतिक योजनाएं बिना रुकावट पूरी की जा सकें।
यूनुस, जो कभी गरीबों के लिए काम करने वाला शांति प्रिय अर्थशास्त्री था, अब अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक खेल का हिस्सा बन गया है। बांग्लादेश के लोकतंत्र के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है और भारत सहित क्षेत्रीय देशों के लिए इसकी गहरी निहितार्थ हैं।