चीन-ईरान गठजोड़: क्या अमेरिका मिडिल ईस्ट में फंस जाएगा?

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चीन ईरान अमेरिका रणनीति

मध्य-पूर्व में चल रहे तनाव और चीन की गतिविधियों ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। बीते दिनों चीन के पांच कार्गो विमान रहस्यमय तरीके से ईरान के पास पहुंचते ही रडार से गायब हो गए। ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है — क्या यह सिर्फ संयोग था या चीन की कोई बड़ी जियोस्ट्रैटेजिक चाल?

आइए, जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम के पीछे छिपा चीन-ईरान-अमेरिका-इजराइल का गेम प्लान।


चीन के कार्गो प्लेन कहां गए? बड़ी मिस्ट्री

  • 15, 16 और 17 जून को पांच चीनी कार्गो विमान चीन से निकले।
  • ये विमान नॉर्थ चाइना, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान होते हुए ईरान के पास पहुंचे।
  • ईरान की सीमा के पास पहुंचते ही सभी विमान अचानक रडार से गायब हो गए।
  • आधिकारिक रिकॉर्ड्स के अनुसार, इन विमानों को यूरोप जाना था, लेकिन कोई भी यूरोप नहीं पहुंचा।

सवाल उठता है:

  • ये विमान किस लिए जा रहे थे?
  • क्या इन विमानों में मिलिट्री इक्विपमेंट था?
  • कहीं ये ईरान को सीक्रेट सपोर्ट देने का तरीका तो नहीं?

फिलहाल कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है कि ये विमान ईरान में उतरे भी या नहीं। लेकिन इनकी टाइमिंग और डेस्टिनेशन ने संदेह को हवा दी है।


चीन को ईरान में दिलचस्पी क्यों?

चीन के ईरान से गहरे आर्थिक हित जुड़े हैं:

  • चीन अपनी 16% तेल जरूरतें ईरान से पूरी करता है।
  • पूरे गल्फ रीजन से चीन को 50% से ज्यादा तेल सप्लाई होती है।
  • अगर ईरान पर हमला होता है या स्ट्रेट ऑफ होर्मुज ब्लॉक होता है, तो इसका सीधा असर चीन की ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ेगा।

यही वजह है कि चीन ईरान के पीछे खड़ा नजर आता है।


अमेरिका को उलझाना चाहता है चीन?

अगर ईरान और इजराइल के बीच जंग लंबी चलती है और उसमें अमेरिका भी फंस जाता है, तो इसका फायदा सीधे-सीधे चीन को होगा:

✅ अमेरिका का ध्यान बंटेगा।
✅ अमेरिका की फौज, पैसा और ऊर्जा ईरान में खप जाएगी।
✅ चीन को ताइवान पर फोकस करने का मौका मिलेगा।
✅ अमेरिका एक और ‘नेवर एंडिंग वॉर’ में उलझ जाएगा।

यही स्ट्रैटेजी अमेरिका खुद रूस के खिलाफ यूक्रेन में आजमा चुका है।


ईरान-रूस की दूरियां, चीन को मौका

हालांकि ईरान और रूस के रिश्ते नजदीकी जरूर हैं, लेकिन दोनों में पूरी भरोसेमंद पार्टनरशिप नहीं है:

  • रूस ने ईरान को एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम और फाइटर जेट्स देने का वादा किया, लेकिन पूरा नहीं किया।
  • रूस इजराइल को नाराज़ नहीं करना चाहता क्योंकि:
    • रूस-इजराइल के बीच मजबूत डिफेंस और सांस्कृतिक संबंध हैं।
    • करीब 10 लाख से ज्यादा इजराइली रूसी भाषा बोलते हैं।

दूसरी ओर ईरान भी रूस पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करता।
वो यूरोप और दूसरे देशों के साथ ट्रेड और डिप्लोमेसी बनाए रखना चाहता है।


चीन का अलग गेम: बिना गोली चलाए असर बढ़ाना

चीन ने मिडिल ईस्ट में खुद को अलग तरीके से स्थापित किया है:

  • चीन की कोई कॉलोनियल हिस्ट्री नहीं है।
  • उसने कभी मिडिल ईस्ट में हमला नहीं किया।
  • चीन सिर्फ ट्रेड, एनर्जी और इन्फ्लुएंस चाहता है।
  • 2021 में चीन-ईरान ने 25 साल का स्ट्रैटेजिक डील साइन किया, जिसके तहत:
    • चीन को ईरान का सस्ता तेल मिलेगा।
    • ईरान को बिलियंस डॉलर की इंफ्रास्ट्रक्चर और टेलीकॉम में इन्वेस्टमेंट मिलेगी।
    • चीन को मिडिल ईस्ट में मजबूत आधार मिलेगा।

बिना जंग लड़े चीन मिडिल ईस्ट में अपने पैर जमा रहा है, जबकि अमेरिका युद्धों में उलझा हुआ है।


चीन-ईरान गठजोड़: क्या भविष्य में बढ़ेगा दबदबा?

ईरान के हालिया हालात पर नजर डालें:

  • इजराइल के हमलों के बावजूद ईरान अब तक कमजोर नहीं पड़ा है।
  • अगर भविष्य में हालात बदले और ईरान अस्थिर हुआ:
    • चीन उसे लोन देगा।
    • चीन हथियार देगा।
    • चीन नई डील्स करेगा।

लेकिन इसमें चीन की ‘हिडन कंडीशंस’ होंगी।
धीरे-धीरे ईरान चीन पर डिपेंडेंट होता जाएगा — आर्थिक और राजनीतिक रूप से।


चीन की असली मंशा क्या है?

चीन नहीं चाहता कि ईरान सीधे उसका ‘पपेट’ बने, बल्कि:

  • ईरान अमेरिका को उलझाए।
  • अमेरिका थकता रहे।
  • चीन को ताइवान और पूर्वी एशिया में ब्रीदिंग स्पेस मिले।
  • अमेरिका की मिलिट्री पावर और प्लानिंग कमजोर हो।

यही फॉर्मूला अमेरिका ने रूस के खिलाफ यूक्रेन में अपनाया।
अब चीन उसी रणनीति से अमेरिका को घेरना चाहता है।


नतीजा: चीन के पास समय है, अमेरिका के पास उलझन

अगर:

  • ईरान-इजराइल संघर्ष बढ़ता है,
  • अमेरिका फुल स्केल जंग में उतरता है,
  • ईरान टूटने से बच जाता है,

तो चीन:

  • ईरान को चुपचाप सपोर्ट देगा।
  • अमेरिका के खिलाफ अपनी तैयारी करेगा।
  • ताइवान पर फोकस बढ़ाएगा।
  • मिडिल ईस्ट में बिना गोली चलाए दबदबा बनाएगा।

चीन को बस इतना चाहिए कि अमेरिका एक और थकाऊ युद्ध में उलझ जाए।
बाकी काम अपने आप आसान हो जाएंगे।


निष्कर्ष

मिडिल ईस्ट का मौजूदा संघर्ष सिर्फ तेल और भू-राजनीति का खेल नहीं है, बल्कि यह चीन-अमेरिका के बीच चल रही रणनीतिक जंग का हिस्सा है। चीन धीरे-धीरे बिना सीधे टकराव के अमेरिका की कमजोरी का फायदा उठा रहा है।

क्या चीन की यह चाल कामयाब होगी?
क्या अमेरिका ईरान में फंस जाएगा?
या दुनिया को एक और बड़ा भू-राजनीतिक उलटफेर देखने को मिलेगा?

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