उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके को लेकर एक कहावत है—यहां की मिट्टी में लोहा है, इसलिए यहां के लोग निडर और जज्बे से भरे होते हैं। इन्हीं निडर चेहरों में एक नाम है—धनंजय सिंह, पूर्व सांसद और बाहुबली छवि के लिए कुख्यात। आइए जानते हैं उनके जीवन के उस दौर को, जब उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से लेकर अपराध की दुनिया में कदम रखा।
जब धनंजय सिंह ने रखा राजनीति और अपराध की ओर पहला कदम
धनंजय सिंह का जन्म जौनपुर जिले में हुआ। पिता राजदेव सिंह चंदेल ने महसूस किया कि छोटा बेटा बिगड़ रहा है। उन्होंने बड़े बेटे जितेंद्र सिंह को कहा कि उसे लखनऊ भेज दो।
साल 1992, धनंजय सिंह का दाखिला लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुआ। वहां उनका कमरा मिला—गोल्डन जुबली हॉस्टल, कमरा नंबर 39। यह हॉस्टल पहले से ही दबंग छात्रों की वजह से मशहूर था। यहां अभय सिंह, अरुण उपाध्याय, केडी सिंह और बबलू काका जैसे नाम पहले से मौजूद थे।
“25 साल की उम्र में विधायक बनूंगा” – धनंजय सिंह की पहली घोषणा
यूनिवर्सिटी में नए छात्रों का इंट्रोडक्शन चल रहा था। जब धनंजय से उनके जीवन के मकसद के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने पूरे कॉन्फिडेंस से कहा—
“जिस दिन 25 साल का हो जाऊंगा, विधायक बन जाऊंगा।”
सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने 60 से ज्यादा हथियारों के नाम और उनकी खूबियां भी बता दीं। इस आत्मविश्वास और दबंग छवि ने वहां मौजूद छात्रों को हैरान कर दिया। तभी अरुण उपाध्याय ने कहा—“गोल्डन जुबली का सितारा आ गया है।”
लखनऊ यूनिवर्सिटी की गुटबाजी और पहला बड़ा टकराव
लखनऊ यूनिवर्सिटी का माहौल उस समय बेहद तनावपूर्ण था। सबसे बड़ी दुश्मनी थी:
- हबीबुल्ला हॉस्टल गुट (नेता: अनिल सिंह, वीरू अनिल, ओमकार भारती, धर्मेंद्र सिंह)
- गोल्डन जुबली हॉस्टल गुट (नेता: अभय सिंह, धनंजय सिंह, अरुण उपाध्याय)
हबीबुल्ला हॉस्टल का गुट अक्सर मारपीट में भारी पड़ता था, जो धनंजय सिंह को बिल्कुल पसंद नहीं था। सितंबर 1993 में हबीबुल्ला गुट ने गोल्डन जुबली के एक छात्र की पिटाई कर दी।
धनंजय सिंह का बदला:
- 20-25 लड़कों के साथ हथियारों से लैस होकर हबीबुल्ला हॉस्टल की ओर बढ़े।
- बीच रास्ते में धर्मेंद्र सिंह मिल गया।
- उसे घेरकर जमकर पीटा।
- हॉस्टल के बाहर हवाई फायरिंग की और सख्त चेतावनी दी—“अगर दोबारा हमारे हॉस्टल के किसी लड़के से भिड़े, तो गोलियां सीधी सीने में उतरेंगी।”
इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी में धनंजय सिंह का खौफ फैल गया।
कमरा नंबर 39 से शुरू हुआ ‘पूर्वांचल गुट’ और वसूली का खेल
धनंजय सिंह ने गोल्डन जुबली हॉस्टल के कमरा नंबर 39 को अपना अड्डा बना लिया। यहीं से:
- पूर्वांचल गुट का गठन हुआ।
- वसूली का सिलसिला शुरू हुआ।
- छात्र ही नहीं, बाहरी लोग भी अपने काम निकलवाने वहां आने लगे।
साल 1994 में छात्र संघ चुनाव में उनका गुट हार गया, पर धनंजय सिंह का नाम तेजी से फैलता गया।
ठेके-पट्टों और ‘गुंडा टैक्स’ की दुनिया में कदम
90 के दशक में लखनऊ में ठेके-पट्टों का कारोबार खूब चलता था, खासतौर पर:
- रोड कंस्ट्रक्शन
- रेलवे का स्क्रैप बिजनेस
इस धंधे में अजीत सिंह का दबदबा था। लेकिन धनंजय सिंह ने अधिकारियों का अपहरण और धमकाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे:
- अधिकारी भी डरने लगे।
- धनंजय खुद ठेके नहीं लेते थे, लेकिन हर ठेके से ‘गुंडा टैक्स’ वसूलते थे।
अजीत सिंह बनाम धनंजय सिंह टकराव हुआ, लेकिन अंत में अजीत सिंह को पीछे हटना पड़ा और धनंजय सिंह इस धंधे का नया बाहुबली बन गए।
चर्चित हत्याएं और धनंजय सिंह का नाम
1. फ्रेडरिक गोम्स हत्याकांड (7 मार्च 1997)
- ला मार्टिनियर स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर की 18 राउंड फायरिंग में हत्या।
- कारण: एक छात्र ने गर्लफ्रेंड के सामने थप्पड़ पड़ने का बदला लेने के लिए सुपारी दी।
- इस मामले में धनंजय सिंह का नाम भी आया, लेकिन सालों बाद वह बरी हो गए।
2. इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या (19 जुलाई 1997)
- सुबह 10:30 बजे बाइक सवार दो बदमाशों ने गोली मार दी।
- धनंजय सिंह का नाम एफआईआर में आया।
- इसके बाद वह फरार हो गए।
यूपी पुलिस का शिकंजा और 50,000 रुपये का इनाम
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने कड़ा रुख अपनाया। लखनऊ और जौनपुर में दबिशें चलीं, लेकिन धनंजय सिंह पुलिस की पकड़ में नहीं आए।
- यूपी पुलिस ने उनके ऊपर ₹50,000 का इनाम घोषित कर दिया।
- धनंजय सिंह अंडरग्राउंड हो गए।
आगे क्या हुआ?
धनंजय सिंह ने फरारी के दिन कहां और कैसे काटे? एनकाउंटर के बावजूद वह कैसे बच निकले? और कौन था जिसने उन पर गोलियां चलाईं?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी अगली रिपोर्ट।
निष्कर्ष
धनंजय सिंह की कहानी पूर्वांचल की राजनीति, छात्र संघ की गुटबाजी और अपराध की दुनिया का एक दिलचस्प मगर खौफनाक चेहरा सामने लाती है। उनका सफर बताता है कि कैसे एक साधारण छात्र, धीरे-धीरे बाहुबली, फिर सांसद और विवादों का हिस्सा बन जाता है।