अयातुल्ला खुमैनी की अनसुनी भारतीय कहानी | खुमैनी का भारत कनेक्शन

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अयातुल्ला खुमैनी का भारतीय कनेक्शन

20वीं सदी में जब भी दुनिया की सबसे बड़ी क्रांतियों की बात होती है, तो ईरान की इस्लामिक क्रांति और उसके अगुआ अयातुल्ला रुहुल्लाह खुमैनी का नाम जरूर लिया जाता है। खुमैनी ने न सिर्फ ईरान की सूरत बदल दी, बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति पर गहरा असर डाला। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस क्रांति के जनक की जड़ें कहीं और नहीं, बल्कि भारत में हैं।

भारत से शुरू हुई खुमैनी परिवार की कहानी

यह कहानी शुरू होती है 18वीं सदी के भारत से, जब मुगल सल्तनत ढलान पर थी और अवध एक स्वतंत्र रियासत के रूप में उभर रहा था। उसी दौर में ईरान के निशापुर शहर से एक शिया मुस्लिम परिवार भारत आया। यही खुमैनी के पूर्वज थे।

अवध की तहजीब और खुमैनी का परिवार

  • यह परिवार अवध के लखनऊ से कुछ दूर किंतूर कस्बे में बस गया।
  • अवध की पहचान उस समय सांस्कृतिक और धार्मिक सहिष्णुता के लिए होती थी।
  • नवाबों के दरबार में कला, संगीत, शायरी और कथक जैसे नृत्य का खूब प्रचलन था।
  • इसी माहौल में खुमैनी के दादा, सैयद अहमद मुसावी का जन्म हुआ।

‘हिंदी’ नाम बना पहचान का हिस्सा

सैयद अहमद मुसावी को ‘हिंदी’ की उपाधि दी गई। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि उनकी जड़ों का प्रमाण था। वह भारत में पैदा हुए, यहीं पले-बढ़े और यह ‘हिंदी’ शब्द उनकी पहचान में हमेशा बना रहा।

उनका परिवार कुलीन शिया वर्ग से था, जिसे ‘मुसावी सैयद’ कहा जाता था—यानि पैगंबर मोहम्मद के वंशज।

सैयद अहमद का सफर: भारत से ईरान

सैयद अहमद का सपना था कि वे इराक के नजफ और कर्बला की जियारत करें। 1830 के दशक में उन्होंने कठिन सफर तय किया:

  • अवध से इराक का रेगिस्तानी इलाका पार करते हुए नजफ पहुंचे।
  • नजफ में उनकी मुलाकात यूसुफ खान नामक एक अमीर ईरानी जमींदार से हुई।
  • यूसुफ खान के कहने पर सैयद अहमद ने भारत लौटने का इरादा बदल दिया और उनके साथ ईरान चले गए।

ईरान में खुमैन शहर में बसावट

  • सैयद अहमद ने ईरान के खुमैन (Humain) शहर में बसने का फैसला किया।
  • 1839 में उन्होंने वहां एक बड़ा घर और बाग खरीदा।
  • धीरे-धीरे वो खुमैन के सबसे सम्मानित और अमीर लोगों में शामिल हो गए।

सैयद अहमद ने स्थानीय परिवारों में शादियां कीं और पूरी तरह ईरानी समाज में रच-बस गए, लेकिन ‘हिंदी’ नाम उनके साथ जुड़ा रहा।

अगली पीढ़ी: सैयद मुस्तफा मुसावी

सैयद अहमद के बेटे सैयद मुस्तफा मुसावी का जन्म ईरान में हुआ। उनके खून में हिंदुस्तान था, लेकिन पहचान पूरी तरह ईरानी बन चुकी थी।

  • मुस्तफा ने धार्मिक शिक्षा नजफ और समारा के प्रमुख शिया केंद्रों में ली।
  • 1890 के दशक में वे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ राजनीति से भी प्रभावित हुए।

तंबाकू आंदोलन से मिली प्रेरणा

उसी दौर में ईरान में तंबाकू आंदोलन हुआ:

  • ईरान के शाह ने तंबाकू व्यापार का ठेका ब्रिटिश कंपनी को दे दिया।
  • नजफ के प्रसिद्ध धर्मगुरु मिर्जा हसन शिराजी ने फतवा जारी कर तंबाकू को हराम करार दिया।
  • पूरे देश में विद्रोह हुआ और शाह को झुकना पड़ा।

इस घटना ने मुस्तफा जैसे युवाओं को समझा दिया कि एक धर्मगुरु भी सत्ता को चुनौती दे सकता है।

खुमैन में सामाजिक नेता के रूप में उभार

  • 1894 में पढ़ाई पूरी कर मुस्तफा ईरान लौटे।
  • वे केवल धार्मिक नेता ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता और जमींदार भी बन गए।
  • उन्होंने गरीबों के हक के लिए आवाज उठाई, जिससे स्थानीय ताकतवर लोग उनसे चिढ़ने लगे।

मुस्तफा की हत्या और उसका असर

मार्च 1903 में जब अयातुल्ला खुमैनी केवल 5 महीने के थे, उनके पिता सैयद मुस्तफा की हत्या कर दी गई।

  • मुस्तफा, इलाके के गवर्नर से मिलकर स्थानीय अत्याचारियों की शिकायत करने निकले थे।
  • रास्ते में षड्यंत्र के तहत उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • हत्या के बाद इलाके में जबरदस्त गुस्सा फूटा।

हत्या का बदला और परिवार का संघर्ष

  • परिवार ने बदला लेने और न्याय की मांग की।
  • महीनों की कोशिश के बाद, हत्यारे को तेहरान में सजा-ए-मौत दी गई।

खुमैनी का बचपन और व्यक्तित्व पर असर

खुमैनी का बचपन:

  • पिता की हत्या और कबीलाई हिंसा के माहौल में बीता।
  • मां और बुआ ने उनकी परवरिश की।
  • जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की सीख उनके खून में थी।

इन्हीं परिस्थितियों ने उनके व्यक्तित्व में सख्ती, समझौता न करने की आदत और धार्मिक कट्टरता पैदा की।

क्या खुमैनी को भारत की याद थी?

  • उनके दादा ‘हिंदी’ उपनाम को गर्व से इस्तेमाल करते थे।
  • लेकिन 1925 में ईरान में पश्चिमी शैली के सरनेम अपनाने का चलन आया।
  • खुमैनी के बड़े भाई ने ‘मुस्तफी’ सरनेम अपनाया, जो परिवार की नई पहचान बना।
  • खुमैनी की दस्तावेजों में भी यही नाम दर्ज हुआ।

भारत पर खुमैनी की चुप्पी

  • उपलब्ध दस्तावेजों, भाषणों या किताबों में खुमैनी ने भारत के अपने संबंधों पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की।
  • ऐसा लगता है कि उनके लिए धार्मिक और सियासी पहचान, किसी भी दूसरी पहचान से ज्यादा अहम थी।

निष्कर्ष: एक अनकहा भारतीय अध्याय

ईरान की इस्लामिक क्रांति के इस कद्दावर नेता की जड़ें भारत की मिट्टी में थीं।

  • अवध की गंगा-जमुनी तहजीब ने इस परिवार को जन्म दिया।
  • ईरान में बसने के बाद भी ‘हिंदी’ शब्द उनकी पहचान में बना रहा।
  • वक्त के साथ यह कनेक्शन धुंधला जरूर पड़ा, लेकिन इतिहास में यह कड़ी आज भी दर्ज है।

यह कहानी बताती है कि इतिहास की बड़ी घटनाओं के पीछे कई बार वो अनदेखी कहानियां छुपी होती हैं, जिनका रिश्ता हमारी धरती से भी जुड़ता है।

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