भोपाल: मध्यप्रदेश कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव की बयार बह रही है। पार्टी ने अब संगठन को युवा नेतृत्व सौंपने का फैसला किया है। 35 से 45 वर्ष के ऊर्जावान और तकनीकी रूप से सक्षम नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाया जाएगा। बुजुर्ग नेताओं को अब सलाहकार की भूमिका में रखा जाएगा। इस कदम को राहुल गांधी की युवा नेतृत्व को प्राथमिकता देने की नीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
बैठक में हुआ अहम निर्णय
इस अहम बदलाव की घोषणा प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने की। वर्चुअल बैठक में कांग्रेस के कई बड़े नेता जैसे:
- प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी
- नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार
- एआईसीसी व पीसीसी के पर्यवेक्षक
ने भाग लिया। इस बैठक में कांग्रेस संगठन को फिर से सशक्त करने और युवाओं को नेतृत्व देने पर सहमति बनी।
नए जिलाध्यक्ष के लिए तय की गई शर्तें
कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष के चयन को लेकर कुछ खास मानदंड तय किए हैं:
- आयु सीमा: 35 से 45 वर्ष
- तकनीकी दक्षता: सोशल मीडिया पर सक्रिय और डिजिटल साक्षरता जरूरी
- विविधता: हर जिले से बनाए जाएंगे 6 नामों के पैनल, जिनमें शामिल होंगे:
- अनुसूचित जाति (SC)
- अनुसूचित जनजाति (ST)
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
- अल्पसंख्यक समुदाय
- महिला प्रतिनिधि
- दो अन्य वर्गों के उम्मीदवार
चौधरी ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेष परिस्थितियों में वरिष्ठ नेताओं को भी शामिल किया जा सकता है, लेकिन प्राथमिकता युवाओं को ही दी जाएगी।
पर्यवेक्षकों को दिए गए दिशा-निर्देश
- सभी पर्यवेक्षक अपने संबंधित जिलों में जाकर कांग्रेस की बैठक में भाग लें।
- 20 जून 2025 तक सभी पर्यवेक्षक अपनी पहली रिपोर्ट एआईसीसी को सौंपें।
- रिपोर्ट में स्थानीय नेताओं की राय, चयन प्रक्रिया और प्रस्तावित नामों का विवरण शामिल हो।
खंडवा में दिखा नया प्रभाव: कई वरिष्ठ नेता रेस से बाहर
खंडवा में इस नई नीति का असर साफ देखा गया। रविवार को खंडवा में कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान के तहत पहुंचे प्रभारी बृजेंद्र प्रताप सिंह, सह प्रभारी विपिन वानखेड़े और रीना बौरासी ने कई संभावित उम्मीदवारों से वन-टू-वन चर्चा की।
- कई नेताओं की आयु सीमा पार होने के कारण वे रेस से बाहर हो गए।
- गांधी भवन के बाहर कुछ नेताओं के समर्थकों ने नारेबाजी की।
- दो दावेदारों के बीच गर्मागर्म बहस भी हुई।
इस फैसले का क्या होगा असर?
संभावित फायदे:
- युवा नेतृत्व को अवसर: पार्टी में नई सोच और ऊर्जा का संचार होगा।
- डिजिटल दौर में दक्षता: सोशल मीडिया पर पार्टी की पकड़ मजबूत होगी।
- समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व: पैनल सिस्टम से सबकी भागीदारी सुनिश्चित होगी।
संभावित चुनौतियां:
- वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी: अनुभव रखने वाले नेताओं को साइडलाइन किए जाने की नाराजगी उभर सकती है।
- अंदरूनी विवाद: टिकट वितरण और पदों को लेकर विवाद की संभावना बनी रहेगी।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश कांग्रेस के इस फैसले से स्पष्ट है कि पार्टी अब नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने के लिए प्रतिबद्ध है। जहां एक ओर यह निर्णय संगठन को भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में कदम है, वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पर भी विचार करना होगा ताकि संगठन में संतुलन बना रहे
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