इन कारणों से शपथ के कुछ देर पहले जिद छोड़ने पर हुए मजबूर
महाराष्ट्र सरकार का शपथ ग्रहण होने के दो घंटे पहले ऐसा क्या हुआ कि पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपना फैसला बदलने पर मजबूर हो गए । क्या है सत्ता के गलियारों में चल रही कहानी। आखिर शिंदे का सच से सामना कैसे हुआ। इस रिपोर्ट में जानिए पूरी कहानी। महाराष्ट्र की सत्ता के कॉरिडोर की तस्वीरें बहुत कुछ बयां करती हैं। ढाई साल में दो बड़े नेताओं की कुर्सी अदला-बदली हो गई। एक का डिमोशन और एक प्रमोशन। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे, जिन्होंने पिछले ढाई वर्षों तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली, अब उन्हें डिप्टी सीएम के रूप में काम करना होगा। जाहिर है कि डिप्टी सीएम का पद मजबूरी में ही उन्होंने स्वीकार किया होगा, क्योंकि हफ्ते भर तक राजनीतिक गलियारों में चर्चा होती रही कि शिंदे मुख्यमंत्री पद न मिलने से नाराज हैं। उनका अपने गांव जाना भी इसकी वजह बना। खुद एनडीए के नेता भी ये मानते हैं कि वे नाराज थे। आरपीआई के अध्यक्ष रामदास अठावले ने माना कि शिंदे नाराज चल रहे थे।
शिंदे के चेहरे पर मुस्कान, दिल में दर्द!
एकनाथ शिंदे के चेहरे पर भले ही मुस्कान हो लेकिन उनके लिए ये फैसला एक कड़वी गोली निगलने जैसा ही रहा होगा. एक बात ये भी है कि वे डिप्टी सीएम बन जाने से जितने परेशान नहीं होंगे जितना कि इस बात से कि अब भविष्य में उनके साथ क्या होगा. शायद इन्हीं मजबूरियों के कारण शपथ के कुछ घंटों पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा। क्या वो कारण रहे होंगे जिससे शिंदे अपने इरादे से पीछे हटे।
पहला- सबसे बड़ी मजबूरी, शिंदे के सामने और कोई चारा ही नहीं बचा था।
दूसरा- अगर शिंदेसेना को आगे बहुमत से जीतना है तो उनको सत्ता में रहना ही होगा।
तीसरा- शिंदे सरकार में नहीं होते तो उद्धव सेना का खतरा बना रहता। जैसे उन्होंने शिवसेना को दो फाड़ किया वैसे उद्धव भी शिंदेसेना में सेंध लगा सकते थे।
चौथा- शिंदे मराठा जाति से हैं, लेकिन संपूर्ण मराठा जाति उनके पीछे नहीं हैं। वे को-ऑपरेटिव लीडर हैं, इसलिए उनको सत्ता में रहकर ही अपना कारोबार चलाना होगा।
पांचवा- राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, शिंदे ये बखूबी जानते हैं, उन्हें डर था कि बीजेपी धीरे-धीरे उनकी पार्टी को खत्म ना कर दे।
छठवां- शिंदे के संगी सभी विधायक सत्ता में बने रहने के लिए साथ आए हैं। उनका भारी दवाब भी उन पर था। यही वजह है कि शिंदे ने आख़िरकार बीजेपी का सत्ता में भागीदारी का प्रस्ताव मान लिया। शिंदे अपने डिमोशन पर ये तर्क देते हैं। शिंदे जानते हैं कि राजनीति शतरंज के खेल की तरह है जिसमें एक गोटी कमजोर होते ही पूरे महल के बिखरने का खतरा रहता है। शिंदे ने ऐसे कई नफे नुकसान का गणित लगाया होगा,लेकिन उनके इस फैसले पर उद्धव शिवसेना से गहरे घाव देने वाली प्रतिक्रिया आई।
शिवसेना (UBT) नेता ने कसा तंज
संजय राउत ने एकनाथ शिंदे पर हमला बोला, राउत ने कहा कि शिंदे युग का अंत हो चुका है। उनकी जरूरत थी वो अब पूरी हो चुकी है, इसीलिए अब उन्हें फेंक दिया गया है। राउत ने कहा कि अब शिंदे जीवन में कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे।रिजल्ट के बाद शपथ ग्रहण में 13 दिन लग गए, अब मंत्रिमंडल का गठन और विभागों का बंटवारा होना है, हालांकि शिवसेना-बीजेपी और एनसीपी के बीच सत्ता-साझेदारी के फॉर्मूले और विभागों को लेकर मोलभाव हुआ ही होगा। कुल मिलाकर एकनाथ शिंदे का असली संघर्ष अब शुरू हो गया है, क्योंकि ढाई साल तक वे महाराष्ट्र के सरकार रह चुके हैं। पार्टी के राजनीति भविष्य के लिए भले ही उनका ये सही निर्णय हो लेकिन अपने डिमोशन की कसक के साथ सरकार में सामन्जस्य किस तरह से बनाएंगे ये देखना दिलचस्प होगा।