फरवरी 2023 में, तुर्की और सीरिया में आए भीषण भूकंप ने 55,000 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली। उस वक्त भारत ने ऑपरेशन दोस्त के तहत मेडिकल टीम्स, रेस्क्यू एक्सपर्ट्स और ज़रूरी सामान भेजकर अपनी दोस्ती दिखाई थी।
लेकिन 2025 आते-आते यह दोस्ती धुंधली पड़ गई।
जब भारत ने पहलगाम हमले का जवाब देने के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान के आतंकी कैंप्स को निशाना बनाया, तो पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में ड्रोन्स का इस्तेमाल किया। जांच में पता चला कि इनमें तुर्की के असिसगार्ड सोंगर ड्रोन्स शामिल थे, जो मशीन गन और ग्रेनेड लॉन्चर से लैस होते हैं।
तुर्की-पाकिस्तान की मजबूत दोस्ती
तुर्की और पाकिस्तान का रिश्ता काफी पुराना है। 2018 में पाकिस्तान ने तुर्की से 1.5 अरब डॉलर के युद्धपोत खरीदे, और हाल के सालों में बायरक्टर TB2 ड्रोन्स और केमांकेस क्रूज मिसाइल्स भी मंगवाए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने पाकिस्तानी PM शहबाज शरीफ़ को फोन करके उनकी “संयमित नीति” की तारीफ़ की और पहलगाम हमले की जांच की मांग का समर्थन किया।

भारत के लिए क्या मायने हैं?
तुर्की का कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देना कोई नई बात नहीं है, लेकिन सैन्य सहायता एक गंभीर मोड़ है। अमेरिका जहां भारत के साथ इंडो-पैसिफिक साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है, वहीं तुर्की पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है।
साथ ही, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) में तुर्की को शामिल नहीं किया गया, जिससे एर्दोगन नाराज़ हैं। ऐसे में, तुर्की का पाकिस्तान का साथ देना साफ दिखाता है कि राजनीति में दोस्ती से ज़्यादा फायदे मायने रखते हैं।
सीख क्या मिली?
ऑपरेशन दोस्त ने तुर्की की मदद की थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भावनाओं से ज़्यादा रणनीति काम आती है। भारत के लिए यह स्पष्ट है कि अब उसे अपनी सुरक्षा और कूटनीति को और मजबूत करने की ज़रूरत है।
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