दो देशों के बीच फंसी एक ज़िंदगी
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत की सीमा में भटक कर आए एक चीनी सैनिक की ज़िंदगी अब फिर से उलझनों में घिर गई है। वांग छी नाम के इस पूर्व सैनिक ने 60 साल भारत में बिताए, लेकिन अब उन्हें भारत छोड़ने का नोटिस मिला है। न वो चीन पूरी तरह लौट सकते हैं, न भारत में स्थायी रूप से रह सकते हैं। उनकी ज़िंदगी आज दो देशों के बीच लटक रही है।
कौन हैं वांग छी?
- उम्र: 85 वर्ष
- स्थान: तिरोड़ी गांव, बालाघाट, मध्य प्रदेश
- पृष्ठभूमि: 1962 के युद्ध में चीन की सेना का हिस्सा थे
- कैसे पहुंचे भारत: युद्ध के दौरान रास्ता भटक कर सीमा पार कर भारत में आ गए
- परिणाम: भारतीय सेना ने पकड़ लिया, छह साल जेल में रखा गया
भारत में जीवन की शुरुआत
कैद से गांव तक का सफर
1969 में चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने उन्हें जेल से रिहा किया, लेकिन चीन लौटने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश के तिरोड़ी गांव भेजा गया। यहां से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।
- चक्की में काम करने से शुरुआत
- फिर किराने की दुकान खोली
- गांव के लोगों ने उन्हें ‘राजबहादुर’ नाम दिया
- 1974 में स्थानीय महिला सुशीला से विवाह किया
- बच्चे, पोते-पोतियों सहित परिवार की नींव रखी
वीज़ा विवाद और परिवार की चिंता
भारत छोड़ने का नोटिस
6 मई 2025 को वांग छी के बेटे विष्णु को नोटिस मिला कि उनके पिता का वीज़ा खत्म हो चुका है और या तो उसका नवीनीकरण कराएं या फिर देश छोड़ें।
मुख्य समस्याएं:
- वीज़ा नवीनीकरण की प्रक्रिया जटिल
- आर्थिक हालत खराब — बेटे की ₹15,000 की सैलरी से दवा, पढ़ाई और कानूनी खर्च उठाना मुश्किल
- जाति प्रमाणपत्र बनवाने में अड़चन: पिता की चीनी नागरिकता का हवाला देते हुए ‘चीन से जाति प्रमाणपत्र लाने’ की मांग
प्रशासनिक रुख
बालाघाट के पुलिस अधीक्षक नागेंद्र सिंह के अनुसार, वीज़ा रिन्यू न होने की स्थिति में विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत कार्रवाई संभव है। जिला प्रशासन मानता है कि कानूनी कारणों से जाति प्रमाणपत्र नहीं बन सकता, लेकिन परिवार को अन्य सहायता देने की कोशिश की जाएगी।
2017 की यात्रा: मां से मुलाक़ात अधूरी
बीबीसी की रिपोर्ट बनी पुल
2017 में बीबीसी की रिपोर्ट के बाद चीन सरकार ने वांग छी को पासपोर्ट जारी किया और वे पहली बार 55 साल बाद चीन लौटे। लेकिन उनकी मां तब तक दुनिया छोड़ चुकी थीं। गांव वालों ने बताया कि मां ने अंतिम समय तक बेटे के लौटने की उम्मीद नहीं छोड़ी।
भावनात्मक क्षण:
“मैं मां से नहीं मिल सका, यह दुख मेरे साथ हमेशा रहेगा।”
अब कहां जाएं वांग छी?
भारत से निकाले जाने का खतरा, चीन में जांच
- चीन लौटना मुश्किल: वहां उनकी सैन्य सेवा को लेकर जांच चल रही है
- भारत में रहना अस्थिर: कानूनी वीज़ा स्थिति अनिश्चित है
- परिवार का सहारा: भारत में पत्नी के निधन के बाद बेटे और नाती-पोतों का साथ ही सहारा है
वांग छी की पीड़ा:
“मैं चीन में नहीं हूं, और अब भारत में भी नहीं रह सकता… तो मैं किस देश का नागरिक हूं?”
मानवाधिकार और क़ानूनी सवाल
वांग छी का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि युद्ध, राजनीतिक सीमाएं और नौकरशाही आम इंसान की ज़िंदगी पर कितना गहरा असर डाल सकती हैं।
प्रमुख मुद्दे:
- विदेशी नागरिकों के अधिकार
- वीज़ा और नागरिकता कानूनों की मानवीय व्याख्या
- प्रशासनिक लचीलापन और सामाजिक समावेशिता
निष्कर्ष: दो देशों के बीच एक बेघर बुज़ुर्ग
वांग छी की कहानी एक युद्ध से शुरू होकर इंसानी जज़्बातों और बंटे हुए वजूद की गाथा बन गई है। उनके जीवन का सबसे बड़ा सवाल है — “मेरा घर कहां है?” भारत और चीन दोनों उन्हें पहचानने से झिझकते हैं, जबकि वांग ने 60 साल भारत को ही अपना घर माना है।
अब देखना यह है कि क्या सरकारें इस बुजुर्ग सैनिक को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार दे पाएंगी, या वह अपनी अंतिम सांसें भी अनिश्चितता में ही गुज़ारेंगे।