Lateral Entry: विवाद, बचाव और फिर रद्द, जानिए यूपीएससी में सीधी भर्ती मुद्दा में अब तक क्या-क्या हुआ

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Lateral Entry

इन दिनों यूपीएससी में सीधी भर्ती लेटरल एंट्री का मुद्दा जोरों पर था। अब इस पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है। केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी के अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर इससे जुड़े विज्ञापन को रद्द करने के लिए कहा है। जितेंद्र सिंह ने लेटर में कहा है कि सैद्धांतिक तौर पर सीधी भर्ती की अवधारणा का समर्थन 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग की तरफ से किया गया था, जिसकी अध्यक्षता वीरप्पा मोइली की तरफ से की गई थी। हालांकि, लेटरल एंट्री को लेकर कई हाई-प्रोफाइल मामले सामने आए हैं।

यूपीएससी अध्यक्ष को लिखे पत्र में केंद्रीय मंत्री ने यह तर्क रखे

  1. ”2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने लेटरल एंट्री का सैद्धांतिक अनुमोदन किया था। 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। हालांकि, इससे पहले और इसके बाद लेटरल एंट्री के कई हाई प्रोफाइल मामले रहे हैं।”
  2. ”पूर्ववर्ती सरकारों में विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों, UIDAI के नेतृत्व जैसे अहम पदों पर आरक्षण की नियुक्ति के बिना लेटरली एंट्री वालों को मौके दिए जाते रहे हैं।”
  3. ”यह भी सर्वविदित है कि ‘बदनाम’ हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य सुपर ब्यूरोक्रेसी चलाया करते थे, जो प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित किया करती थी।”
  4. ”2014 से पहले संविदा तरीके से लेटरल एंट्री वाली ज्यादातर भर्तियां होती थीं, जबकि हमारी सरकार में यह प्रयास रहा है कि यह प्रक्रिया संस्थागत, खुली और पारदर्शी रहे।”
  5. ”प्रधानमंत्री का यह पुरजोर तरीके से मानना है कि विशेषकर आरक्षण के प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में संविधान में उल्लेखित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप लेटरली एंट्री की प्रक्रिया को सुसंगत बनाया जाए।”

क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने हाल ही में लेटरल एंट्री के जरिये से केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में 45 पदों पर संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उपसचिवों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसका कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने विरोध किया। विपक्ष का आरोप था कि यह ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण को दरकिनार करता है।


सरकार का तर्क- यूपीए शासन में ही पेश की गई थी सीधी भर्ती की अवधारणा
हालांकि, सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि विरोध का झंडा बुलंद कर रही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान ही लेटरल एंट्री की अवधारणा को पहली बार पेश किया गया था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका पुरजोर समर्थन किया था। एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था। मोइली की अध्यक्षता में दूसरे एआरसी का गठन भारतीय प्रशासनिक प्रणाली की प्रभावशीलता, पारदर्शिता और नागरिक मित्रता को बढ़ाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने के लिए किया गया था। ‘कार्मिक प्रशासन का नवीनीकरण-नई ऊंचाइयों को छूना’ शीर्षक वाली अपनी 10वीं रिपोर्ट में आयोग ने सिविल सेवाओं के अंदर कार्मिक प्रबंधन में सुधारों की जरूरत पर जोर दिया था। इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह भी थी कि उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए, जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।

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