Mohit Jain
चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) में भारत का पहला मानवयुक्त समुद्रयान “मत्स्य-6000” आकार ले रहा है। इस वैज्ञानिक पनडुब्बी के 50% हिस्से स्वदेशी संस्थानों द्वारा विकसित किए गए हैं। पहले शत-प्रतिशत हिस्से आयात किए जाते थे, लेकिन कोविड और जियो-पॉलिटिकल कारणों से अब आधे हिस्से भारत में तैयार किए गए हैं।
डीप ओशन मिशन का हिस्सा

मत्स्य-6000 भारत के ‘डीप ओशन मिशन’ का हिस्सा है। इसके माध्यम से समुद्र के संसाधनों, जैव-विविधता और ब्लू इकोनॉमी के लिए जरूरी रिसर्च की जाएगी। मिशन के तहत हिंद महासागर में 2027 में तीन भारतीय एक्वानॉट्स 6,000 मीटर की गहराई में वैज्ञानिक गतिविधियां करेंगे।
तकनीकी विशेषताएं और परीक्षण
समुद्रयान का मुख्य ढांचा टाइटेनियम मिश्रधातु से बना है और इसे इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग से तैयार किया गया। इसमें 3 एक्वानॉट यात्रा कर सकते हैं। व्हीकल सामान्य स्थिति में 12 घंटे और इमरजेंसी में 96 घंटे रहने के लिए तैयार है। समुद्रयान सागर निधि जहाज से हिंद महासागर तक पहुंचेगा और 30 मीटर प्रति मिनट की गति से 4 घंटे में 6 किलोमीटर की गहराई तक जाएगा।
टीम और एक्वानॉट
दो एक्वानॉट जतिंदर पाल सिंह (पायलट) और राजू रमेश (को-पायलट) होंगे। तीसरे एक्वानॉट का चयन NIOT के उपनिदेशक एस. रमेश, ग्रुप डायरेक्टर वेदाचलम या प्रोजेक्ट डायरेक्टर सत्या नारायणन में से किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय मान्यता और रिसर्च अनुमति
UN से जुड़ी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) ने सिर्फ 14 देशों को डीप सी रिसर्च की अनुमति दी है। भारत भी इस सूची में शामिल है। डीप ओशन मिशन का उद्देश्य गहरे समुद्र में काम करने की तकनीक विकसित करना और ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देना है।





