BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली: बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में कई कलाकार ऐसे होते हैं जो स्टारडम की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच पाते, फिर भी अपने अभिनय और किरदारों से लाखों दिलों में जगह बना लेते हैं। ऐसी ही एक नाम है सुषमा सेठ, जिनका फिल्मी सफर भले ही देर से शुरू हुआ, लेकिन उनके अभिनय की गहराई और संवेदनशीलता ने हर बार दर्शकों को प्रभावित किया।
42 साल की उम्र में शुरू हुआ करियर
जहां अधिकतर अभिनेत्रियां अपने करियर की शुरुआत युवावस्था में कर लेती हैं, वहीं सुषमा सेठ ने 42 साल की उम्र में 1978 में फिल्म ‘जुनून’ से बॉलीवुड में कदम रखा। इस फिल्म में उन्होंने शशि कपूर की चाची का किरदार निभाया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 120 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया।
मां, दादी और नानी के किरदारों में बनीं सबकी चहेती
सुषमा सेठ को हमेशा परिवार की बड़ी बुजुर्ग महिला – मां, नानी या दादी के किरदारों में देखा गया। उन्होंने शाहरुख खान, ऋषि कपूर, अक्षय कुमार, ऋतिक रोशन, अनिल कपूर और कई अन्य बड़े सितारों के साथ स्क्रीन शेयर की।
उनकी कुछ यादगार फिल्मों में शामिल हैं:
- सिलसिला (1981)
- प्रेम रोग (1982)
- राम तेरी गंगा मैली (1985)
- चांदनी (1989)
- दीवाना (1992)
- कभी खुशी कभी ग़म (2001)
- कल हो ना हो (2003)
हालाँकि, उन्होंने कभी लीड रोल नहीं किया, लेकिन उनके किरदारों की गहराई और गरिमा ने उन्हें दर्शकों के बीच खास पहचान दी।
पारिवारिक विरासत और निजी जीवन
सुषमा सेठ की बेटी दिव्या सेठ भी एक जानी-मानी अभिनेत्री हैं। दिव्या, शाहरुख खान के साथ बैरी जॉन के थिएटर ग्रुप में ट्रेनिंग कर चुकी हैं। शाहरुख ने कई बार उन्हें अपनी “सबसे करीबी दोस्त” कहा है और यह भी स्वीकार किया है कि उन्होंने दिव्या से बहुत कुछ सीखा है।
अब कहां हैं सुषमा सेठ?
सुषमा सेठ को आखिरी बार 2017 की फिल्म ‘नूर’ में देखा गया था। अब वे सक्रिय रूप से फिल्मी दुनिया में नजर नहीं आतीं, लेकिन ‘अपर्णा’ नामक एक एनजीओ के साथ सामाजिक कार्यों में लगी हैं। वह ड्रामा और नृत्य नाटकों का निर्देशन भी करती हैं और युवाओं को कला की शिक्षा देने में जुटी हैं।
दर्शकों के दिलों की दादी
सुषमा सेठ ने भले ही कभी ग्लैमर और शोहरत की ऊंचाइयों को नहीं छुआ, लेकिन उनका योगदान किसी सुपरस्टार से कम नहीं है। उन्होंने दर्शकों के दिलों में एक स्थायी छवि बनाई – एक आदर्श मां, स्नेहमयी दादी और संस्कारी नानी की, जिसे कोई कभी भूल नहीं सकता।