विशेष लेख – हनुमान जयंती पर
BY: Vijay Nandan
जब राम कथा का स्मरण होता है, तो अयोध्या के शौर्य की गूंज सुनाई देती है। लेकिन उस गूंज के पीछे जो स्वर है, जो शक्ति है, जो संकल्प है – वह नाम है हनुमान।
हनुमान जयंती सिर्फ एक पर्व नहीं है, यह उस अद्वितीय ऊर्जा का उत्सव है जिसने धर्म को युद्धभूमि में नहीं, सेवा और समर्पण से जीवित रखा।
हनुमान: केवल शक्ति नहीं, संतुलन का नाम
आज के दौर में जब धर्म और भक्ति केवल शक्ति प्रदर्शन तक सीमित हो गए हैं, हनुमान उस संतुलन का नाम हैं जो बल और बुद्धि के बीच सेतु बनाते हैं। वे योद्धा हैं, लेकिन अभिमानी नहीं; ज्ञानी हैं, फिर भी स्वयं को विनीत भाव से अज्ञानी मानते हैं –
“मूढ़ मिटा मन अपने, हरहु नाथ मम संशय भारी…”
हनुमान हमें सिखाते हैं कि यदि आपके भीतर बल है और आप उसका उपयोग सेवा और परोपकार के लिए करते हैं, तभी वह ईश्वरीय होता है। वे युग के पहले “रणनीतिक योद्धा” थे – चतुर, साहसी और संकल्पशील।

हर युग में प्रासंगिक
- प्राचीन युग में, वे लंका दहन करने वाले वीर थे।
- भक्ति युग में, वे सच्चे समर्पण की मूर्ति बने।
- आज के समय में, वे हर उस व्यक्ति के आदर्श हैं जो खुद को संघर्षों के बीच अकेला महसूस करता है।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वो शक्तिशाली होकर भी पूर्णतः समर्पित हैं। उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण अपने आराध्य के चरणों में अर्पित कर दिया।
आध्यात्मिक और सामाजिक सन्देश
हनुमान का जीवन बताता है कि शक्ति तब तक अधूरी है, जब तक उसमें विवेक और समर्पण का भाव न हो।
उनकी भक्ति अंधभक्ति नहीं, बल्कि सजग चेतना है – जिसमें वह जानते हैं कब मौन रहना है और कब गरजना है।
हनुमान जयंती: केवल पूजा नहीं, आत्म-चिंतन का दिन
हनुमान जयंती महज कोई परंपरा नहीं, बल्कि अपने भीतर के हनुमान को जागृत करने का अवसर है –
वह हनुमान जो विपत्ति में भी आत्मविश्वास नहीं खोता,
जो संकट के समय दूसरों का सहारा बनता है,
जो शक्ति को दंभ नहीं, सेवा मानता है।
“जहाँ विश्वास है, वहाँ विजय है”
हनुमान केवल एक देवता नहीं हैं, वे उस चेतना का नाम हैं जो कहती है –
“भक्ति में शक्ति है, और शक्ति में जब विवेक जुड़ जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं।”
ये भी पढ़िए: रिमांड पर 26/11 का गुनहगार तहव्वुर राणा : पाकिस्तानी साजिश के उगलेगा राज ?