BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के बारामूला से लोकसभा सांसद इंजीनियर राशिद पर दिल्ली की तिहाड़ जेल में ट्रांसजेंडर कैदियों द्वारा हमला किया गया। सूत्रों के अनुसार यह घटना एक हफ्ते पहले हुई थी, जब राशिद और कैदियों के बीच आपसी कहासुनी हो गई। जेल नंबर 3 में रह रहे सांसद को इस झड़प में मामूली चोटें आई हैं। जेल प्रशासन ने इसे सुनियोजित साजिश नहीं बल्कि साधारण विवाद के रूप में बताया है।
सांसद को संसद सत्र में शामिल होने के लिए कस्टडी पैरोल दी गई है, लेकिन इसके दौरान उन्हें अपनी सुरक्षा और यात्रा का खर्च स्वयं वहन करना पड़ रहा है। राशिद की पार्टी, अवामी इत्तिहाद पार्टी (AIP) ने हमले को साजिश करार देते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।
विवाद की वजह
सूत्रों के अनुसार, राशिद और ट्रांसजेंडर कैदियों के बीच पहले से तनाव चल रहा था। आरोप है कि तिहाड़ प्रशासन कुछ ट्रांसजेंडर कैदियों का उपयोग कश्मीरी कैदियों, खासकर इंजीनियर राशिद और अन्य, को परेशान करने के लिए करता है। AIP का कहना है कि यह हमला व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि नियोजित कार्रवाई का हिस्सा हो सकता है।
सांसद इंजीनियर राशिद कौन हैं?
इंजीनियर राशिद को 2019 में कथित आतंकवादी फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आपराधिक साजिश, राजद्रोह और UAPA के तहत कई आरोप लगे थे। इसके बावजूद, राशिद ने 2024 में लोकसभा चुनाव जीतकर बारामूला सीट अपने नाम की। उन्होंने जेल में कश्मीरी कैदियों के साथ होने वाले कथित भेदभाव और अपमान की घटनाओं को भी सार्वजनिक किया है।
हाईकोर्ट में मामला
सांसद ने संसद सत्र में शामिल होने के लिए पैरोल ली थी, लेकिन जेल प्रशासन ने इसके लिए उन्हें सुरक्षा और यात्रा का खर्च लगभग 4 लाख रुपये जमा करने के रूप में निर्धारित किया। राशिद ने इसे संविधान द्वारा दिए गए उनके कर्तव्यों में बाधा बताया और दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी।
दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच, जज विवेक चौधरी और जज अनूप जयराम भंभानी की अध्यक्षता में, ने सुनवाई के दौरान यह पूछा कि खर्च का निर्धारण नियमों के अनुसार किया गया है या नहीं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कस्टडी पैरोल और अंतरिम जमानत अलग हैं और सामान्यतः पैरोल का खर्च वही उठाता है जो इसका लाभ ले रहा हो। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए राशिद को सुझाव दिया कि वे शर्त बदलने के लिए पुनः आवेदन करें।
अब तक की सुनवाई और दलीलें
राशिद के वकील ने तर्क दिया कि संसद में भाग लेना उनका सार्वजनिक कर्तव्य है, कोई एहसान नहीं, और जेल नियमों में पैरोल के दौरान सुरक्षा कर्मियों के वेतन का भार कैदी पर लगाने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं दिल्ली सरकार और NIA ने बताया कि संसद तक पहुंचाने के लिए 15 सशस्त्र पुलिस कर्मियों की जरूरत पड़ती है, जिससे दैनिक खर्च बढ़ता है।
अगली कार्रवाई
अदालत ने कहा कि संसद में भाग लेने के अधिकार और उससे जुड़े खर्च को संसदीय नियमों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर देखा जाएगा। अब इस मामले में अगली सुनवाई का इंतजार है।