📰 मुख्य बातें:
- कनाडा के सिखों को जान से मारने की धमकी मिलने के बाद मोदी को G7 में बुलाए जाने पर नाराज़गी
- G7 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी को लेकर विवाद
- भारत पर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप
- आर्थिक सहयोग बनाम मानवाधिकार पर बहस
G7 सम्मेलन में मोदी को बुलाने पर भड़के कनाडाई सिख
टोरंटो में सिख समुदाय के कई सदस्य उस समय भड़क उठे जब कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को G7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया। यह सम्मेलन अल्बर्टा में रविवार से शुरू हो रहा है और भारत G7 सदस्य नहीं होने के बावजूद इस बार विशेष अतिथि के रूप में शामिल होगा।
यह मोदी की एक दशक बाद कनाडा की पहली यात्रा है, और यह फैसला प्रधानमंत्री कार्नी के लिए एक राजनयिक परीक्षा बन गया है।
🕵️♂️ हरदीप सिंह निज्जर की हत्या बनी तनाव की जड़
2023 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में संलिप्त होने का आरोप लगाया था। निज्जर एक सिख अलगाववादी नेता थे, जिनकी हत्या के बाद कनाडा-भारत संबंधों में काफ़ी खटास आ गई।
भारत सरकार ने इन आरोपों को नकारते हुए कनाडा पर सिख अलगाववादियों को पनाह देने का आरोप लगाया।
🗣️ सिख समुदाय ने जताई तीखी प्रतिक्रिया
मोनिंदर सिंह, जो निज्जर के करीबी और सिख एक्टिविस्ट हैं, ने कहा:
“यह आमंत्रण सिख समुदाय के लिए अपमानजनक है। यह साफ दर्शाता है कि हमारी ज़िंदगियों की कीमत उस देश की तुलना में कम आँकी गई जो अब दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।”
उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें 2023 में पुलिस ने कई बार चेताया था कि उनकी जान को खतरा है, जिस वजह से उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए महीनों तक घर छोड़ना पड़ा।
🛡️ सुरक्षा चिंताएं और कूटनीतिक जवाबी कार्रवाइयाँ
- RCMP (रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस) ने बताया कि उन्होंने दर्जनों सिख नेताओं को संभावित खतरों की जानकारी दी थी।
- कनाडा ने अक्टूबर 2023 में भारत के 6 राजनयिकों को निष्कासित किया था और आरोप लगाया था कि भारत सरकार कनाडा में भारतीय असंतुष्टों को निशाना बना रही है।
- भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए 6 कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था और आरोपों को राजनीतिक और निराधार बताया था।
🌍 भारत के महत्व की दलील
प्रधानमंत्री कार्नी का कहना है कि उन्होंने भारत को G7 में इसलिए आमंत्रित किया क्योंकि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक अहम भूमिका निभाता है।
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि:
“यह बैठक दोनों देशों को आपसी और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने का अवसर देगी।”
जयसवाल ने यह भी पुष्टि की कि भारत और कनाडा के कानून प्रवर्तन एजेंसियां सहयोग जारी रखेंगी।
⚖️ व्यवहारिकता बनाम नैतिकता की बहस
कई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक इस आमंत्रण को आर्थिक प्राथमिकताओं को मानवाधिकारों से ऊपर रखने वाला कदम मान रहे हैं।
हालाँकि, टोरंटो मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी के राजनीति विशेषज्ञ संजय रूपारेलिया का कहना है कि:
“प्रधानमंत्री कार्नी का दृष्टिकोण हमेशा से व्यवहारिक रहा है, और यह निर्णय भी उसी रणनीति का हिस्सा है।”
📢 सिख समुदाय की मांगें
सिख नेताओं का मानना है कि:
- मोदी की यात्रा से पहले भारत सरकार को जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए थी।
- कूटनीतिक बातचीत के साथ-साथ मानवाधिकार और सुरक्षा मुद्दों पर भी शर्तें रखी जानी चाहिए थीं।
- किसी भी उच्चस्तरीय बैठक को तभी मान्यता मिलनी चाहिए जब भारत इस पूरे मामले में सहयोग का भरोसा दे।
🔍 निष्कर्ष: रिश्तों की नई परिभाषा या पुराने घाव?
भारत और कनाडा के बीच संबंधों की यह नई कड़ी कई सवाल उठाती है। क्या यह सहयोग का नया अध्याय है या एक ऐसा कदम जो सिख समुदाय के जख्मों को और गहरा कर देगा?
G7 सम्मेलन में भारत की मौजूदगी ज़रूर वैश्विक मंच पर उसकी अहमियत को दर्शाती है, लेकिन इसके पीछे उठते मानवाधिकारों के सवालों का जवाब देना दोनों देशों की नीतियों की विश्वसनीयता की अग्निपरीक्षा है।