अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत के कड़े विरोध के बावजूद पाकिस्तान को दिए गए $1 अरब के बेलआउट पैकेज को सही ठहराया है। IMF का कहना है कि पाकिस्तान ने इस सहायता के लिए सभी जरूरी लक्ष्य पूरे कर लिए हैं। भारत ने इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए इसे आतंकवाद के लिए अप्रत्यक्ष आर्थिक सहायता करार दिया है।
IMF ने क्यों दी पाकिस्तान को आर्थिक मदद?
IMF ने कहा कि यह राशि सितंबर 2024 में शुरू हुए “Extended Fund Facility (EFF)” कार्यक्रम के तहत दी गई है। इस योजना के अंतर्गत पाकिस्तान अब तक कुल $2.1 अरब प्राप्त कर चुका है।

IMF की संचार निदेशक जूली कोज़ैक ने एक प्रेस वार्ता में बताया:
“हमारे बोर्ड ने पाया कि पाकिस्तान ने अपने सभी निर्धारित लक्ष्य पूरे कर लिए हैं और कई सुधारों में प्रगति भी की है। इसी आधार पर बोर्ड ने अगली किश्त को मंजूरी दी।”
उन्होंने आगे बताया कि:
- पहला रिव्यू 2025 की पहली तिमाही में प्रस्तावित था।
- 25 मार्च 2025 को IMF और पाकिस्तान के बीच स्टाफ-लेवल समझौता हुआ।
- यह समझौता 9 मई को IMF के कार्यकारी बोर्ड को प्रस्तुत किया गया और उसी दिन इसे मंजूरी भी मिली।
किन शर्तों के साथ मिली पाकिस्तान को यह मदद?
IMF द्वारा इस बेलआउट के लिए पाकिस्तान को 11 नई शर्तें दी गई हैं, जिनमें शामिल हैं:
- संसद की मंजूरी
- बिजली पर कर्ज सेवा अधिभार (Debt Surcharge) बढ़ाना
- आयात पर लगे प्रतिबंध हटाना
भारत ने क्यों किया विरोध?
भारत ने IMF से अपील की थी कि वह पाकिस्तान को वित्तीय सहायता न दे क्योंकि इससे सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा मिल सकता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा:
“यह एक प्रकार से आतंकवाद को आर्थिक मदद देने जैसा है। IMF को ऐसे फैसलों से बचना चाहिए।”
भारत सरकार ने यह भी कहा कि:
- पिछले 35 वर्षों में पाकिस्तान ने 28 साल IMF से सहायता ली है।
- 2019 से अब तक 4 बेलआउट पैकेज मिल चुके हैं।
- यदि पहले के कार्यक्रम सफल रहे होते, तो पाकिस्तान को फिर से IMF के पास नहीं जाना पड़ता।
इसके बावजूद IMF ने भारत के विरोध और वोटिंग से अनुपस्थित रहने के बावजूद यह सहायता राशि मंजूर कर दी।
क्या कहता है भारत का बयान?
“IMF कार्यक्रमों के बावजूद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बार-बार अस्थिर होती है। इस बार भी सहायता राशि का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों में होने का संदेह है।”
निष्कर्ष: IMF की सहायता और भारत की चिंता
जहां IMF इसे एक वित्तीय सुधार और नीतिगत प्रतिबद्धता मानता है, वहीं भारत को डर है कि यह धन पाकिस्तान द्वारा भारत-विरोधी गतिविधियों में उपयोग हो सकता है। यह मुद्दा ना केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।