BY: Yoganand Shrivastva
इंदौर, मध्यप्रदेश: खुड़ैल क्षेत्र के एक सरकारी स्कूल में नाबालिग छात्राओं के साथ अमानवीय व्यवहार और लैंगिक उत्पीड़न का मामला सामने आया है। इस मामले की पुष्टि एक महिला एसडीएम की जांच रिपोर्ट में हो चुकी है, बावजूद इसके अब तक पुलिस द्वारा कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। गंभीर आरोपों के बावजूद कार्रवाई नहीं होने पर अब इस मामले को हाईकोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से उठाया जा रहा है।
शिक्षकों पर लगे गंभीर आरोप
आरटीआई कार्यकर्ता और समाजसेवी जितेंद्र सिंह यादव ने मई 2016 में पुलिस अधीक्षक, महिला थाना और खुड़ैल थाने में शिकायत दी थी, जिसमें दो शिक्षकों पर नाबालिग बच्चियों से अश्लील बातें करने, शारीरिक प्रताड़ना, बाल खींचने, और स्कूल समय में घरेलू सामान मंगवाने जैसे संगीन आरोप लगाए गए थे।
छात्राओं और स्टाफ ने दिए बयान
जांच अधिकारी एसडीएम नीता राठौर ने अक्टूबर 2016 में स्कूल का दौरा कर छात्राओं के बयान दर्ज किए। दर्जनों छात्राओं ने बताया कि उनसे बुरा व्यवहार किया जाता है। छुट्टी मांगने पर उन्हें पेशाब करने के लिए बोतलें दी जाती थीं और उन पर अश्लील टिप्पणियां की जाती थीं।
स्कूल के स्टाफ और प्रधानाचार्य ने भी आरोपों की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि दोनों शिक्षक अक्सर स्कूल में अनुपस्थित रहते थे लेकिन उपस्थिति रजिस्टर में फर्जी हस्ताक्षर करते थे। साथ ही बच्चियों पर अनावश्यक रूप से हाथ उठाते थे।
बर्खास्तगी की सिफारिश, लेकिन FIR नहीं
एसडीएम ने नवंबर 2019 में अपनी रिपोर्ट में दोनों शिक्षकों को मानसिक रूप से असामान्य बताते हुए तत्काल बर्खास्त करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद अब तक न तो महिला थाने और न ही खुड़ैल थाने में एफआईआर दर्ज हुई। शिकायतकर्ता ने जुलाई 2020 में रिमाइंडर भी भेजा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पीएमओ ने लिया संज्ञान
न्याय न मिलने पर कुमारी सपना प्रजापति ने फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री कार्यालय को ‘न्याय की मांग’ याचिका भेजी। पीएमओ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सीएम हेल्पलाइन के डायरेक्टर संदीप अस्थाना को जांच का जिम्मा सौंपा है।
हाईकोर्ट में होगी सुनवाई
वरिष्ठ वकील कृष्ण कुमार कुन्हारे ने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त एसडीएम रिपोर्ट में आरोप स्पष्ट हैं, लेकिन पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज न करना चिंता का विषय है। अब इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की जा रही है।
एडवोकेट डॉ. रूपाली राठौर के अनुसार, रिपोर्ट के आधार पर दोनों शिक्षकों को केवल एक-एक लाख रुपए के बांड पर शांति भंग की आशंका में छोड़ा गया था, जबकि ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई जरूरी थी।