🔍 परिचय: चागोस द्वीप समूह विवाद क्यों है चर्चा में?
एक ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंचते हुए, ब्रिटेन और मॉरिशस ने चागोस द्वीप समूह (Chagos Islands) को लेकर दशकों पुराने विवाद को सुलझा लिया है। यह समझौता न केवल राजनयिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि भू-राजनीतिक और सामरिक हितों को भी प्रभावित करता है।
इस आर्टिकल में जानिए:
- चागोस द्वीप समूह क्या हैं?
- UK-मॉरिशस डील का क्या मतलब है?
- डिएगो गार्सिया (Diego Garcia) का क्या है महत्व?
- भारत का इस पर क्या रुख है?
🌍 चागोस द्वीप समूह: कहां हैं और क्यों हैं अहम?
- स्थान: हिंद महासागर में, मालदीव के दक्षिण में स्थित 60 से अधिक द्वीपों का समूह
- इतिहास: 1814 में नेपोलियन युद्धों के बाद ब्रिटेन के अधीन आया
- मुख्य द्वीप: डिएगो गार्सिया, जो एक रणनीतिक सैन्य अड्डा है
क्यों हैं चागोस द्वीप रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण?
- डिएगो गार्सिया पर US-UK का संयुक्त सैन्य बेस है
- यह बेस मालक्का जलडमरूमध्य और मध्य-पूर्व में गतिविधियों की निगरानी करता है
- आतंकवाद विरोधी अभियानों और खुफिया निगरानी में अहम भूमिका
🤝 UK और मॉरिशस के बीच नया समझौता क्या कहता है?
प्रमुख बिंदु:
- UK ने मॉरिशस को द्वीपों की संप्रभुता वापस दी
- डिएगो गार्सिया बेस को 99 साल के लिए लीज़ पर लिया जाएगा
- ब्रिटेन हर साल £101 मिलियन (करीब ₹1,140 करोड़) मॉरिशस को देगा
ब्रिटिश प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया:
PM कीर स्टारमर ने समझौते को “ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम” बताया। उन्होंने कहा:
“यह समझौता हमें सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है और यह सुनिश्चित करता है कि हमारा बेस आने वाले दशकों तक सुरक्षित रहे।”
⚠️ आलोचना भी हुई तेज
ब्रिटेन में इस डील को लेकर राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है।
कंज़र्वेटिव पार्टी नेता केमी बेडेनोच ने इसे “लेबर सरकार की विफलता” बताया और कहा कि:
- ब्रिटेन ने अपनी ज़मीन गंवाई
- यह डील चीन के साथ मॉरिशस के रिश्तों को लेकर सुरक्षा संकट पैदा कर सकती है
- टैक्सपेयर्स पर भारी बोझ पड़ेगा
🇮🇳 भारत का रुख: मॉरिशस का समर्थन, डीकॉलोनाइजेशन की बात
भारत ने इस समझौते का खुले दिल से स्वागत किया है और इसे डिकॉलोनाइजेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया है।
विदेश मंत्रालय (MEA) का बयान:
“यह समझौता न केवल क्षेत्र में स्थिरता लाएगा, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित व्यवस्था की भावना के अनुरूप है।”
- भारत ने हमेशा मॉरिशस के वैध दावे का समर्थन किया है
- भारत का फोकस हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और समुद्री सुरक्षा बढ़ाने पर है
🧭 इतिहास की झलक: चागोस विवाद की जड़ें
- 1965: UK ने मॉरिशस से चागोस को अलग कर British Indian Ocean Territory बनाया
- 1968: मॉरिशस को स्वतंत्रता मिली, लेकिन चागोस द्वीप नहीं लौटाए गए
- 2008: US ने माना कि डिएगो गार्सिया का उपयोग गुप्त CIA रेंडिशन फ्लाइट्स के लिए हुआ था
- 2019: UN और अंतरराष्ट्रीय अदालत ने चागोस पर मॉरिशस का दावा सही माना
📌 डिएगो गार्सिया बेस: अमेरिका के लिए क्यों अहम?
- लगभग 2,500 अमेरिकी सैन्यकर्मी तैनात
- इसका उपयोग किया गया:
- वियतनाम युद्ध में
- अफगानिस्तान और इराक युद्ध में
- खाड़ी क्षेत्र में मिसाइल निगरानी के लिए
डिएगो गार्सिया को अमेरिका “मध्य-पूर्व, दक्षिण एशिया और पूर्वी अफ्रीका में सामरिक संचालन का केंद्र” मानता है।
📈 निष्कर्ष: चागोस समझौते के असर
यह समझौता सिर्फ एक कूटनीतिक डील नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर होगा:
- अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुपालन पर
- हिंद महासागर क्षेत्र की शक्ति संतुलन पर
- भारत और मॉरिशस के बढ़ते सहयोग पर
- और संभावित रूप से, चीन की बढ़ती उपस्थिति पर भी
📚 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1: चागोस द्वीप समूह कहां स्थित हैं?
उत्तर: ये द्वीप हिंद महासागर में, मालदीव के दक्षिण में स्थित हैं और ब्रिटेन के अधीन थे।
Q2: डिएगो गार्सिया क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यह US-UK का संयुक्त सैन्य अड्डा है जो मध्य-पूर्व, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में रणनीतिक संचालन के लिए उपयोग होता है।
Q3: भारत ने चागोस विवाद पर क्या कहा?
उत्तर: भारत ने इस डील का समर्थन किया है और मॉरिशस के दावे को वैध बताया है।