केंद्र सरकार ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। यह मामला संसद के मानसून सत्र में उठाया जा सकता है, जिससे राजनीतिक हलचल बढ़ने की संभावना है। सरकार विपक्षी दलों के साथ मिलकर इस संवेदनशील मुद्दे पर सहमति बनाने की कोशिश में लगी है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव क्यों?
14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास के स्टोर रूम में आग लगने की घटना हुई थी। जांच में भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ था, जो राजनीतिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से विवादास्पद बना।
जस्टिस वर्मा ने इस पूरे मामले को साजिश करार दिया और इस्तीफा देने से इनकार किया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की थी, जिसके बाद केंद्र सरकार ने संसद में इस विषय पर कार्रवाई शुरू करने का निर्णय लिया।
संसद में महाभियोग की प्रक्रिया और विपक्ष की भूमिका
- केंद्र सरकार मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है।
- संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू विपक्षी दलों से बातचीत कर सहमति बनाने की कोशिश करेंगे।
- सरकार चाहती है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर एकजुट होकर कार्रवाई करें ताकि प्रक्रिया में कोई बाधा न आए।
जांच कमेटी और संसद अध्यक्ष की स्थिति
सूत्रों के अनुसार, संसद के अध्यक्ष संभवतः एक नई जांच कमेटी बनाने से बच सकते हैं। पहले से चली जांच के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है, जिससे प्रक्रिया तेज और प्रभावी होगी।
राजनीतिक नेतृत्व की रणनीति
गृह मंत्री अमित शाह ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण बैठकें की हैं। उन्होंने कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से मुलाकात कर रणनीति पर चर्चा की।
- जेपी नड्डा, जो राज्यसभा में सदन के नेता हैं, भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
- सरकार की कोशिश है कि महाभियोग प्रस्ताव को बिना अड़चन के संसद में मंजूरी मिले।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भारत की न्यायपालिका और राजनीतिक व्यवस्था दोनों के लिए बड़ा सवाल खड़ा करता है। केंद्र सरकार की यह पहल राजनीतिक और कानूनी तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। आने वाले मानसून सत्र में इस मुद्दे पर काफी हलचल और बहस देखने को मिल सकती है।