BY: Yoganand Shrivastva
मध्य प्रदेश के शहडोल जिले से एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने राज्य में सरकारी आयोजनों में हो रहे खर्च और भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जल संरक्षण के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में अफसरों की आवभगत कुछ ऐसे की गई मानो कोई शाही भोज हो रहा हो। मामला गोहपारू जनपद की भदवाही पंचायत का है, जहां ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के अंतर्गत आयोजित एक घंटे की चौपाल में अफसरों को खुश करने के लिए 5 किलो काजू, 5 किलो बादाम, 3 किलो किशमिश, 30 किलो नमकीन, 20 पैकेट बिस्किट, 6 किलो दूध, 5 किलो शक्कर और 2 किलो घी की व्यवस्था की गई। इस आयोजन पर 24,000 रुपये से अधिक खर्च कर दिए गए।
यह सब उस समय हुआ जब उसी क्षेत्र के तालाब, कुएं और नाले पानी को तरस रहे हैं और ग्रामीण महिलाएं सिर पर मटके रखकर दूर-दूर से पानी ढो रही हैं।
“जल बचाओ” या “घी बहाओ”?
इस कार्यक्रम का उद्देश्य था – गांव-गांव में जाकर जल संरक्षण की जागरूकता फैलाना। लेकिन हकीकत यह है कि जल की महत्ता बताने के लिए अफसरों ने सूखे गांव में मेवे और घी उड़ाए। यह खर्च पंचायत रजिस्टर में बाकायदा दर्ज है, जिससे यह मामला अब सामने आया है।
एक घंटे की बैठक के दौरान जिस तरह से “शाही मेन्यू” परोसा गया, उसने इस आयोजन को शादी-ब्याह की दावत जैसा बना दिया। सवाल उठता है – क्या सरकारी योजनाओं को अफसरों की तोंद बढ़ाने का साधन बना दिया गया है?
पुराना पेंट घोटाला भी चर्चा में
यह पहली बार नहीं है जब शहडोल जिला सरकारी खर्चों को लेकर सुर्खियों में आया हो। इससे पहले जिले के स्कूलों में महज 4 लीटर पेंट के लिए 168 मजदूर और 65 मिस्त्री दर्शाकर 1.06 लाख रुपये का बिल बना दिया गया था।
इतना ही नहीं, एक अन्य स्कूल में सिर्फ 20 लीटर पेंटिंग और हल्की-फुल्की फिटिंग के लिए 275 मजदूर और 150 मिस्त्री दिखाकर 2.31 लाख रुपये खर्च दर्शाए गए। हैरानी की बात यह है कि यह बिल काम शुरू होने से पहले ही मंजूर कर लिया गया था।
राजनीतिक बवाल
इस घोटाले पर कांग्रेस ने भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया है। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा,
“मध्य प्रदेश का कोई विभाग ऐसा नहीं बचा है जहां आधे से ज्यादा कमीशन न लिया जा रहा हो। पहले 1 लीटर पेंट से 233 लोगों के काम का दावा किया गया था, अब 14 लोग जितना ड्राय फ्रूट खा गए, उसे देखकर तो लगता है कि अफसर इंसानों जैसे नहीं, भैंसों जैसे खा गए और हजम भी कर गए।”
उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि वे जल संरक्षण की बात करते हैं, लेकिन उनके अधिकारी खर्च संरक्षण की योजना चला रहे हैं।
जनता त्रस्त, व्यवस्था भ्रष्ट
जहां एक ओर आम नागरिक पानी की बूंद-बूंद को तरस रहा है, वहीं जल संरक्षण के नाम पर हजारों रुपये की मिठास उड़ाई जा रही है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि “एमपी अजब है और अफसर गजब”, क्योंकि यहाँ जल चौपालों में पानी नहीं, बल्कि काजू-बादाम की नदियां बह रही हैं।
यह घटना न केवल सरकारी व्यवस्था पर एक करारा तमाचा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे जनहित की योजनाओं को दिखावे और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया जाता है। अब देखना यह है कि इस मामले में कार्रवाई होती है या इसे भी पेंट घोटाले की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा।





