अफ्रीका… एक ऐसा महाद्वीप, जिसकी धरती सोना, हीरा और तमाम खनिजों से भरी पड़ी है। फिर भी, यही धरती आज भी भूख, गरीबी और हिंसा से जूझ रही है। आखिर क्यों? इसकी वजह कौन है? और क्या अब हालात बदलने की कोई उम्मीद नजर आ रही है?
इस चर्चा में आज सबसे बड़ा नाम सामने आ रहा है — इब्राहिम तरोरे।
कौन हैं इब्राहिम तरोरे?
इब्राहिम तरोरे पश्चिम अफ्रीका के छोटे लेकिन संसाधनों से भरपूर देश बुर्कीना फासो के राष्ट्रपति हैं। 37 साल के इस युवा नेता ने कम उम्र में ही अफ्रीका की राजनीति में हलचल मचा दी है।
- जन्म: 1988, अफ्रीका
- पेशा: सेना में कप्तान, अब राष्ट्रपति
- देश: बुर्कीना फासो, पश्चिम अफ्रीका
- धर्म: इस्लाम
- पहचान: खुद को हजरत बिलाल हबशी का वंशज मानते हैं
तरौरे उस नई पीढ़ी के नेता हैं जो केवल भाषण नहीं देते, बल्कि यूरोप और अमेरिका जैसी ताकतों को खुली चुनौती देने का साहस रखते हैं।
बुर्कीना फासो: सोने से मालामाल, फिर भी गरीब क्यों?
बुर्कीना फासो समुद्र से घिरा नहीं है, लेकिन इसकी जमीन इतनी खनिज संपदा समेटे हुए है कि हर नागरिक करोड़पति हो सकता है। फिर भी:
- देश की आबादी: करीब 2.25 करोड़
- स्थिति: अत्यधिक गरीबी, अशिक्षा, आतंकवाद का असर
- भाषा: चार स्थानीय भाषाओं के साथ फ्रेंच का बोलबाला
- खनिज संपदा: हर साल करीब 80-90 टन सोना निकलता है
फिर भी यहां के लोग जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वजह साफ है — यूरोपीय देशों, खासकर फ्रांस, ने दशकों से इस देश के संसाधनों का जमकर दोहन किया है।
कैसे सत्ता में आए इब्राहिम तरोरे?
बुर्कीना फासो में लंबे समय से:
- राजनीतिक अस्थिरता
- आर्थिक शोषण
- आतंकवाद का कहर (ISIS, अल-कायदा जैसी तंजीमें सक्रिय)
इस बीच, सेना में कैप्टन रहे इब्राहिम तरोरे ने साल 2022 में सत्ता संभाल ली। उन्होंने साफ किया कि अब:
- देश से फ्रांस की सेना निकाली जाएगी
- विदेशी कंपनियों की लूट पर रोक लगेगी
- देश की संपत्ति पर सिर्फ देशवासियों का हक होगा
तरोरे के कड़े फैसले, जिनसे यूरोप में हलचल
इब्राहिम तरोरे ने सत्ता में आते ही कई साहसिक कदम उठाए:
✔ फ्रांस की सेना को देश छोड़ने का अल्टीमेटम
✔ यूरोपीय दूतावासों को बंद करने का फैसला
✔ मिनरल्स के एक्सपोर्ट पर रोक
✔ छात्रों को फ्रांस में पढ़ाई के लिए भेजने पर पाबंदी
✔ इजराइल की नीतियों का खुला विरोध
यूरोप इस विरोध को पचा नहीं सका, लेकिन रूस ने तरोरे का समर्थन किया। रूसी राष्ट्रपति पुतिन खुद उन्हें अफ्रीका का उभरता बड़ा नेता बता चुके हैं।
रूस से नजदीकी और सुरक्षा रणनीति
अमेरिका और ब्रिटेन से खुलकर टकराव आसान नहीं था। ऐसे में तरोरे ने रूस का रुख किया:
- रूस ने बुर्कीना फासो को सैन्य सहायता दी
- रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई
- देश में आतंकी संगठनों पर कार्रवाई तेज हुई
इब्राहिम तरोरे का कहना है कि अफ्रीका को अगर अपनी असली ताकत वापस पानी है, तो उसे यूरोप और अमेरिका की ‘छाया’ से बाहर निकलना होगा।
वायरल हुआ तरोरे का ऐतिहासिक भाषण
हाल ही में सोशल मीडिया पर उनका एक भाषण बेहद वायरल हुआ। इसमें उन्होंने कड़े शब्दों में यूरोप की दोहरी नीति पर सवाल उठाए:
“तुमने कभी अफ्रीका की कामयाबियों को अपनी हेडलाइन बनाया?
रवांडा की टेक्नोलॉजी, इथोपिया की तरक्की, बोत्सवाना की लोकतांत्रिक सफलता या केन्या की एंटरप्रेन्योरशिप के बारे में कभी कुछ दिखाया?”
इस भाषण ने न सिर्फ अफ्रीका में बल्कि दुनियाभर में अफ्रीकन युथ के बीच तरोरे की लोकप्रियता को नई ऊंचाई दी।
क्या इब्राहिम तरोरे अफ्रीका के लिए उम्मीद हैं?
- 20 से ज्यादा जानलेवा हमले झेल चुके हैं
- अंतरराष्ट्रीय साजिशों का सामना कर रहे हैं
- लेकिन उनका दावा है — अफ्रीका आजाद होकर रहेगा
उनकी तुलना कई लोग सलाहउद्दीन अय्यूबी जैसे ऐतिहासिक नेताओं से कर रहे हैं, जो अत्याचार के खिलाफ खड़े हुए।
चुनौतियां अभी बाकी हैं
हालांकि, रास्ता आसान नहीं है:
- अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों का दबाव
- आतंकवाद की जड़ें
- राजनीतिक अस्थिरता का खतरा
- विदेशी दखलंदाजी की आशंका
अंतरराष्ट्रीय समुदाय नजर गड़ाए बैठा है कि क्या युवा राष्ट्रपति अपने वादों पर टिक पाएंगे या बुर्कीना फासो फिर से बाहरी ताकतों का शिकार बनेगा।
निष्कर्ष: क्या अफ्रीका का भविष्य बदल रहा है?
इब्राहिम तरोरे सिर्फ बुर्कीना फासो के नहीं, बल्कि पूरे अफ्रीका के युवाओं के लिए एक नई उम्मीद की तरह देखे जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या वो इस दबाव और चुनौतियों के बावजूद अपनी सोच और फैसलों पर टिके रह पाएंगे?
आपका इस विषय पर क्या विचार है? क्या अफ्रीका सचमुच यूरोपीय शोषण से आजाद हो पाएगा? कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं।