जहां देवी स्वयं विराजमान हैं, वहां हर क्षण होता है अद्भुत
असम के गुवाहाटी स्थित नीलांचल पर्वत पर विराजमान मां कामाख्या का मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि रहस्यों, तंत्र साधना और चमत्कारों की भूमि है। हर साल यहां आयोजित होने वाला अंबूबाची महायोग 2025 देश-दुनिया के श्रद्धालुओं, साधकों, तांत्रिकों और नागा संन्यासियों को आकर्षित करता है।
इस वर्ष अंबूबाची महायोग 22 जून 2025 की रात 2:56 बजे से शुरू होकर 26 जून 2025 की सुबह 3:19 बजे तक चलेगा। इन 72 घंटों के दौरान मंदिर के दरवाजे बंद रहते हैं, लेकिन आस्था अपने चरम पर होती है।
क्यों विशेष है अंबूबाची महायोग?
अंबूबाची महायोग को देवी आदि शक्ति के सृजन शक्ति के जागरण का समय माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, यानी ठीक उसी तरह जैसे एक महिला में मातृत्व की शक्ति सक्रिय होती है। इसी कारण तीन दिनों तक मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है और पूजा-पाठ वर्जित होता है।
अंबूबाची शब्द का अर्थ:
- अंबू = जल
- वाची = वचन या आशीर्वाद देने वाला
यानी, यह वह समय है जब मां कामाख्या अपने रहस्यमयी जलकुंड के माध्यम से भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
मां कामाख्या और नीलांचल पर्वत का अद्भुत रहस्य
कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां देवी का कोई प्रतिमा रूप नहीं, बल्कि स्वयंभू योनि मुद्रा में देवी विराजित हैं, जो सृजन और शक्ति का प्रतीक है।
खास बातें:
- अंबूबाची महायोग के दौरान मंदिर का गर्भगृह पूरी तरह बंद रहता है।
- रहस्य कुंड से सिंदूरी लाल रंग का जल निकलता है, जो देवी की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
- सफेद वस्त्रों से इस जल को सोखा जाता है, जिसे बाद में रक्तवस्त्र प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।
10 महाविद्याओं की साधना का केंद्र है अंबूबाची
अंबूबाची महायोग साधना, तपस्या और तंत्र के लिए सबसे बड़ा अवसर माना जाता है। तांत्रिक, अघोरी, नागा साधु और विभिन्न परंपराओं के साधक यहां पहुंचते हैं।
मां की 10 महाविद्याएं:
- काली
- तारा
- त्रिपुरसुंदरी
- भुवनेश्वरी
- भैरवी
- छिन्नमस्ता
- धूमावती
- बगलामुखी
- मातंगी
- कमला
इन सभी रूपों की विशेष साधना अंबूबाची के दौरान की जाती है।
कौन-कौन आते हैं अंबूबाची महायोग में?
यहां हर साल विभिन्न परंपराओं के साधकों का जमावड़ा लगता है:
- कौल साधक: काले वस्त्रधारी, मां काली के उपासक
- शाक्त साधक: लाल वस्त्रधारी, शक्ति उपासक
- कापालिक: खोपड़ी लेकर विशेष तांत्रिक साधना करने वाले
- नाथपंथी: बड़े कुंडल पहनने वाले योगी
- अघोरी एवं अवघड़: शरीर पर भस्म लगाकर साधना करने वाले
- नागा साधु: निर्वस्त्र, कठोर तप में लीन साधु
ये सभी नीलांचल पर्वत पर 72 घंटे तक अपनी कठिन साधना में लीन रहते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी में लालिमा: मां कामाख्या का अद्भुत चमत्कार
अंबूबाची महायोग के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रंग का हो जाता है। मान्यता है कि मंदिर के रहस्य कुंड का जल पर्वत के अंदर से बहकर नदी में मिलता है, जिससे यह चमत्कार होता है। इसे मां की शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
इतिहास: जब कामाख्या मंदिर पर हमला हुआ था
मां कामाख्या के चमत्कारों से प्रभावित होकर कई मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिर को निशाना बनाया:
- वर्ष 1498 में हुसैन शाह ने हमला किया।
- सुलेमान करानी के सेनापति काला पहाड़ ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया।
- 15वीं शताब्दी के अंत में कोच वंश के राजा विश्व सिंह ने खंडहर खोजे।
- उनके पुत्र नर नारायण ने वर्ष 1565 में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
आज का भव्य कामाख्या मंदिर उसी पुनर्निर्माण का परिणाम है।
भक्तों की आस्था: हर मनोकामना होती है पूरी
श्रद्धालु मानते हैं कि मां कामाख्या सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना जरूर पूरी करती हैं। इसलिए हर साल लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं और मां के चरणों में नतमस्तक होते हैं।
निष्कर्ष: आस्था, रहस्य और शक्ति का संगम
अंबूबाची महायोग 2025 सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की सनातन संस्कृति, तंत्र साधना और रहस्यमय परंपराओं का जीवंत उदाहरण है। मां कामाख्या की यह भूमि न केवल श्रद्धालुओं, बल्कि साधकों और तांत्रिकों के लिए भी परम साधना स्थल है।