रिपोर्टर: विष्णु गौतम | लोकेशन: दुर्ग
दुर्ग जिले से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम अंजोरा ढाबा इस समय भीषण जलसंकट की चपेट में है। करीब 2500 की आबादी वाले इस गांव के सभी ट्यूबवेल फरवरी की शुरुआत में ही सूख चुके हैं। गांव के लोगों के लिए अब एकमात्र सहारा बचा है – एक चालू ट्यूबवेल, जो “ईश्वर भरोसे” चल रहा है।
गांव के लोग रोज़ाना तड़के उठकर बाल्टी, डब्बा लेकर उस एकमात्र ट्यूबवेल के सामने लंबी लाइन में लगते हैं। पानी भरना अब उनकी दिनचर्या की पहली प्राथमिकता बन गई है। महिलाओं और युवतियों की दिनचर्या भी पूरी तरह बदल चुकी है – साइकिल लेकर गांव के दूसरे छोर तक पानी के लिए जाना अब उनकी मजबूरी बन चुकी है।
पूर्व सरपंच बताते हैं कि अंजोरा ढाबा विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर पर बसा हुआ है, जिसके चलते यह गांव विकास योजनाओं से अक्सर अछूता रह जाता है। उन्होंने बताया कि पानी की समस्या यहां कोई नई नहीं है, हर साल लोग इसी संकट का सामना करते हैं, लेकिन शिकायतों के बावजूद कोई स्थायी समाधान नहीं निकलता।
गांव के बुजुर्ग रामकुमार देखमुख ने बताया, “सुबह से सारे जरूरी काम छोड़कर लोग पानी भरने में लग जाते हैं। हर घर से एक-दो सदस्य दिनभर पानी की व्यवस्था में ही लगे रहते हैं।”
सरकार की बहुप्रचारित ‘जल जीवन मिशन’ के तहत गांव में नल कनेक्शन तो लगाए गए हैं, लेकिन पानी की आपूर्ति अब तक शुरू नहीं हो सकी है। पाइपलाइनें सूखी पड़ी हैं और योजना सिर्फ कागजों में सजीव नजर आती है।
गांव से कुछ ही दूरी पर शिवनाथ नदी बहती है, जिसे पानी का स्रोत बनाया जा सकता है, लेकिन नदी की स्थिति भी चिंताजनक है – वह प्रदूषण और गंदगी से ग्रस्त है।
बावजूद इसके, अंजोरा ढाबा के निवासियों की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं। वे अब भी आशा लगाए बैठे हैं कि शायद कभी कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि उनकी समस्याओं को सुनकर इस जल संकट का स्थायी समाधान निकालेगा।