यातायात मंत्री नितिन गडकरी ने एक नया प्रस्ताव रखा है जिसके तहत वाहनों के हॉर्न अब पारंपरिक ‘हॉर्न’ की जगह भारतीय वाद्ययंत्रों जैसे तबला, बांसुरी, वायलिन या हारमोनियम की आवाज़ में बजेंगे।
क्या है पूरा मामला?
- गडकरी ने नवभारत टाइम्स के 78वें स्थापना दिवस के मौके पर कहा कि वह एक नया कानून लाने की योजना बना रहे हैं, जिसमें सभी वाहनों के हॉर्न भारतीय संगीत के वाद्ययंत्रों की धुन पर आधारित होंगे।
- उनका कहना है कि इससे ध्वनि प्रदूषण कम होगा और सड़कों पर आवाज़ें ज्यादा सुखद होंगी।
- यह प्रस्ताव सरकार के हरित ईंधन (Green Fuel) और जैव ईंधन (Biofuels) को बढ़ावा देने के अभियान का हिस्सा है।
क्यों जरूरी है यह बदलाव?
- यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी के अनुसार, लंबे समय तक ट्रैफिक के शोर के संपर्क में रहने से लाखों लोगों को नींद की समस्या और तनाव होता है।
- भारत में भी ध्वनि प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। मुंबई की संस्था Earth5R के एक सर्वे के मुताबिक, भारत के 15 शहरों में हॉर्न की आवाज़ 90-100 डेसिबल तक पहुँचती है, जबकि मानक सीमा 50 डेसिबल है।
- गडकरी पहले भी हॉर्न की अधिकतम ध्वनि सीमा 50 डेसिबल तक सीमित करने की बात कह चुके हैं।
क्या यह योजना काम करेगी?
- अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो भारत दुनिया का पहला देश होगा जहाँ वाहनों के हॉर्न संगीतमय होंगे।
- हालांकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ हो सकती हैं, जैसे:
- हर वाहन के हॉर्न की धुन अलग होगी या एक जैसी?
- क्या लोग इन हॉर्न को गंभीरता से लेंगे या फिर यह मजाक का विषय बन जाएगा?
- क्या यह वाकई ध्वनि प्रदूषण कम करेगा या सिर्फ एक नया ट्रेंड बनकर रह जाएगा?
निष्कर्ष:
गडकरी का यह आइडिया अनोखा और सराहनीय है, लेकिन इसके व्यावहारिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। अगर सही तरीके से लागू किया गया, तो यह भारतीय सड़कों को और भी खूबसूरत बना सकता है!