दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से जले हुए नोटों की बरामदगी का मामला फिर चर्चा में है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस मामले में FIR (पहली सूचना रिपोर्ट) दर्ज न होने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई तीन जजों की समिति से जल्द जांच करने की मांग की है।
क्या हुआ था?
पिछले महीने, 14-15 मार्च 2025 की रात को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित घर में आग लगी। दमकलकर्मियों ने उनके स्टोर रूम से जले हुए नोट बरामद किए। इसके बाद भ्रष्टाचार के आरोप लगे। जस्टिस वर्मा ने कहा कि यह स्टोर रूम उनके स्टाफ का था और उनके खिलाफ साजिश की गई है।
धनखड़ ने क्या कहा?
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पूछा कि जब उनके जैसे बड़े पद पर बैठे लोग भी FIR से बच नहीं सकते, तो जज के खिलाफ इतनी लंबी प्रक्रिया क्यों? उन्होंने कहा कि हर गंभीर अपराध की सूचना पुलिस को देना जरूरी है, और ऐसा न करना गलत है। फिर भी, इस मामले में कोई FIR दर्ज नहीं हुई।
धनखड़ ने यह भी सवाल किया कि आग की घटना के एक हफ्ते बाद तक इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि बिना FIR के जांच कानूनी रूप से नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन जजों की एक समिति बनाई है। इसमें जस्टिस शील नागू, जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। यह समिति भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है, लेकिन अभी तक कोई FIR दर्ज नहीं हुई।

जजों के खिलाफ FIR की प्रक्रिया
भारत में किसी मौजूदा जज के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की इजाजत चाहिए। अगर CJI को लगता है कि आरोप सही हैं, तो वे राष्ट्रपति को FIR की अनुमति देने की सलाह दे सकते हैं। यह प्रक्रिया जजों की स्वतंत्रता और जवाबदेही को संतुलित करने के लिए है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जजों के खिलाफ FIR की प्रक्रिया जटिल है ताकि उनकी स्वतंत्रता बनी रहे। लेकिन धनखड़ का मानना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता में रुकावट डाल रही है।
और क्या?
- धनखड़ ने कहा: “न्यायपालिका की स्वतंत्रता जांच को रोकने का बहाना नहीं हो सकती।”
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आंतरिक जांच का आदेश दिया था।
- यह मामला न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस छेड़ रहा है।