जब ज़िंदगी सड़क और सिस्टम के बीच फंस जाती है
मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक बेहद दर्दनाक और चिंताजनक हादसा सामने आया है, जिसने ग्रामीण इलाकों की जर्जर सड़कों और आपातकालीन व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। तेज बारिश के कारण उफनती नदी में फंसी एक प्रसव पीड़िता अस्पताल पहुंचने से पहले ही दो घंटे तक तड़पती रही और आखिरकार उसकी मौत हो गई। यह घटना ना सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन की खस्ताहाल स्थिति पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
🔹 घटना का विवरण: मौत के मुंह में फंसी ज़िंदगी
- घटना स्थल: जवा तहसील का बरहटा गांव, रीवा जिला, मध्य प्रदेश
- पीड़िता: प्रिया रानी कोल, भनिगंवा गांव निवासी
- परिस्थितियां: मूसलाधार बारिश के चलते महना नदी उफान पर थी
- घटना का क्रम:
- अचानक प्रसव पीड़ा होने पर परिजन प्रिया को जवा अस्पताल ले जा रहे थे
- रास्ते में तेज बहाव वाली महना नदी पार करते समय वाहन फंस गया
- दो घंटे तक बिना मदद के नदी किनारे फंसी रही पीड़िता
- झोला छाप डॉक्टर बुलाया गया, जिसने मौके पर ही मौत की पुष्टि की
🔹 स्थानीयों की व्यथा: हर साल दोहराई जाती है ये त्रासदी
गांववालों का कहना है कि ये कोई नई घटना नहीं है। हर साल बारिश के दौरान ऐसी स्थिति बनती है, लेकिन प्रशासन इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाता।
- ग्रामीणों का आरोप:
- बारिश में सड़कें और पुलिया अक्सर जलमग्न हो जाते हैं
- स्वास्थ्य सेवाओं और एंबुलेंस की सुविधा समय पर नहीं मिलती
- प्रशासन ने अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं किया
🔹 परिवार की पीड़ा: लंबा रास्ता, बेमौसम अंत
प्रिया के ससुर ने बताया कि मौत के बाद शव को उसके मायके से 40 किलोमीटर का चक्कर काटकर ससुराल लाना पड़ा क्योंकि मुख्य मार्ग नदी के कारण बंद था।
यह घटना एक महिला की जान ही नहीं ले गई, बल्कि उसके परिवार के लिए एक असहनीय त्रासदी बन गई।
🔹 सवाल जो जवाब मांगते हैं:
- क्या ग्रामीण इलाकों की सड़क और आपातकालीन सुविधाएं इतनी कमजोर हैं कि एक महिला की जान नहीं बचाई जा सकी?
- क्यों हर साल बारिश में गांववालों को ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है?
- क्या प्रशासन प्राकृतिक आपदाओं के लिए पहले से तैयारी नहीं कर सकता?
🔹 इससे मिलती-जुलती घटनाएं:
- टीकमगढ़ में ठेले पर प्रसव: सरकारी अस्पताल की नर्सों ने गर्भवती को लौटा दिया, रास्ते में ठेले पर प्रसव हुआ और नवजात की मौत हो गई
- ग्वालियर में कीचड़ में फंसी एंबुलेंस: ग्रामीणों ने कंधों पर उठाकर महिला को अस्पताल पहुंचाया
🔹 निष्कर्ष: अब वक्त है कार्रवाई का, संवेदना नहीं
रीवा की यह घटना एक चेतावनी है—प्रशासन को सिर्फ राहत शिविर लगाकर या बयान देकर नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा।
महिलाओं की सुरक्षा, आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं और मानसून से पहले की तैयारी अब सिर्फ ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।





