BY: VIJAY NANDAN
भोपाल: चिकित्सा विज्ञान में जब अनुभव, तकनीक और टीमवर्क का संपूर्ण समन्वय हो, तो असंभव भी संभव हो जाता है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (BMHRC) में, जहां डॉक्टरों ने एक जटिल केस में बिना सर्जरी किए एक मरीज की जान बचा ली। यह मामला न सिर्फ चिकित्सा दक्षता का प्रमाण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सही निर्णय और आधुनिक तकनीक के जरिए जानलेवा स्थिति को भी सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है।
54 वर्षीय मरीज की जान पर बन आई थी
उत्तर प्रदेश के ललितपुर निवासी 54 वर्षीय व्यक्ति पिछले कई महीनों से न तो ठीक से खाना खा पा रहा था और न ही साफ-साफ बोल पा रहा था। उनका जीवन तरल आहार पर निर्भर हो गया था। उन्होंने झांसी, ग्वालियर और भोपाल सहित कई बड़े अस्पतालों में इलाज कराया, परंतु राहत नहीं मिली। जांच में सामने आया कि उनकी आहार नली (Esophagus) में कोई कठोर वस्तु—संभवत: नकली दांत—फंसी हुई है, जो भोजन निगलने में बाधा बन रही थी।
ग्वालियर में एंडोस्कोपी की कोशिश नाकाम रही और अन्य अस्पतालों में डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि केवल ऑपरेशन से ही यह वस्तु निकाली जा सकती है। लेकिन मरीज की उम्र और स्वास्थ्य स्थिति देखते हुए सर्जरी बेहद जोखिमभरी मानी जा रही थी।

BMHRC में विशेषज्ञों ने दिखाई तत्परता, जान बचाई
ऐसे में मरीज बीएमएचआरसी पहुंचे, जहां गैस्ट्रो मेडिसिन विभाग की टीम ने तुरंत एक्शन लेते हुए उसी दिन आपातकालीन एंडोस्कोपी का निर्णय लिया। डॉ. तृप्ति मिश्रा (विजिटिंग कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) के नेतृत्व में एक अनुभवी टीम ने मिलकर यह जटिल प्रक्रिया पूरी की।
बिना सर्जरी, अत्यंत सावधानी के साथ, एंडोस्कोपी के माध्यम से नकली दांत को आहार नली से सफलतापूर्वक बाहर निकाला गया। प्रक्रिया के दौरान मरीज की निरंतर मॉनिटरिंग की गई ताकि किसी भी जटिल स्थिति से समय रहते निपटा जा सके।
पूरी टीम ने निभाई अहम भूमिका
इस सफल मिशन में डॉ. अब्दुल राशिद (मुख्य चिकित्सा अधिकारी), डॉ. अभय मिश्रा (चिकित्सा अधिकारी), एंडोस्कोपी सुपरवाइज़र शिवजी ठाकुर, नर्सिंग ऑफिसर स्मिता सिंह, टेक्नीशियन राकेश सिरमोलिया, कालूराम मीणा, मोहम्मद शारिक और ओबैज़ जमाल फर्रुखी सहित अन्य स्टाफ का भी अहम योगदान रहा।
मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ, सामान्य भोजन शुरू
सफल एंडोस्कोपी के बाद मरीज न केवल सामान्य रूप से भोजन कर पा रहा है, बल्कि बोलने में भी उसे काफी राहत महसूस हो रही है। कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह सामान्य जीवन में लौट आया।
BMHRC बना उम्मीद का केंद्र
बीएमएचआरसी की प्रभारी निदेशक डॉ. मनीषा श्रीवास्तव ने इस उपलब्धि पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा:
“यह केस हमारे संस्थान की चिकित्सकीय सजगता, टीमवर्क और तकनीकी दक्षता का प्रमाण है। हमने दिखा दिया है कि जटिलतम मामलों में भी तत्परता और विशेषज्ञता के जरिए जीवन बचाया जा सकता है। बीएमएचआरसी केवल गैस पीड़ितों के लिए ही नहीं, बल्कि हर ज़रूरतमंद मरीज के लिए एक भरोसेमंद संस्थान बन चुका है।” यह घटना एक उदाहरण है कि भारत में चिकित्सा क्षेत्र किस तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और कैसे आधुनिक तकनीक के जरिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान अब और अधिक सुरक्षित और सुलभ होता जा रहा है।





