concept: rp shriwastav, by: vijay nandan
ट्रंप का बिजनेस डील प्लान
आतंकी सरगनाओं पर मेहरबान
सीरियाई राष्ट्रपति, पाक जनरल से गलबहियां
रेयर मिनरल्स पर नजर या भू-राजनीतिक चाल ?
भारत को कितना खतरा और कितना नुकसान ?
आज का एजेंडा है.. ट्रंप का बिजनेस डील प्लान, आतंकी सरगनाओं पर मेहरबान, एक समय था जब अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ रहा था… और आज वही अमेरिका उन्हीं देशों के साथ अरबों डॉलर के सौदे कर रहा है, जिन पर आतंक को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। सीरिया, पाकिस्तान, म्यांमार, अफगानिस्तान, यहां तक कि बांग्लादेश, हर जगह ट्रंप की कंपनियों की डील हो रही है, हर जगह बिजनेसमैम राष्ट्रपति ट्रंप अपने पांव पसार रहे हैं। क्या यह ‘नया अमेरिका’ सिर्फ मुनाफे के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता कर रहा है? या फिर यह चीन को घेरने की एक बड़ी रणनीति है? भारत के लिए ये डील खतरा है या अवसर? आज की बहस में इन्हीं सवालों पर चर्चा करेंगे।
- वो आतंकवाद के नाम पर था मोस्ट वॉन्टेड
- जिसपर कभी अमेरिका ने रखा था 1 करोड़ डॉलर इनाम
- अब वही शख्स सीरिया का राष्ट्रपति है
- व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रंप से मिलाएगा हाथ
- नाम है अहमद अल-शराआ
जी हां, ये शख्स कभी आतंकी संगठन अल कायदा के सबसे बड़े साथी के नाम से बदनाम था. लेकिन अब व्हाइट हाउस में ट्रंप और अल-शराआ की मीटिंग होगी. यह सीरियाई प्रेसिडेंट की पहली अमेरिकी यात्रा है. ट्रंप ने कहा अब सीरिया को ग्रेटनेस का चांस मिला है. अमेरिका सीरिया के राष्ट्रपति को वैश्विक आतंकी प्रतिबंध की लिस्ट से पहले ही हटा चुका है. सवाल ये है कि आखिर ट्रंप अहमद अल-शराआ पर मेहरबान क्यों हैं. इसका जवाब है..ट्रंप का बिजनेस प्लान..दरअसल ट्रंप एंड कंपनी ने दुनिया भर के आतंकी सरगनाओं के साथ बिजनेस डील का प्लान तैयार किया है. सीरिया में भी ये उसी बिजनेस मॉडल का हिस्सा.

- ट्रंप इसलिए अहमद अल-शरा पर मेहरबान
- सीरियाई राष्ट्रपति ने टीम ट्रंप के सामने “ट्रंप टॉवर दमिश्क” का विचार रखा है
- सीरिया ने UAE के साथ 800 मिलियन डॉलर की पोर्ट डील साइन की है
- इसमें US कंपनियों को भी मुनाफा कमाने का मौका है
- US सीरिया में तेल-खनिज संसाधनों में भी निवेश करने जा रहा है
- अमेरिका दमिश्क में सैन्य अड्डा बनाने की फिराक में है
ट्रंप आतंकी सरगनाओं से गलबहियां कर रहे हैं. इसका दूसरा उदाहरण है..हमारे सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान के जनरल असीम मुनीर..जो आतंकियों का सबसे बड़ा आका हैं, जिसकी व्हाइट हाउस में खूब मेहमाननबाजी हुई. आसिम मुनीर के आतंकी चरित्र के बारे में ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आप बखूबी जानते हैं. सवाल वही है मुनीर पर क्यों मेहरबान है ट्रंप.. इसका जवाब भी देख लीजिए..

- ट्रंप इसलिए मुनीर पर मेहरबान
- मुनीर ने ट्रंप को बलूचिस्तान का रेयर अर्थ मटीरियल देने का प्रस्ताव दिया
- US मेटल कंपनी और पाक के बीच 500 मिलियन डॉलर की डील हुई
- पाकिस्तान में Trump फैमिली का क्रिप्टो बिजनेस प्लान फाइनल हुआ
- पीएम शहबाज के उद्योगपति बेटे का अमेरिका से सोलर पैनल का कारोबार
हमारे एक और पड़ोसी म्यांमार के साथ भी अमूमन ट्रंप का वही बिजनेस डील प्लान है। म्यांमार में पिछले 54 साल से वहां के सैन्य अधिकारी डेमोक्रेसी को कुचलते आ रहे हैं. पिछले चुनाव के बाद भी यही हुआ तानाशाह जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने आंग सान सू की सरकार का तख्तापलट कर दिया. लेकिन अब लोकतंत्र की दुहाई देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति तानाशाह पर मेहरबान हैं. इसकी वजह भी जान लीजिए.

- ट्रंप इसलिए तानाशाह जनरल मिन पर मेहरबान
- म्यांमार का कचिन प्रोविंस चीनी बॉर्डर पर रेयर अर्थ माइनिंग का सबसे बड़ा सेंटर है
- अभी म्यांमार के रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन का कंट्रोल है
- 2023 में चीन ने लगभग 42000 टन हैवी रेयर अर्थ एलीमेंट एक्सपोर्ट किया
- अब ट्रंप की तानाशाह मिन से रेयर अर्थ मिनरल्स पर डील हो रही है
ट्रंप अफगानिस्तान के हक्कानी आतंकी गुट पर भी मेहरबान है. अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी, साथ में उसके भाई अब्दुल अजीज और भाई याहह्या हक्कानी पर लगे इनाम को हटा दिया है।
अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद अहम रहा है। 2021 में तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता स्थापित हुई. तब अमेरिका ने काबुल छोड़ दिया। लेकिन अब अमेरिकी फिर से इसे अपना बेस बनाना चाहता है। ट्रंप की नजर अफगानी खनिज संसाधनों पर भी गढ़ी हुई है.

ट्रंप भारत के एक और पड़ोसी बांग्लादेश पर भी मेहरबान हैं, यहां भी कट्टरपंथी संगठनों ने शेख हसीना सरकार का तख्तापलट कर लोकतंत्र का गला घोंट दिया था. ये सब हुआ अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में..लेकिन अब ट्रंप यूनुस सरकार के साथ बड़ी डील कर रहे हैं। बांग्लादेश अरबों डॉलर का अमेरिका से गेहूं-सोयाबीन खरीदेगा, US कंपनी से हर साल 5 मिलियन मीट्रिक टन LNG आयात भी करेगा।
ट्रंप की इन आतंकी सरगनाओं के साथ डीले बिजनेस की आड़ में भू-राजनीतिक चाल भी है। दिखने में ये निवेश और ऊर्जा सौदे लगते हैं, लेकिन असली मकसद एशिया में चीन की पकड़ को कमजोर करना है। ट्रंप उन देशों से हाथ मिला रहे हैं जो कभी आतंक या तानाशाही के प्रतीक रहे हैं, यह “मुनाफे की कूटनीति” लोकतंत्र और सुरक्षा दोनों के लिए खतरा बन सकती है। भारत के लिए चिंता यह है कि इन सौदों से पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर से सक्रिय हो सकते हैं, जिससे सीमाई अस्थिरता बढ़ेगी। ट्रंप की रणनीति साफ है, संसाधनों पर कब्जा और चीन पर दबाव। पर सवाल अब भी वही है क्या यह डीलें शांति लाएंगी या नया संकट खड़ा करेंगी? चैनल हेड आरपी श्रीवास्तव के साथ विजय नंदन, स्वदेश न्यूज।





