मध्य प्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य का नाम बदलकर राजा भभूत सिंह वन्यजीव अभयारण्य रखने की घोषणा की है। यह फैसला हाल ही में नर्मदापुरम के पचमढ़ी में हुई एक विशेष कैबिनेट बैठक में लिया गया। इस निर्णय का उद्देश्य 1857 के गुमनाम लेकिन साहसी स्वतंत्रता सेनानी राजा भभूत सिंह को सम्मान देना है।
कौन थे राजा भभूत सिंह?
राजा भभूत सिंह 19वीं सदी के एक वीर आदिवासी नेता थे, जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका में थे।
उनके बारे में मुख्य बिंदु:
- वे सतपुड़ा के जंगलों और पहाड़ियों के विशेषज्ञ थे।
- उन्होंने गुरिल्ला युद्धनीति अपनाकर अंग्रेजों को लंबे समय तक परेशान किया।
- वे तात्या टोपे के विश्वसनीय सहयोगी थे।
- 1860 तक उन्होंने अंग्रेजी सेना को सतपुड़ा की पहाड़ियों में घुसने नहीं दिया।
- अंततः वे ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए।
- आज भी वे लोकगीतों और परंपराओं में आदर के साथ याद किए जाते हैं।
आदिवासी सम्मान की दिशा में राजनीतिक रणनीति
पचमढ़ी अभयारण्य का नाम बदलना केवल एक प्रतीकात्मक फैसला नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी राजनीतिक सोच भी है।
भाजपा इस निर्णय से आदिवासी समुदाय के साथ भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करना चाहती है।
क्यों है यह कदम अहम?
- मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित हैं।
- 2013 में बीजेपी ने 31 आदिवासी सीटें जीतीं, लेकिन 2018 में यह संख्या घटकर 16 रह गई।
- 2023 में पार्टी ने वापसी करते हुए 27 सीटें जीतीं, लेकिन आदिवासी समुदाय में उसकी पकड़ अब भी चुनौती बनी हुई है।
सांस्कृतिक जुड़ाव और सामाजिक एकता
राजा भभूत सिंह के नाम पर अभयारण्य का नामकरण एक भावनात्मक और ऐतिहासिक जुड़ाव को दर्शाता है। यह कदम:
- आदिवासी समाज के गौरव को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाएगा।
- सरकार को सामाजिक समरसता और सामूहिक समर्थन की दिशा में मदद करेगा।
- आने वाले चुनावों में राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
राजा भभूत सिंह को सम्मान देने का यह निर्णय न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी के योगदान को याद करने का माध्यम है, बल्कि मध्य प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक दिशा को भी दर्शाता है। इस पहल से सरकार आदिवासी समाज के साथ सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंध मज़बूत करना चाहती है, जो आने वाले समय में गहरी छाप छोड़ सकता है।