रिपोर्ट- चन्द्रभान साहू
Narharpur News: सरोना तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत घोटियावाही में मंगलवार को एक ही परिवार के कई सदस्यों ने तीन वर्षों बाद ईसाई धर्म छोड़कर पुनः अपने मूल धर्म में वापसी की। ग्रामीणों, सामाजिक प्रतिनिधियों और पंचायत पदाधिकारियों की मौजूदगी में पूरे विधि-विधान के साथ उनका स्वागत किया गया।
Narharpur: सामाजिक असमानता और आर्थिक मजबूरी का दबाव
घोटियावाही के सड़क पारा निवासी प्रतिमा निषाद, लक्ष्मी निषाद, दीपा निषाद, मिथलेश निषाद और मयंक निषाद पिछले तीन वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहे थे। सर्व समाज अध्यक्ष कवल किशोर कश्यप, ग्राम पंचायत के सरपंच, ग्राम पटेल और बड़ी संख्या में ग्रामीण इस आयोजन के साक्षी बने।

धर्म पुनः प्रवेश के दौरान पैर धुलाई, गंगाजल छिड़काव, आरती और चावल तिलक जैसे पारंपरिक अनुष्ठान संपन्न किए गए। मिथलेश निषाद और मयंक निषाद को गमछा भेंट कर सम्मानपूर्वक स्वागत भी किया गया। ग्रामीणों ने इस आयोजन को सामाजिक एकता और परंपराओं की पुनर्स्थापना से जोड़ते हुए परिवार को शुभकामनाएँ दीं।
मूल संस्कृति, समाज और पारिवारिक जुड़ाव की कमी
धर्म परिवर्तन एक संवेदनशील सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके पीछे कई प्रकार के कारण और परिस्थितियाँ काम करती हैं। अधिकांश मामलों में लोग आर्थिक, सामाजिक दबावों, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव या फिर किसी विशेष समस्या के समाधान की उम्मीद में धर्म परिवर्तन की ओर आकर्षित होते हैं। कुछ बार सामाजिक उपेक्षा, जातिगत भेदभाव, समुदाय में असमानता या परिवार से अलगाव के कारण भी लोग नए धर्म को अपनाने का निर्णय लेते हैं। उन्हें लगता है कि नया धर्म उन्हें सुरक्षा, सम्मान, समानता और सहयोग का माहौल देगा।
कई बार धार्मिक संगठन सहायता, इलाज, रोजगार या बच्चों की शिक्षा जैसी सुविधाओं का आश्वासन देकर गरीब और हाशिए पर मौजूद लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं। ऐसे परिवार धीरे-धीरे नए धार्मिक संस्कारों और परंपराओं में शामिल हो जाते हैं। शुरुआत में उन्हें नई पहचान, समुदाय का समर्थन और बेहतर सुविधाओं का अनुभव मिलता है, जिससे वे उसे स्वीकार कर लेते हैं।
लेकिन समय के साथ कई लोगों का मोहभंग भी होने लगता है। इसका पहला कारण यह है कि उन्हें एहसास होने लगता है कि मूल समस्याएँ, जैसे गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी या सामाजिक सुरक्षा धर्म बदलने से वास्तव में हल नहीं होतीं। दूसरा, उन्हें धीरे-धीरे अपने मूल धर्म की सांस्कृतिक परंपराओं, त्योहारों, रिश्तेदारों और सामाजिक जुड़ाव की कमी महसूस होने लगती है। परिवार और समाज से दूरी बढ़ने पर भावनात्मक खालीपन पैदा होता है।
कुछ मामलों में नए धर्म के भीतर भी वही चुनौतियाँ मिलती हैं, जो पहले थीं, असमानता, व्यवहारिक दूरी, या अपेक्षाओं में भारी अंतर। ऐसे में लोगों को लगता है कि परिवर्तन केवल औपचारिक था, उनके जीवन में वास्तविक सुधार नहीं आया। इन्हीं कारणों से वे वापस अपने मूल धर्म में लौटकर सामाजिक सुरक्षा और सांस्कृतिक जुड़ाव को फिर से प्राप्त करना चाहते हैं।
इस प्रकार, धर्म परिवर्तन और मोहभंग दोनों ही गहरी सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ हैं, जो जीवन की वास्तविकताओं से जुड़ी होती हैं।
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